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शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

UGC का 30 सितंबर तक परीक्षा कराने का निर्णय सही, बिना अनुमति छात्रों को प्रमोट नहीं कर सकते राज्यः सुप्रीम कोर्ट


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों को स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के अंतिम वर्ष या सेमेस्टर की परीक्षाओं को आगामी 30 सितंबर तक संपन्न  कराने का दिया था निर्देश

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

विश्वविद्यालयों एवं अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के अंतिम वर्ष या सेमेस्टर की परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के विश्विद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई के दौरान माना कि राज्य यूजीसी की अनुमति के बिना छात्रों को प्रोन्नति नहीं दे सके हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि जिन राज्यों को कोरोना वायरस से उपजे संकट काल में परीक्षा कराने में दिक्कत है, वे यूजीसी के पास परीक्षा टालने का आवेदन दे सकते हैं। राज्य सरकारें कोरोना संकट काल में अपने से एग्जाम नहीं कराने का फैसला नहीं कर सकती हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है। 

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण के समर्थन में विरोध प्रदर्शन, 'आलोचना अवमानना नहीं है' के लगे नारे

इलाहाबाद के बालसन चौराहे पर नागरिक समाज के लोगों ने किया प्रदर्शन। 

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

र्वोच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशान्त भूषण को अवमानना का दोषी घोषित किए जाने के खिलाफ नागरिक समाज ने बुधवार को इलाहाबाद स्थित बालसन चौराहे पर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने 'आलोचना अवमानना नहीं है' के नारे भी लगाए। इस दौरान वक्ताओं ने कहार कि वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के दोनो ट्वीट न्याय की उम्मीद में सर्वोच्च न्यायालय में मामले दर्ज कराने के दौरान आ रही आम वादियों की कठिनाइयों को रेखांकित करती हैं।

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

काशी की सडकों पर फूंटा बहुजनों का गुस्सा, भारत बंद के समर्थन में भाकपा-माले ने भी निकाला मार्च

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लगे "नरेन्द्र मोदी...मुर्दाबाद-मुर्दाबाद" के नारे। पुलिस बनी रही मूकदर्शक।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुुुसूूूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को निष्प्रभावी बनाने में केंद्र सरकार  की भूमिका और बहुजन समुदाय विरोधी उसकी नीतियोंं, खासकर आरक्षण विरोधी, के खिलाफ बहुजनों ने सोमवार को वाराणसी की सड़कों पर प्रतिरोध मार्च निकाला और व्वसायिक प्रतिष्ठानों को बंद कराया। इसे लेकर पुलिस प्रशासन और भारत बंद समर्थकों में नोक-झोंक भी हुई। इस दौरान "नरेन्द्र मोदी...मुर्दाबाद-मुर्दाबाद" और पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद आदि के नारे भी लगे। आखिर में प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में भारत बंद कराने सफल रहे। उधर जिला मुख्यालय पर भाकपा माले के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने जिला संयोजक मनीष शर्मा के नेतृत्व में मार्च निकालकर बहुजनों के भारत बंद को समर्थन दिया।

बुधवार, 4 मई 2016

अखिलेश सरकार के बाद NGT ने JP GROUP को दिया झटका, 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेने का दिया आदेश


अधिकरण ने खारिज की उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना। मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी दिया आदेश।

