खुद की संपत्ति बढ़ाने में मशगूल जिले के विधायक राज्य सरकार को मुहैया नहीं करा पाये कैंपस निर्माण के लिए भूमि।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
सोनभद्र/लखनऊ। भाजपा की योगी सरकार ने सोनभद्र में कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय फैजाबाद के कैंपस निर्माण की परियोजना को समाप्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश शासन की ओर से जारी शासनादेश में परियोजना को समाप्त करने का कारण महाविद्यालय के लिए भूमि का चयन नहीं होना बताया गया है।
उत्तर प्रदेश शासन के संयुक्त सचिव शिवराम त्रिपाठी ने बृहस्पतिवार को फैजाबाद स्थित कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर अवगत कराया है कि सोनभद्र में कृषि महाविद्यालय (कैंपस) के निर्माण कार्य हेतु उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड को निर्माण एजेंसी नामित किया गया था। वित्तीय वर्ष 2014-15 में 250 लाख रुपये और 2015-16 में 250 लाख रुपये का बजटीय प्रावधान भी किया गया था लेकिन महाविद्यालय के लिए भूमि का चयन न होने के कारण उक्त धनराशियों का उपयोग नहीं किया जा सका। इसलिए सोनभद्र में कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, फैजाबाद के अंतर्गत जनपद सोनभद्र में कृषि महाविद्यालय (कैंपस) की स्थापना संबंधी परियोजना को राज्यपाल की स्वीकृति से समाप्त किया जाता है।
गौरतलब है कि इस परियोजना को पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने अनुमोदित किया था लेकिन जिले के विधायक खुद की संपत्ति बढ़ाने में मशगूल रहे और क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक कृषि महाविद्यालय के कैंपस के लिए भूमि मुहैया नहीं करा सके। यही हाल वर्तमान में सत्ताधारी पार्टी के विधायकों की है। सोनभद्र उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा वनभूमि वाले जिलों में शुमार है और यहां जिला प्रशासन की शह पर अवैध खनन के लिए वन विभाग, ग्राम सभा और जिला परिषद की लाखों एकड़ जमीनों पर उद्योगपतियों और सफेदपोश नेताओं समेत खनन एवं भू-माफियाओं का कब्जा है जिनमें कुछ पूर्ववर्ती और वर्तमान विधायक भी शामिल हैं। पूर्ववर्ती सरकार के एक विधायक ने सुकृत खनन क्षेत्र में एक पेट्रोल पंप की स्थापना आड़ में वन विभाग की कई एकड़ जमीन पर कब्जा कर रखा है। इसी तरह सत्ताधारी पार्टी के कई नेता इन दिनों इन इलाकों में चकबंदी की आड़ में वन विभाग की जमीनों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद सोनभद्र में महाविद्यालय के लिए भूमि का चयन नहीं होने की बात जिले के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की मंशा पर सवाल खड़ा करती है।
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