सोनभद्र में रासपहरी पहाड़ी क्षेत्र में हुए विस्फोट के बाद मलबे से शव निकालते स्थानीय लोग। |
शिव दास / वनांचल न्यूज नेटवर्क
सोनभद्र। जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों और सफेदपोश धंधेबाजों की सत्ताई धनलोलुपता में पिछले दिनों एक बार फिर इंसानियत के चिथड़े उड़े। गत 15 अक्टूबर को सोनभद्र की रासपहरी पहाड़ी बारूदी विस्फोट से थर्रा गई और लोग लोथड़े इकट्ठा करते रह गए। घड़ियाली आंसूओं और चंद कागजी टूकड़ों की खैराती बख्शीशों का सपना दिखाकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों ने जहां जनता की उग्र आवाज का सौदा किया, वहीं सफेदपोश खनन माफियाओं, भ्रष्ट नौकरशाहों और तथाकथित जनप्रतिनिधियों के गठजोड़ ने खनन मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ का राज दफन करने की कवायद शुरू की।
अगर वाराणसी परिक्षेत्र के खान सुरक्षा निदेशालय के डायरेक्टर यूपी सिंह की बात करें तो इस मामले में वह और दो कदम आगे हैं। वाराणसी परिक्षेत्र के तहत शामिल सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली क्षेत्र में खनन व्यवसाय में करीब दस हजार से ज्यादा मजदूर काम करते हैं लेकिन उन्होंने उनकी सुरक्षा और पंजीकरण को लेकर परिक्षेत्र में संचालित होने वाली खदानों और क्रशर प्लांटों को लेकर कभी भी संजीदगी नहीं दिखाई। ना ही उन्होंने उनके खिलाफ कोई कठोर प्रशासनिक कार्रवाई की जबकि परिक्षेत्र की सीमा के अंतर्गत शामिल खनन क्षेत्रों में हर दिन करीब दो मजदूरों की मौत सुरक्षा व्यवस्थाओं की वजह से होती है। विस्फोटकों के इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षित मजदूरों और उनकी सुरक्षा को लेकर उन्होंने केवल खानापूर्ति तक की है। इसी की देन है कि सोनभद्र के बिल्ली-मारकुंडी, सिंदुरिया, सुकृत आदि खनन क्षेत्र में संचालित होने वाली पत्थर की खदानों में खान सुरक्षा निदेशालय की ओर से जारी आदेशों और दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित नहीं किया जाता है। और, आए दिन मजदूर खनन माफियाओं और सत्ता के दलालों की सांठगांठ में मारे जाते हैं।
पुलिस प्रशासन इस मामले में कुछ ज्यादा ही आगे है। पूर्व पुलिस अधीक्षकों समेत वर्तमान पुलिस अधीक्षक शिव शंकर यादव जिले में तैनात थाना प्रभारियों की उदासीनता को खत्म करने में नाकाम साबित हुए हैं। चोपन, ओबरा, रॉबर्ट्सगंज थानों समेत डाला और सुकृत पुलिस चौकी के प्रभारियों ने अवैध खनन माफियाओं की काली करतूतों को छिपाने और मजदूरों की आवाज को दफन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने क्षेत्र में होने वाले अवैध खनन और विस्फोट को अंदरुनी खाने से जमकर शह दिया है जिसके कारण इन इलाकों की खदानों में मजदूरों की होने वाली मौतें सरकारी फाइलों में दर्ज तक नहीं होती। ना ही इसके लिए जिम्मेदार हत्यारों को कोई कानूनी सजा मिल पाती है। चंद रुपयों में अवैध खनन और विस्फोट से होने वाली मौतों के समर्थन में उठने वाली आवाज को दबा दिया जाता है।
जिले में सफेदपोश समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जो लोग कुछ सालों पहले बेरोजगारी का दंश कम करने के लिए चट्टी-चौराहों पर चापलूसी करते थे, वे आज लक्जरी गाड़ियों में दौड़ लगा रहे हैं। दो साल पहले जिनके पास लाख रुपये की जमा पूंजी नहीं थी, आज वह करोड़पति बन बैठे हैं। हालांकि वे ना ही कोई नौकरी करते हैं और ना ही उनका कोई व्यवसाय है। अगर उनका कोई धंधा है तो वह केवल राज-नीति, वह भी लेन-देन की। समाजसेवा का चोला पहने ऐसे तथाकथित जनप्रतिनिधियों की जिले में भरमार है।
फिलहाल 15 अक्टूबर 2015 की घटना के मामले में सत्ताधारी पार्टी के एक जनप्रतिनिधि का चेहरा कुछ अलग दिखाई दिया है। जिला प्रशासन के दावों के मुताबकि सूबे के मुखिया अखिलेश यादव ने इस हादसे में मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों और आश्रितों को मुख्यमंत्री कोष से दो-दो लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की है जो रॉबर्ट्सगंज के विधायक और सपा जिलाध्यक्ष अविनाश कुशवाहा की पहल पर आधारित है। हालांकि घायलों को मुख्यमंत्री कोष से कोई धनराशि मिलेगी या नहीं, इसका विवरण नहीं दिया गया है। साथ ही जिला प्रशासन ने विस्फोट में मरने वाले व्यक्तियों के आश्रितों को राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के तहत 30-30 हजार रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने का सब्जबाग दिखाया है।
