by दिनकर कपूर
सोनभद्र जनपद हमारे प्रदेश का प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। यहां अनपरा,
ओबरा, लैन्को, आदित्य बिड़ला ग्रुप की रेनूसागर,
एनटीपीसी की बीजपुर और शक्तिनगर की तापीय परियोजनाओं,
आदित्य बिरला ग्रुप के हिण्डाल्को एल्यूमीनियम कारखाना,
हाईटेक कार्बन, कैमिकल प्लांट समेत कोयला की बीना,
ककरी, खड़िया खदानों और जेपी समूह के चुर्क व डाला सीमेन्ट कारखानों
में हजारों ठेका श्रमिक कार्यरत है। पहले इनमें से अधिकतर उद्योगों में मजदूर
कैजुअल की श्रेणी में रखे जाते थे, जिन्हें बाद में नियमित कर दिया जाता था और प्रबंधतंत्र के
नियंत्रण में उनका कामकाज होता था। 1990 के बाद उदारीकरण के पच्चीस साल की कथित विकास यात्रा ने
खेती,
लघु उद्योग को तबाह कर दिया और बड़े पैमाने पर रोजगार के
संकट को पैदा किया है। रोजगार संकट के इस दौर में लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते
हुए ठेकेदारी प्रथा चलायी गयी। इन्हीं नीतियों के बाद से इस क्षेत्र में भी
ठेकेदारी प्रथा शुरू कर दी गयी जबकि इन उद्योगों में ठेकेदारी प्रथा की कतई जरूरत
नहीं थी।
आज भी खासतौर पर अनपरा, रेनूसागर और ओबरा में काम कर रहे ठेका मजदूरों की निगरानी
और उनसे काम कराने का कार्य प्रबंधतंत्र ही करता है। ठेकेदार तो महज उद्योग में
मजदूरों की सप्लाई करते हैं और इस काम की मोटी रकम वसूलते है। इससे उद्योग के साथ
मजदूर का भी नुकसान होता है। बिना जरूरत के चलाई जा रही ठेकेदारी प्रथा का कारण
साफ है ठेकेदारी प्रथा द्वारा संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार का लाभ उठाना और सस्ते लेबर
से काम कराकर अकूत मुनाफा कमाना। वस्तुगत सच्चाई यह है कि यहां ठेका श्रमिक लम्बे
समय से एक ही जगह काम कर रहे है। 20 साल से एक ही पद पर काम करने वाला मजदूर ठेका मजदूर रह ही
नहीं सकता है। ठेका श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम की धारा 10 की विधिक स्थिति यह है कि कार्य की स्थायी प्रकृति के
निर्धारण का अंतिम अधिकार राज्य सरकार के पास है। बाबजूद इसके प्रदेश में बनी
विभिन्न दलों की सरकारों ने अपने इस विधिक अधिकार का उपयोग करके ठेका मजदूरों को
नियमित नहीं किया। हालत इतनी बुरी है कि अनपरा और ओबरा तापीय परियोजना के ठेका
मजदूरों के नियमितीकरण के लिए आइपीएफ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर
की जिसमें उ0 प्र0 सरकार को हाईकोर्ट ने इसे लागू करने का आदेश दिया पर
मायावती और अखिलश दोनों सरकारों ने हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया
परिणामतः हमें अवमानना याचिका दायर करना पड़ी, जिसमें हाईकोर्ट ने उ0 प्र0 सरकार से जबाब तलब किया है।
इस औद्योगिक क्षेत्र में कानून का
शासन नहीं है। श्रम कानूनों द्वारा प्रदत्त न्यूनतम मजदूरी,
रोजगार कार्ड, हाजरी कार्ड, बोनस और वेतन पर्ची समेत तमाम अधिकार अभी भी मजदूरों को कई
उद्योगों में नहीं मिलते है। हालत इतनी बुरी है कि महिला संविदा श्रमिकों को तो
मनरेगा मजदूरी से भी कम में मात्र 120-150 रूपए में मजदूरी करनी पड़ रही है। मजदूरों की भविष्य निधि
की बड़े पैमाने पर लूट हुई है। यहां तक कि रेनूकूट के अलावा अन्य औद्योगिक
