लक्ष्मण प्रसाद प्रजापति |
reported by Shiv Das Prajapati
"नाहीं, हमशे न सपरी...अरे कहां पावल जाई बाइस हजार...गोड़े के अपही बाटी...चाक मिलल नाहीं बा...देखा चाक मिलल नाहीं बा...देखा इहै धीरे-धीरे चलत बा...हम कितना सपराइब।"
यह कहना है सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज विकासखंड के बहुअरा गांव निवासी लक्ष्मण प्रसाद प्रजापति का। वह घर पर मिट्टी से पुरवा, परई, दीया, हड़िया, गगरी, घड़ा आदि बनाने का काम करते हैं। इसे बनाने के लिए उनके पास पत्थर की पारंपरिक चाक है। इसे चलाने में उन्हें बहुत ही ताकत लगानी पड़ती है। वह उम्र के करीब 58वें साल में जिंदगी गुजार रहे हैं। ढलती उम्र उन्हें पत्थर की भारी पारंपरिक चाक चलाने में परेशानी भी खड़ा करती है। इससे उपजी चिंता की लकीरें उनके माथे पर साफ झलकती हैं।
लक्ष्मण और उनकी पचपन वर्षीय पत्नी धनेशरा दोनों अनपढ़ हैं। दंपति अपना नाम भी लिखना नहीं जानते हैं। हालांकि उन्होंने अपनी छह बेटियों को अनपढ़ नहीं रहने दिया। उनकी चार बेटियों तारा, सितारा, हेमा और पूजा की शादी हो चुकी है। वे अपने ससुराल में रहती हैं। अभी उनकी दो बेटियों माया और तन्नू की शादी नहीं हुई है। दोनों उनके साथ ही रहकर पढ़ाई करती हैं। उन्नीस साल की माया 12वीं की छात्रा है जबकि 12 साल की तन्नू सातवीं कक्षा में पढ़ती है। समय मिलने पर वह घर के पारंपरिक काम में हांथ बंटाती हैं। लक्ष्मण के पास खेतीहर भूमि के नाम पर सात बिस्वा भूमि है जिसमें वह धान और गेहूं की खेती करते हैं। पारंपरिक काम के ठप होने पर किसानों से बंटाई पर खेत लेकर फसलें उगाते हैं या उनकी मजदूरी करते हैं। इतना सब करने के बाद मुश्किल से उनके घर का खर्च चल पाता है।
बहुअरा निवासी लक्ष्मण प्रजापति गढ़ाई करते हुए। |
मनरेगा के तहत परिवार का जॉब कार्ड बना है और शुरू में उन्होंने मजदूरी भी की थी। हालांकि पिछले 10 सालों से उन्होंने मनरेगा के तहत मजदूरी नहीं की है। उनका परिवार प्रधानमंत्री ग्रामीण खाद्यान्न योजना के तहत आच्छादित है। अभी उनका परिवार मिट्टी और खपरैल से बने कच्चे मकान में रहता है। हालांकि उन्हें प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत आवास मिल चुका है और बन रहा है।
लक्ष्मण प्रजापति का घर |
जब लक्ष्मण प्रजापति से उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा दिए जाने वाले विद्युत चाक बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें विद्युत चाक नहीं मिला है। जब उनसे फॉर्म भरने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पांच-छह महीने पहले फॉर्म भरा था और सफाईकर्मी लेखपाल को ले जाकर दे दिए थे। लेकिन अभी तक विद्युत चाक नहीं मिला है। गढ़ाई से परिवार का खर्च चल जाने के बाबत पूछे जाने पर वह बताते हैं कि अगर किसानों की मजदूरी नहीं करेंगे तो घर का खर्चा नहीं चल पाएगा।
उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन गठित माटी कला बोर्ड की ओर से वितरित की जा रही विद्युत चाक के वितरण को लेकर प्रतापगढ़ जिले के कामता प्रसाद प्रजापति भी सरकार के खिलाफ नाराजगी जताते हैं। वे बताते हैं कि उन्होंने विद्युत चाक के लिए सभी औपचारिकताएं पूरा करते हुए जिला खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के कार्यालय में निर्धारित प्रारूप में आवेदन-पत्र जमा किया था लेकिन अभी तक उन्हें विद्युत चाक नहीं मिला है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य धर्मवीर प्रजापति से भी फोन पर विद्युत चाक नहीं दिए जाने की शिकायत की थी लेकिन उन्हें अभी तक राहत नहीं मिली है।
कुम्हारों से 22 हजार रुपये लेकर कुम्हारी कला सीखाएगी और स्वरोजगार कराएगी भाजपा सरकार