यहां गौर करने वाली बात है कि जिला प्रशासन जिस अविनाश कुशवाहा की पहल पर मुख्यमंत्री कोष से दो-दो लाख रुपये मुआवजा बांटने की बात कह रहा है, वह इतने सालों से क्या कर रहे थे? पिछले दो सालों से वे समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष हैं। पार्टी के प्रदेश इकाई के मुखिया और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनके ही चश्मे से सोनभद्र की तस्वीर देखते हैं। घोरावल विधानसभा क्षेत्र के विधायक रमेश दुबे और दुद्धी विधानसभा क्षेत्र की विधानसभा सदस्य रुबी प्रसाद की बात करना ही बेमानी है। रमेश दुबे और उनके परिवार के सदस्यों पर सोनभद्र और मिर्जापुर में अवैध खनन कराने का आरोप है जिसकी जांच चल रही है। जबकि रुबी प्रसाद कांग्रेस से पाला बदलकर सपा का दामन पकड़ी हैं। जैसा माना जाता है कि स्थानीय स्तर पर पार्टी का जिलाध्यक्ष और साफ-सुथरी छवि वाला जनप्रतिनिधि ही सूबे के मुखिया की आंख होता है। बहुत हद तक ये पहलू अविनाश कुशवाहा के पक्ष में हैं। लेकिन, विधायक बनने के बाद उनकी और उनके परिवार के सदस्यों समेत उनके रिश्तेदारों और नजदीकियों की संपत्ति में हुआ इजाफा उनकी इस साफ-सुथरी छवि में दाग लगा रहा है। रॉबर्ट्सगंज तहसील द्वार के सामने कुछ जमीन को कब्जा करने का आरोप लगाकर कुछ अधिवक्ता उनके खिलाफ धरना भी दे चुके हैं।
पिछले तीन सालों से जिले में हो रहे अवैध खनन, परिवहन और विस्फोट की गतिविधियों की वजह से हुई मौतों पर उनकी चुप्पी उनकी पहल पर सवाल भी खड़ा करती है। कहीं उनकी यह कवायद उस साजिश का हिस्सा तो नहीं जो पिछले दिनों हुए हादसे से उठने वाली आवाज को दफन करने के लिए बुनी गई है। बहुजन समाज पार्टी की सरकार के दौरान वर्ष 2012 में 27 फरवरी को बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे में शासन और प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई में कुछ ऐसा ही देखने को मिला था। उस दौरान मारे गए करीब एक दर्जन मजदूरों के परिजनों/आश्रितों को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से आज तक मुआवजे के रूप में एक फुटी कौड़ी नहीं मिली। ना ही इसके लिए जिम्मेदार खनन माफियाओं, भ्रष्ट नौकरशाहों और सफेदपोशों को सजा मिली।
क्या अविनाश कुशवाहा की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वे उस हादसे में मारे गए लोगों को भी मुख्यमंत्री कोष से मुआवजे की धनराशि की मांग करते? क्या विधायक अविनाश कुशवाहा और अन्य जनप्रतिनिधि 15 अक्टूबर, 2015 और 27 फरवरी 2012 के हादसों समेत जिले में हो रहे अवैध खनन, विस्फोट और परिवहन की जांच सीबीसीआईडी अथवा सीबीआई अथवा उच्च न्यायालय में कार्यरत न्यायमूर्ति से कराने की अपील मुख्यमंत्री से करेंगे? अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो सोनभद्र में हो रहे खनिजों के अवैध दोहन, परिवहन और विस्फोट की घटनाओं में उनकी भूमिका पर सवाल उठना लाजिमी ही है। साथ-साथ प्रदेश की कथित लोकतांत्रिक व्यवस्था और उसके प्रतिनिधियों पर आम आदमी का भरोसा कमजोर होगा जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है। जरूरी है कि उत्तर प्रदेश की सरकार सोनभद्र और आस-पास के जिलों में हो रहे खनिजों के अवैध दोहन, परिवहन और विस्फोट की जांच किसी न्यायमूर्ति/सीबीसीआईडी/सीबीआई से कराये और मजदूरों की हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों को जेल भेजे ताकि आम आदमी का भरोसा उत्तर प्रदेश सरकार समेत भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर बना रहे।
अन्य संबंधित खबरेंः
सोनभद्र में विस्फोट, आठ की मौत, सात घायल
अवैध खननः इस हमाम में सभी नंगे हैं...
ʻवीआईपीʼ वसूली में दबा मजदूरों की ‘हत्या’ का राज!
यहां बिकता है 13 करोड़ महीने की ‘वीआईपी’ में ‘संगठित हत्या’ का लाइसेंस
सफेदपोशों की खदानें खा रही हैं लोगों की जिंदगी
अवैध खनन के सियासी दांव में दुर्गा से पहले भी पीस चुके हैं कई आईएएस अधिकारी
खनन मजदूरों के सीने को छलनी कर रहा बारूद!
अवैध खनन का खूनी खेलः जिम्मेदार कौन?
शासन की कारगुजारियों का परिणाम है सोनभद्र की घटना
मौत का कुआं बन चुकी पत्थर की अवैध खदानों में दम तोड़ रहे आदिवासी
सोनभद्र खनिज विभाग ने एक साल में बढ़ा ली 100 गुनी कमाई
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for comment