30 अप्रैल 2008 को जारी अपने अंतरिम आदेश में मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि इस कोर्ट की
अनुमति के बगैर वनवासियों को जमीन का कोई पट्टा जारी नहीं किया जाएगा।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली। आदिवासियों को अब तमिलनाडु में भी अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत
वननिवासी (वनाधिकार मान्यता) कानून-2006, संक्षेप में वनाधिकार कानून, के तहत पट्टे जारी हो
सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया है,
जिसमें इसने वनाधिकार कानून के तहत वनवासियों को पट्टे जारी
करने पर स्थगनादेश जारी कर दिया था। मद्रास हाई कोर्ट के इस स्थगनादेश के खिलाफ
केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने याचिका दायर की थी।
पूरे देश में वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों एवं अन्य परंपरागत वन
निवासियों को पट्टा जारी कर वन भूमि का आबंटन किया जा रहा है लेकिन मद्रास
हाईकोर्ट के आदेश की वजह से तमिलनाडु में यह रुक गया था क्योंकि मद्रास हाई कोर्ट
ने 30 अप्रैल 2008 को एक अंतरिम आदेश जारी कर कहा था कि हाई कोर्ट की अनुमति के बगैर वनवासियों
को जमीन का कोई पट्टा जारी नहीं किया जाएगा।
इसके बाद केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने एक याचिका दायर की थी,
जिसमें इस संबंध में दायर रिट याचिका को सुप्रीम कोर्ट भेज
देने का आग्रह किया गया था। मंत्रालय ने हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ एक विशेष
अनुमति याचिका भी दायर की थी। इसके बाद मंत्रालय ने तमिलनाडु सरकार पर इस बात के
लिए जोर डाला कि वह इस अंतरिम आदेश को रद्द कराने के लिए याचिका दायर करे।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे और जस्टिस अमिताभ राय की तीन
सदस्यीय बेंच ने इस मामले पर कल सुनवाई की थी। इस मामले में जनजातीय कार्य
मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल पीएस नरसिम्हा अदालत में उपस्थित हुए
थे। सरकार की ओर से दलील देते हुए उन्होंने कहा कि वनाधिकार कानून पूरे देश में
लागू किया जा रहा है। इसलिए सिर्फ एक राज्य में इसे रोकने का कोई तुक नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट उनकी इस बात से सहमत था और इस तरह इसने 30 अप्रैल 2008
के मद्रास हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया।
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