कुम्हारों की समस्याओँ और उनके समाधान पर लगातार काम कर रही प्रजापति शोषित समाज संघर्ष समिति (पीएस4) के प्रमुख छेदी लाल निराला ने कहा कि भाजपा की सरकारों में कुम्हारों पर लगातार हमला हो रहा है। इससे लेकर लोगों में काफी गु्स्सा है। इन सभी से ध्यान हटाने के लिए वह ऐसी फालतू योजनाएं ला रही है जिसका कुम्हारों को कोई खास फायदा नहीं मिलने वाला है और ना ही उनके विकास में ये सहायक साबित होंगे। अगर सरकार कुम्हारों का भला ही चाहती है तो वह उन्हें मुफ्त में प्रशिक्षण दे और उन्हें स्वरोजगार शुरू करने के लिए आवश्यक धनराशि अनुदान पर उपलब्ध करावे।
ऊर्जांचल प्रजापति महासंघ के संरक्षक इंजीनियर चेखुर प्रजापति ने कहा कि सरकार की यह योजना कुम्हारों को कोई खास राहत नहीं देगी। दो हजार रुपये देकर प्रशिक्षण लेना माटी कला का काम कर रहे कुम्हारों को आसान नहीं होगा। 20 हजार रुपये का ऋण लेने के लिए उन्हें कम से कम 2000-3000 रुपये घूस देना पड़ेगा। अगर सरकार ये प्रशिक्षण निःशुल्क देकर उनको अपना काम शुरू करने के लिए अनुदान देगी तो निश्चित रूप से कुम्हारों को यह योजना राहत देगी।
कुम्हारों से पैसे लेकर उन्हें कुम्हारी कला सीखाने के सवाल पर राष्ट्रीय भागीदारी पार्टी के संयोजक मंडल के सदस्य चुन्नी लाल प्रजापति कहते हैं कि भारत सरकार की यह योजना कुम्हारों के लिए बिल्कुल ही कारगर नहीं होगी क्योंकि इसमें कोई मुनाफा नहीं है। सरकार कुम्हारों को मुख्यधारा से नहीं जोड़ना चाहती है, इसलिए उन्हें उनके पारंपरिक कार्य का प्रशिक्षण दे रही है। पंजीकरण और प्रशिक्षण शुल्क के रूप में वह कुम्हारों से पहले ही 2000 रुपये ले रही है। उसके बाद उन्हें 20000 रुपये का ऋण दे रही है। इस तरह वह उनसे स्वरोजगार के कराने के नाम पर 22000 रुपये वसूल रही है। कुम्हार कहां से इतना पैसा कमा पाएगा? कुम्हारों की हालत को देखते हुए सरकार को उन्हें मुफ्त में प्रशिक्षण देना चाहिए और विद्युत चाक वितरित करना चाहिए।
भारतीय समता समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहिन्दर कुमार ने कहा कि कुम्हारों को कुम्हारी कला कौन सिखाएगा? कुम्हार खुद इसमें निपुण है। अगर किसी कुम्हार को कुम्हारी कला सीखनी होगी तो वह सीधे कुम्हार समुदाय के व्यक्ति से सीख लेगा। सरकार को पैसे क्यों देगा? दरअसल भाजपा की केंद्र सरकार प्रशिक्षण और रोजगार के नाम कुम्हारों को लूटने के लिए यह योजना लाई है। इससे कुम्हारों का कोई भला नहीं होने वाला है।
भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल राष्ट्रीय भागीदारी पार्टी (पी.) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमचंद प्रजापति ने कहा कि कामगार और शिल्पकार जातियों के लिए भाजपा की सरकारों द्वारा चलाई जा रही इस प्रकार की सभी योजनाएं केवल लोगों को मूर्ख बनाकर वोट लेने के लिए लाई जा रही हैं। इससे लोगों को कोई खास फायदा नहीं मिल रहा है। वास्तव में भाजपा की सरकार लोगों को उनके पारंपरिक कामों में फंसाकर उनका शोषण करना चाहती है।
www.vananchalexpress.com पर 'कुम्हारों से 22 हजार रुपये लेकर कुम्हारी कला सीखाएगी और स्वरोजगार कराएगी भाजपा सरकार' शीर्षक से प्रकाशित खबर पर कुम्हार समुदाय के लोगों ने निम्नलिखित प्रतिक्रियाएं वनांचल एक्सप्रेस के पास भेजी हैं जिन्हें नीचे दिया जा रहा है-
चंदौली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ाने वाले राम गोविंद प्रजापति ने कहा है कि सरकार की तरफ से प्रजापति समाज को अनुदान में देने के लिए कुछ नहीं है और जो प्रशिक्षण लेना चाहेगा उसको ₹22000 देना पड़ेगा। इस नीति का पालन करने के लिए तो हमें नहीं लगता कि कोई प्रजापति तैयार होगा क्योंकि लॉकडाउन से प्रजापति समाज की स्थिति और डाउन हो चुकी है। सरकार को चाहिए था कि नि:शुल्क प्रशिक्षण के साथ बुनकरों की भांति सब्सिडी देती तो कुम्हार जरूर तैयार होते।