क्षेत्रों में ईएसआई (कर्मचारी राज्य बीमा) के अस्पताल तक नहीं है और परियोजनाओं
के अस्पतालों में ठेका मजदूरों को स्थायी कर्मचारी की तरह इलाज की सुविधा नहीं
मिलती है। इस क्षेत्र में जहां लाखों औद्योगिक श्रमिक रहते है वहां उनके इलाज की
हालत को एक घटना से समझा जा सकता है। विगत दिनों हमारे एक ठेका मजदूर साथी की
पत्नी की तबीयत खराब हुई तो उन्हें रात में अनपरा तापीय परियोजना के अस्पताल में
भर्ती किया गया। उस अस्पताल की स्थिति यह थी कि वहां न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं थी।
बीपी की मशीन से लेकर अल्ट्रा साउंड तक कि मशीने खराब पड़ी हुई थी। साथी की पत्नी
की हालत खराब होने पर उन्हें लेकर नेहरू अस्पताल जयंत गए जहां भी सिटीस्कैन तक की
व्यवस्था नहीं थी और इस पूरे जिले में एक भी न्यूरों का डाक्टर नहीं है।
परिणामस्वरूप उन्हें रात में ही बीएचयू ले जाना पड़ा। बनारस ले जाते समय एम्बुलेंस
के ड्राइवर ने बताया कि महान में बिरला के तापीय विद्युत उत्पादन परियोजना और सासन
में अम्बानी के तापीय विद्युत उत्पादन परियोजना में कोई अस्पताल ही नहीं है। वहां
मात्र एक ऐम्बुलेंस रखी गयी है जो मरीजों को जयंत नेहरू अस्पताल लाती है।
सोनभद्र में खनन वह दूसरा क्षेत्र है जहां बड़े पैमाने पर मजदूर कार्यरत है। यह
खनन क्षेत्र मौत की धाटी में तब्दील हो चुका है। यह अवैध खनन का कारोबार माननीय
सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के आदेशों और कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए हो
रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पेशल लीव पेटिशन ‘सी’ नम्बर 19628-19629 में उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि ‘5 हेक्टेयर से कम रक्बे में बिना पर्यावरणीय अनुमति के कोई
खनन नहीं किया जायेगा।‘ बाबजूद इसके पर्यावरणीय अनुमति लिए बिना जनपद में खनन जारी
है। इसी प्रकार गोवा फाउंडेशन के केस में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा आदेश दिया
गया है कि जिन सेचुंरी एरिया का नोटिफीकेशन हुआ है वहां 1 किलोमीटर और जहां नोटिफीकेशन नहीं हुआ है वहां 10 किलोमीटर एरिया में खनन न हो। गौरतलब हो कि कैमूर सेंचुरी
एरिया का नोटिफीकेशन नहीं हुआ है फिर भी इसकी 10 किलोमीटर की परिधि में खनन जारी है। हाल ही में सोनभद्र
निवासी ओम प्रकाश की जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुनः आदेश दिया है कि
कैमूर सेचुंरी एरिया से एक किलोमीटर की परिधि में खनन न होने दिया जाए। पर यहां
हालत इतनी बुरी है कि कैमूर सेचुंरी एरिया के अंदर पटवध गांव में मुरया पहाड़ी पर राकेश
गुप्ता खुलेआम खनन करा रहे है और खनन में ब्लास्टिंग हो रही है। सलखन गांव में
सेचुंरी एरिया में ही आर0 बी0 स्टोन क्रशर के नाम से उनका क्रशर चल रहा है। खान विनियम 1961 के अनुसार सड़क, रेलवे टैªक, रिहाइशी इलाकों की 300 मीटर की परिधि के अंदर विस्फोटकों का प्रयोग नहीं हो सकता
परन्तु बारी डाला में वाराणसी-शक्तिनगर मुख्य मार्ग से महज 100 मीटर की दूरी पर रिहाइशी क्षेत्र में खनन में बड़े पैमाने
पर विस्फोट हो रहा है। जिससे मकानों में दरार पड़ गयी है। केन्द्रीय वन और पर्यावरण
मंत्रालय ने तो अपनी रिपोर्ट में बिल्ली मारकुंड़ी के पूरे क्षेत्र में हो रहे खनन