reported by Shiv Das

नई दिल्ली। सोनभद्र में वन भूमि हस्तांतरण मामले में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने भी जेपी समूह को झटका दिया है। उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार द्वारा सोनभद्र में जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) के पक्ष में 1083.231 हेक्टेयर (करीब 2500 एकड़) वनभूमि हस्तांतरित करने के लिए जारी अधिसूचना को एनजीटी ने आज खारिज कर दिया। साथ ही उसने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर जेएएल के पक्ष में हस्तांतरित वन भूमि उत्तर प्रदेश वन विभाग को सौंप दे और गैर-कानूनी ढंग से इस वन भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बाई-सर्कुलेशन के जरिये जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड से गलत ढंग से हस्तांतरित करीब 2500 एकड़ वनभूमि वापस लेकर वनविभाग को सौंपने की अधिसूचना जारी करने का दावा किया था। 
गौरतलब है कि करीब आठ साल पहले जेपी समूह की सहयोगी कंपनी जेएएल ने उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम को करीब 459 करोड़ रुपये में खरीदा था। उसी की आड़ में उसने वनभूमि पर आबंटित खनन पट्टों को स्थानीय अधिकारियों से मिलकर अपने नाम करा लिया। जांच रिपोर्टों के मुताबिक ओबरा वन प्रभाग के तत्कालीन वन बंदोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर से भारतीय वन अधिनियम की धारा-9 और 11 के तहत दाखिल सात मामलों में भारतीय वन अधिनियम की धारा-4 के तहत अधिसूचित 1083.231 हेक्टेयर वनभूमि कंपनी के पक्ष में निकाल दी। इसमें 253.176 हेक्टेयर भूमि में कैमूर वन्यजीव विहार की शामिल थी। वीके श्रीवास्तव ने 1987 में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत अधिसूचित 399.51 हेक्टेयर संरक्षित वन क्षेत्र में से इस 230.844 हेक्टेयर वन भूमि को भी जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में गैरकानूनी ढंग से निकाल दिया जिसकी पुष्टि उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने भी नहीं की थी। 
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जांच रिपोर्ट के अंशों पर गौर करें तो वीके श्रीवास्तव उपरोक्त मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते थे। वे केवल उन 12 गांवों के मामले की सुनवाई कर सकते थे, जिसके लिए राज्य सरकार ने 21 जुलाई, 1995 को जारी आदेश में सहायक अभिलेख अधिकारी शिव बक्श लाल को विशेष वन बंदोबस्त अधिकारी, सोनभद्र नियुक्त किया था। हालांकि इसके लिए भी शासन की ओर से उनकी नियुक्ति होनी चाहिए थी।
वीके श्रीवास्तव के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में अपील करने की राय मांगी लेकिन तत्कालीन बसपा सरकार ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन सचिव पवन कुमार ने 12 सितंबर, 2008 को वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक को पत्र संख्या-3792/14-2-2008 के माध्यम से राज्य सरकार के निर्णय से अवगत भी कराया और सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत विज्ञप्ति जारी किए जाने हेतु दो दिनों के अंदर आवश्यक प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्देश दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव (वन) ने 25 नवंबर, 2008 को अधिसूचना जारी कर सोनभद्र में भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत शासकीय दस्तावेजों में वन क्षेत्र को कम कर दिया। इसमें जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में निकाली गई वन भूमि भी शामिल थी। 
इतना ही नहीं अपनी कारगुजारियों को कानूनी जामा पहनाने के लिए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन बसपा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में लंबित जनहित याचिका (सिविल)-202/1995 में अपील दाखिल कर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में विवादित खनन लीज का नवीनीकरण करने के लिए अनुमति मांगी। साथ ही उसने उप्र सरकार द्वारा 25 नवंबर, 2008 को भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत जारी अधिसूचना की पुष्टि करने का अनुरोध किया। उच्चतम न्यायालय ने मामले में उच्च प्राधिकार समिति (सीईसी) से रिपोर्ट तलब की। जवाब में सीईसी के तत्कालीन सदस्य सचिव एमके जीवराजका ने 10 अगस्त, 2009 को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। बाद में यह मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को स्थानांतरित हो गया। 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और सीईसी ने भूमि हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया को गलत बताया था। दोनों ने अदालत में कहा कि ये जमीन जंगल की है। इसको किसी और काम के लिए नहीं दिया जा सकता। वर्ष 2012 में राज्य सरकार बदल गई। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बसपा सरकार के फैसले का विरोध किया। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता शमशाद और अभिषेक चौधरी ने एनजीटी में यूपी सरकार का पक्ष रखा और कहा, 'ये जंगल की जमीन है और किसी और काम के लिए नहीं दी जा सकती। जमीन की लीज जेपी को दिए जाने का पूर्व सरकार का फैसला बिल्कुल गलत है।'

इस मामले की जांच करने वाले केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के तत्कालीन वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान, अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार, से बात की गई तो उन्होंने कहा, ‘आज यह खबर सुनकर बड़ी राहत मिली है। पूरी सर्विस के दौरान मैंने यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है। उद्योगपतियों ने साजिश रचकर वनभूमि को हड़प लिया है जो गरीबों और आदिवासियों के काम आता। इस मामले में स्थानीय जनता का भरपूर सहयोग मिला। जांच के दौरान उन्होंने एक-एक गाटे की सूचना और कागजात मुहैया कराये। इस मामले में राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों ने जेपी समूह के एजेंट के रूप में कार्य किया है। उन्हें एनजीटी के आदेश और विंध्याचल मंडलायुक्त की जांच आख्या की संस्तुति के आधार पर दंड जरूर मिलना चाहिए। साथ ही इस मामले में लापरवाही बरतने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ वन-विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही जेपी समूह से जल्द से जल्द वनभूमि वापस लेकर उससे राजस्व क्षति की वसूली की जानी चाहिए।’