वहीं दक्ष ग्लोबल वेबसाइट के जरिए देश भर के कुम्हारों का डाटा तैयार करने वाले और दिल्ली निवासी इंद्रजीत प्रजापति ने कहा कि भाजपा सरकार सीधे-सादे समाज को मूर्ख समझकर पैसा उगाही करने की योजना संचालित की है।क करोड़ों और अरबों रुपए के ऋण चुपके-चुपके हो जाते हैं लेकिन कुम्हार समुदाय के लोगों को 20,000/- रुपए के ऋण के लिए पात्रता एवं मद का मापदंड तय किया गया है। भाजपा सरकार गरीब कुम्हारों पर गजब उपकार उपकार कर रही है! यह एक धोखा ही है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधार्थी एवं गाजीपुर निवासी अनिल प्रजापति लिखते हैं- सरकारी संस्थाओं को लूटने के बाद अब छोटी जातियों को उनके ट्रेडिशनल व्यवसाय बढ़ाने के नाम पर लुभाने और लूटने की पूरी प्लानिंग हो चुकी है। जैसा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव की तारीखें भी धीरे धीरे नजदीक आ रही हैं। इसलिए कुम्हार समुदाय के लोगों को ऐसी बेकार योजनाओं से सतर्क रहना चाहिए।
देवरिया के महुआडीह निवासी जयनाथ प्रजापति लिखते हैं- भाजपा सरकार कुम्हारों को 50 वर्ष पहले का कुम्हार बनाना चाहती है। कुम्हारों के बच्चों को अच्छी शिक्षा की योजना, इनके अच्छे रोजगार की योजना, इनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की योजना सरकार के पास नहीं है। ये आम जन के लिए पकौड़ी से अधिक कुछ नहीं सोच सकती। हम सब हिन्दू बने रहें और कमल का बटन दबाते रहें, हमारे लिए यह सरकार ऐसा ही सोचती है।
जौनपुर निवासी राम पाल प्रजापति लिखते हैं- पहले सुना था कि कुम्हारों को चक्की फ्री मिलना था। ज्यादातर कुम्हार तो 22 हजार नहीं दे पाएंगे।
आजमगढ़ निवासी प्रो. एसएम प्रजापति लिखते हैं- भाजपा सरकार पुरानी व्यवस्था को लागू करना चाहती है ताकि कुम्हार न जी सकें और न ही मर सकें।
वाराणसी निवासी महेश कुमार प्रजापति लिखते हैं- जो इस काम में निपुण् हैं और अब वे कोई और नया काम नहीं सीख सकते हैं, उनके लिए यह योजना लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
वहीं राम यश प्रजापति लिखते हैं- वैसे कुम्हार समुदाय की आर्थिक स्थिति को देखते हुए इन्हें अनुदान की ज्यादा आवश्यकता है, ऋण की नही।
बता दें कि प्लास्टिक, फाइबर और पन्नी की वजह से दम तोड़ रही कुम्हारी कला को सीखाने और स्वरोजगार शुरू करने के लिए भाजपा की केंद्र सरकार ने इच्छुक कुम्हारी कला कारीगरों यानी कुम्हारों से 22 हजार रुपये फीस लेने का निर्देश दिया है। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के वाराणसी मंडल कार्यालय ने विज्ञापन जारी कर पूर्वांचल के 12 जिलों के कुम्हारों से आवेदन मांगा है।
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अधीन आता है। उसके वाराणसी मंडल कार्यालय की ओर से जारी विज्ञापन में कहा गया है कि कुम्हारी कला का प्रशिक्षण भारत सरकार के 'स्ट्रेंथनिंग दी पोटेंशियल ऑफ इंडिया' कार्यक्रम के तहत दिया जाएगा। आयोग के वाराणसी मंडल के तहत कुल 12 जिले वाराणसी, सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, गाजीपुर, भदोही, बलिया, जौनपुर, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, प्रयागराज और अंबेडकर नगर आते हैं। कुम्हारी कला सीखने के इच्छुक कुम्हारों को पंजीकरण और प्रशिक्षण शुल्क के रूप में क्रमशः 100 एवं 1900 रुपये देने होंगे। विज्ञापन में साफ लिखा है कि इस योजना के तहत किसी तरह का कोई अनुदान उपलब्ध नहीं है।
विज्ञापन के मुताबिक 'स्ट्रेंथनिंग दी पोटेंशियल ऑफ इंडिया' कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षुओं को रत्नाकर बैंक लिमिटेड के माध्यम से 20 हजार रुपये का ऋण स्वीकृत किया जाएगा जिसमें 17 हजार रुपये चाक के लिए और 3000 रुपये मिट्टी, ईंधन आदि के लिए स्वीकृत किया जाएगा। यह ऋण प्रधानमंत्री शिशु मुद्रा योजना या क्रेडिट गारंटी के तहत स्वीकृत होगा।
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