को अवैध माना था और यहां तक कहा कि यह क्षेत्र खनन के लिहाज से खतरनाक क्षेत्र में
तब्दील हो चुका है। इस क्षेत्र में इतना गहरा खनन कर दिया गया जिसमें जमीन से पानी
निकल आया है। कहीं भी खनन के बाद बैक फीलिंग, बेंच आदि काम नहीं हुआ है। जनपद में नदियों तक को बंधक बना
लिया गया है उनकी धार को रोक कर पुल बना दिए गए है। जनपद में खनन में न्यूनतम खान
सुरक्षा नियमों का भी पालन नहीं हो रहा है। खनन में बड़े पैमाने पर विस्फोटकों का
प्रयोग होता है उसका कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता है और खनन मालिक विधिवत योग्यता
प्राप्त ब्लास्टर भी नहीं रखते है। खान सुरक्षा निदेशालय के निर्देशों के बाबजूद
मजदूरों को सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जाते, उनका कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता,
खनन कार्य में लगे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी,
बीमा, ईपीएफ, हाजरी कार्ड, बोनस भी नहीं दिया जाता और भवन व संनिर्माण मजदूर कानून के
तहत खनन मजदूरों के आने के बाद भी उनका पंजीकरण नहीं हुआ है। इसी प्रकार के अवैध
खनन के कारोबार के कारण यहां कार्यरत मजदूरों और आम नागरिकों की जिदंगी खतरे में
रहती है आएं दिन मजदूरों की खनन क्षेत्र में मौतें होती रहती है और पिछले 6 माह में खनन क्षेत्र में 22 मजदूरों की मौतें हो चुकी है। मजदूरों की मौतों पर हर बार
प्रतिवाद दर्ज कराने के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। ऐसी स्थिति में
आने वाले समय में खनन में और भी मजदूरों की मौतें होंगी।
खनन का दूसरा बड़ा क्षेत्र है एनसीएल की कोयला खदानें जिसमें में काम करने वाले
संविदा श्रमिक ज्यादातर आउटसोर्सिगं के काम में नियोजित है। कोयला कामगारों से हुए
समझौतें में भारत सरकार ने माना था कि आउटसोर्सिगं में काम करने वाले श्रमिकों को
उस पद पर नियोजित स्थायी श्रमिक के वेतन और राज्य सरकार द्वारा तय उस श्रेणी की
न्यूनतम मजदूरी के योग के मध्यमान के बराबर मजदूरी का भुगतान किया जायेगा पर कहीं
भी इस समझौतें का अनुपालन नहीं हो रहा है। इन मजदूरों को भी बोनस समेत तमाम अधिकार
नहीं मिलते।
जहां इस क्षेत्र में कई यूनियनों/मजदूर नेताओं या तो आत्म समर्पण कर दिया है
अथवा समझौता कर लिया है वहीं आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) से जुड़ी यूनियनों
ने पूंजी की संगठित ताकत के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। मजदूर तबके पर जारी चैतरफा
हमलों के खिलाफ अपने संघर्ष के बल पर ही मजदूरों का मनोबल बनाये रखने में सफल हुई
और मजदूर वर्ग में नयी जागृति को पैदा किया। आज जिस तरह से संकटग्रस्त पूंजी अपनी
रक्षा के लिए ‘श्रम सुधार‘ के नाम पर मजदूरों के अधिकारों पर हमले कर रही है। मजदूर वर्ग को मजबूती से
अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा होना है, इन हालातों को बदलना होगा और अपने सभी अधिकारों को हासिल
करना होगा। इस बार मई दिवस का यही संदेश है।
(लेखक आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के प्रदेश संगठन महासचिव हैं।)
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