जनहित याचिका के माध्यम से इसे उच्चतम न्यायालय में उठाने वाले चंदौली जनपद के शमशेरपुर गांव निवासी बलराम सिंह उर्फ गोविंद सिंह का कहना है कि उद्योगपतियों और उत्तर प्रदेश की सरकार की मिलीभगत से वनभूमि को लूटने के मामले में एनजीटी ने न्याय किया है। इसका आदिवासियों और गरीबों के साथ पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा। 

ये भी पढ़ें-


जेपी समूह को 409 करोड़ माफ (भाग-6) 

एनजीटी के आदेश को पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें-

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

आदिवासियों को अब तमिलनाडु में भी जारी हो सकेंगे पट्टे, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का आदेश किया रद्द


30 अप्रैल 2008 को जारी अपने अंतरिम आदेश में मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि इस कोर्ट की अनुमति के बगैर वनवासियों को जमीन का कोई पट्टा जारी नहीं किया जाएगा।

वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली। आदिवासियों को अब तमिलनाडु में भी अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वननिवासी (वनाधिकार मान्यता) कानून-2006, संक्षेप में वनाधिकार कानून, के तहत पट्टे जारी हो सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें इसने वनाधिकार कानून के तहत वनवासियों को पट्टे जारी करने पर स्थगनादेश जारी कर दिया था। मद्रास हाई कोर्ट के इस स्थगनादेश के खिलाफ केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने याचिका दायर की थी।

पूरे देश में वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों को पट्टा जारी कर वन भूमि का आबंटन किया जा रहा है लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के आदेश की वजह से तमिलनाडु में यह रुक गया था क्योंकि मद्रास हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2008 को एक अंतरिम आदेश जारी कर कहा था कि हाई कोर्ट की अनुमति के बगैर वनवासियों को जमीन का कोई पट्टा जारी नहीं किया जाएगा।

इसके बाद केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने एक याचिका दायर की थी, जिसमें इस संबंध में दायर रिट याचिका को सुप्रीम कोर्ट भेज देने का आग्रह किया गया था। मंत्रालय ने हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका भी दायर की थी। इसके बाद मंत्रालय ने तमिलनाडु सरकार पर इस बात के लिए जोर डाला कि वह इस अंतरिम आदेश को रद्द कराने के लिए याचिका दायर करे।


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे और जस्टिस अमिताभ राय की तीन सदस्यीय बेंच ने इस मामले पर कल सुनवाई की थी। इस मामले में जनजातीय कार्य मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल पीएस नरसिम्हा अदालत में उपस्थित हुए थे। सरकार की ओर से दलील देते हुए उन्होंने कहा कि वनाधिकार कानून पूरे देश में लागू किया जा रहा है। इसलिए सिर्फ एक राज्य में इसे रोकने का कोई तुक नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट उनकी इस बात से सहमत था और इस तरह इसने 30 अप्रैल 2008 के मद्रास हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया।

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

सोनभद्र खनिज विभाग ने एक साल में बढ़ा ली 100 गुनी कमाई

गोलमालः विभाग की कमाई वित्तीय वर्ष 2010-11 में पिछले साल की कमाई 217 करोड़ रुपये से बढ़कर 27 हजार करोड़ रुपये से अधिक हुई।

reported by Shiv Das Prajapati

सोनभद्र। जनपद में मजदूरों और राहगीरों की मौत का इतिहास लिखने वाले खनन के धंधे से राज्य सरकार को हर साल 27 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी होती है। यह दावा जिला खनन विभाग का है।  

उसने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत मांगी गई सूचना में यह दावा किया है। चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने जिला खनिज विभाग की कमाई में वित्तीय वर्ष 2009-10 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2010-11 में अचानक 100 गुने का इजाफा कर दिया है। यूं कहें कि जिला खनिज विभाग की आमदनी 217 करोड़ रुपये से बढ़कर अगले साल कुल 26,271 करोड़ रुपये हो गई। हालांकि इस कमाई का असर धरातल पर कहीं भी दिखाई नहीं दिया। खनन क्षेत्र में अवैध खनन से होने वाले खनन हादसों में ना ही कोई कमी आई और ना ही पत्थर की घातक खदानों में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा ही सुनिश्चित हो पाई।

