लक्ष्मण प्रसाद प्रजापति |
reported by Shiv Das Prajapati
"नाहीं, हमशे न सपरी...अरे कहां पावल जाई बाइस हजार...गोड़े के अपही बाटी...चाक मिलल नाहीं बा...देखा चाक मिलल नाहीं बा...देखा इहै धीरे-धीरे चलत बा...हम कितना सपराइब।"
यह कहना है सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज विकासखंड के बहुअरा गांव निवासी लक्ष्मण प्रसाद प्रजापति का। वह घर पर मिट्टी से पुरवा, परई, दीया, हड़िया, गगरी, घड़ा आदि बनाने का काम करते हैं। इसे बनाने के लिए उनके पास पत्थर की पारंपरिक चाक है। इसे चलाने में उन्हें बहुत ही ताकत लगानी पड़ती है। वह उम्र के करीब 58वें साल में जिंदगी गुजार रहे हैं। ढलती उम्र उन्हें पत्थर की भारी पारंपरिक चाक चलाने में परेशानी भी खड़ा करती है। इससे उपजी चिंता की लकीरें उनके माथे पर साफ झलकती हैं।