रविश कुमार
मोदी राज के चार साल में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ कर दिए हैं। क्या वित्त मंत्री ने आपको बताया कि उनके राज में यानी अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच तीन लाख करोड़ के लोन माफ हुए हैं? यही नहीं इस दौरान बैंकों को डूबने से बचाने के लिए सरकार ने अपनी तरफ से हज़ारों करोड़ रुपये बैंकों में डाले हैं। जिस पैसे का इस्तमाल नौकरी देने में खर्च होता, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा देने में खर्च होता वो पैसा चंद उद्योगपतियों पर लुटा दिया गया।
इंडियन एक्स्प्रेस में अनिल ससी की यह ख़बर पहली ख़बर के रूप में छापी गई है। भारत का स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा का जो कुल बजट है उसका दोगुना लोन बैंकों ने माफ कर दिया। 2018-19 में इन तीनों मद के लिए बजट में 1 लाख 38 हज़ार करोड़ का प्रावधान रखा गया है। अगर लोन वसूल कर ये पैसा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर ख़र्च होता तो समाज पहले से कितना बेहतर होता। अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच बैंकों ने मात्र 44,900 करोड़ की वसूली की है। बाकी सब माफ। इसे अंग्रेज़ी में राइट ऑफ कहते हैं। ये आंकड़ा भारतीय रिज़र्व बैंक का है।
मोदी सरकार के मंत्री NPA के सवाल पर विस्तार से नहीं बताते हैं। बस इस पर ज़ोर देकर निकल जाते हैं कि ये लोन यूपीए के समय के हैं। जबकि वो भी साफ साफ नहीं बताते कि 7 लाख करोड़ के NPA में से यूपीए के समय का कितना हिस्सा है और मोदी राज के समय का कितना हिस्सा है। भक्तों की टोली भी झूंड की तरह टूट पड़ती है कि NPA तो यूपीए की देन है। क्या हमारा आपका लोन माफ होता है? फिर इन उद्योगपतियों का लोन कैसे माफ हो जाता है? पांच साल से उद्योगपति चुप हैं। वे कुछ नहीं बोलते हैं। नोटबंदी के समय भी नहीं बोले। उद्योगपति चुप इसलिए कि उनके हज़ारों लाखों करोड़ के लोन माफ हुए हैं? तभी वे जब भी बोलते हैं, मोदी सरकार की तारीफ़ करते हैं।
कायदे से मोदी राज में तो लोन वसूली ज्यादा होनी चाहिए थी। वो तो सख़्त और ईमानदार होने का दावा करती है। मगर हुआ उल्टा। एक तरफ NPA बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई। 21 सरकारी बैंकों ने संसद की स्थायी समिति को जो डेटा सौंपा है उसके अनुसार इनकी लोन रिकवरी रेट बहुत कम है। जितना लोन दिया है उसका मात्र 14.2 प्रतिशत लोन ही रिकवर यानी वसूल हो पाता है।
अब आप देखिए। मोदी राज में NPA कैसे बढ़ रहा है। किस तेज़ी से बढ़ रहा है। 2014-15 में NPA 4.62 प्रतिशत था जो 2015-16 में बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गया। दिसंबर 2017 में NPA 10.41 प्रतिशत हो गया। यानी 7 लाख 70 हज़ार करोड़। इस राशि का मात्र 1.75 लाख करोड़ नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल में गया है। यह जून 2017 तक का हिसाब है। उसके बाद 90,000 करोड़ का NPA भी इस पंचाट में गया। यहां का खेल भी हम और आप साधारण लोग नहीं समझ पाएंगे।
इस ख़बर में बैंक के किसी अधिकारी ने कहा है कि लोन को माफ करने का फैसला बिजनेस के तहत लिया गया होता है। भाई तो यही फैसला किसानों के लोन के बारे में क्यों नहीं करते हैं। जिनकी नौकरी जाती है, उनके हाउस लोन माफ करने के लिए क्यों नहीं करते हो? ज़ाहिर है लोन माफ करने में सरकारी बैंक यह चुनाव ख़ुद से तो नहीं करते होंगे।
NPA का यह खेल समझना होगा। निजीकरण की वकालत करने वाली ये प्राइवेट कंपनियां प्राइवेट बैंकों से लोन क्यों नहीं लेती हैं? सरकारी बैंकों को क्या लूट का खजाना समझती हैं? क्या आप जानते हैं कि करीब 8 लाख करोड़ का NPA कितने उद्योगपतियों या बिजनेस घरानों का है? गिनते के सौ भी नहीं होंगे। तो इतने कम लोगों के हाथ में 3 लाख करोड़ जब जाएगा तो अमीर और अमीर होंगे कि नहीं। जनता का पैसा अगर जनता में बंटता तो जनता अमीर होती। मगर जनता को हिन्दू मुस्लिम और पाकिस्तान दे दो और अपने यार बिजनेसमैन को हज़ारों करोड़।
यह खेल आप तब तक नहीं समझ पाएंगे जब तक खुद को भक्त मुद्रा में रखेंगे। मोदी राज के चार साल में 3 लाख 16 हज़ार करोड़ का लोन माफ हुआ है। यह लोन माफी जनता की नहीं हुई है, NPA के मामले में मोदी सरकार बनाम यूपीए सरकार खेलने से पहले एक बात और सोच लीजिएगा। इस खेल में आप उन्हें तो नहीं बचा रहे हैं जिन्हें 3 लाख करोड़ मिला है? ये समझ लेंगे तो गेम समझ लेंगे।
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