27 फरवरी, 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में शारदा मंदिर के पीछे स्थित पत्थर की एक खदान के धंसने से हुई 10 मजदूरों की मौत का मामला जिला खनिज विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के नतीजे के रूप में जिला प्रशासन और सरकार को मुंह चिढ़ा रहा है। वर्तमान में जनपद में चल रहे अवैध खनन के मामले में भी जिला खनिज विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्यशाली सवालों के घेरे में है।
  
सोनभद्र के तत्कालीन जिला खान अधिकारी एसके सिंह द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत वनांचल एक्सप्रेसको उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग ने वित्तीय वर्ष 2010-11 में राज्य सरकार को 26,271 करोड़ रुपये का राजस्व दिया था जबकि वित्तीय वर्ष 2009-10 में यह आंकड़ा 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये था। इस तरह विभाग की कमाई में एक साल में 100 गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। 
8 अक्टूबर, 2012 को एसके सिंह की ओर से पत्रकार शिव दास प्रजापति को मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार को 27,198 करोड़ रुपये का राजस्व दिया था। वहीं वित्तीय वर्ष 2012-13 के सितंबर तक विभाग ने राज्य सरकार के कोष में 8,669 करोड़ रुपये जमा किया था।

पूर्व में सोनभद्र के तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत शिव दास प्रजापति को ही उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग से राज्य सरकार को वित्तीय वर्ष 2009-10 में कुल 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। वित्तीय वर्ष 2008-09 में यह आंकड़ा 120 करोड़ 94 लाख 64 हजार रुपये था। वित्तीय वर्ष 2007-08 में जिला खनिज विभाग ने राज्य सरकार के कोष में 170 करोड़ 90 लाख 25 हजार रुपये जमा किया था। वित्तीय वर्ष 2006-07 में यह आंकड़ा 147 करोड़ 52 लाख 6 हजार रुपये था। 

अगर सोनभद्र से राज्य सरकार को हर साल मिलने वाले औसत राजस्व की बात करें तो उसे वहां के 16 विभागों से कुल 8 अरब रुपये का राजस्व प्राप्त होता है जबकि इसमें केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाला राजस्व शामिल नहीं है। सोनभद्र प्रशासन से सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत जनपद गठन के बाद प्राप्त राजस्व एवं खर्च धन की जानकारी मांगी गई थी। जवाब में जिला प्रशासन की ओर से अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) ने 16 विभागों से प्राप्त होने वाले राजस्व का विवरण उपलब्ध कराया। 

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य सरकार को सोनभद्र से सबसे अधिक राजस्व वाणिज्यकर विभाग और खनिज विभाग से मिलता है। वित्तीय वर्ष 2009-10 में राज्य सरकार को यहां से कुल 774 करोड़ 44 लाख 95 हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। इसमें 372 करोड़ 5 लाख 69 हजार रुपये वाणिज्यकर विभाग और 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये खनिज विभाग से मिले थे।

इनके अलावा विद्युत विभाग से 98 करोड़ 10 लाख 35 हजार रुपये, आबकारी विभाग से 30 करोड़ 4 लाख 94 हजार रुपये, परिवहन विभाग से 19 करोड़ 91 लाख 17 हजार रुपये, स्वास्थ्य विभाग से 15 करोड़ 91 लाख 59 हजार रुपये और वन विभाग से 14 करोड़ 68 लाख, 19 हजार रुपये का राजस्व उत्तर प्रदेश सरकार को प्राप्त हुआ था। राज्य सरकार को राजस्व देने वाले अन्य विभागों में भू-राजस्व, मनोरंजन, नजूल, शिक्षा, चिकित्सा, सिंचाई, लोक निर्माण, मंडी और जिला उद्योग विभाग शामिल हैं। 

जिला प्रशासन के उपरोक्त आंकड़ों में केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाला राजस्व शामिल नहीं है। अगर इसमें उसे शामिल कर लिया जाए तो उपरोक्त आंकड़ा 10 अरब से ज्यादा पहुंच जाएगा। इससे पूर्व के वित्तीय वर्षों के राजस्व पर ध्यान दें तो वर्ष 2008-09 में 2007-08 और 2006-07 में राज्य सरकार को सोनभद्र से क्रमशः 539.1246 करोड़ रुपये, 739.1063 करोड़ रुपये और 584.2617 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था।

                                                          ( यह रिपोर्ट वनांचल एक्सप्रेस के प्रवेशांक में प्रकाशित हो चुकी है।)