पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) ने द्वारा पराड़कर स्मृति सभागार में आयोजित 'कितनी आजाद है ग्रामीण पत्रकारों की कलम?' विषय पर रखी अपनी बात।
कार्यक्रम में यायावर पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की पहली पुस्तक 'देसगांव' का हुआ विमोचन।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी, 29 नवंबर, 2019। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट पवित्र नगरी काशी पिछले शुक्रवार एक ऐतिहासिक आयोजन का गवाह बनी, जब दि हिंदू के पूर्व संपादक (ग्रामीण मामले) और प्रसिद्ध पत्रकार पी. साइनाथ ने काशी पत्रकार संघ के पराड़कर स्मृति भवन में ग्रामीण पत्रकारों की आज़ादी के विषय पर एक झकझोरने वाला व्याख्यान दिया।
यह कार्यक्रम पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (काज) ने आयोजित किया था, जो स्वतंत्र मीडिया और नागरिक समाज संगठनों का एक साझा मंच है और अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार पर काम करता है। काज की राज्य इकार्इ ने करीब आधा दर्जन पत्रकार संगठनों, पीवीसीएचआर जैसे मानवाधिकार संगठन और साझा संस्कृति मंच जैसे नागरिक समूह के साथ मिलकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के नौ राज्यों से ग्रामीण पत्रकारों को जुटाने में अहम भूमिका अदा की। तीन घंटे चले इस आयोजन के दौरान सभागर पूरा भरा रहा, जो कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान बनारस में देखने में नहीं आया था।
कार्यक्रम का आरंभ एक पुस्तक के लोकार्पण से हुआ। बनारस में पले−बढ़े दिल्ली स्थित पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के ग्राउंड रिपोर्ताजों के संकलन “देसगांव” का लोकार्पण मुख्य वक्ता साइनाथ और आमंत्रित संपादकों व अतिथियों ने किया। पुस्तक अगोरा प्रकाशन से छपी है।
साइनाथ ने वक्तव्य की शुरुआत इस सराहना के साथ की कि बीते बीस साल में ग्रामीण पत्रकारिता पर उन्होंने जयदीप हार्डिकर की पुस्तक के अलावा और कोर्इ समर्पित काम नहीं देखा है, इस लिहाज से प्रस्तुत किताब अपने किस्म की हिंदी में इकलौती है जिसमें उन दस राज्यों की रिपोर्टें संकलित हैं जहां देश की आधी आबादी निवास करती है।
साइनाथ ने मीडिया के निगमीकरण से अपनी बात की शुरुआत की और पत्रकारिता व मीडिया के बीच का फ़र्क समझाया। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों से ग्रामीण पत्रकारों पर हो रहे हमलों पर चिंता जताते हुए सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें बताया गया है कि 2013 से पहले जितने भी जानलेवा हमले पत्रकारों पर हुए, सब कस्बार्इ या ग्रामीण पत्रकारों पर हुए। उससे पहले शहरी अभिजात्य पत्रकारों पर हमले नहीं होते थे। उन्होंने कहा कि उच्च वर्ग और उच्च वर्ण के पत्रकारों के लिए उनकी सामाजिक स्थिति एक बीमा का काम करती थी, लेकिन 2013 के बाद इस बीमा का प्रीमियम दोगुना हो गया जब वे भी हमले की जद में आ गए। यह सिलसिला तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर के साथ शुरू हुआ और गौरी लंकेश तक आया। इनकी दिनदहाड़े हत्या की गयी।
उन्होंने कहा कि इन सभी हमलों में एक बात समान है कि ये सभी हिंदुस्तानी भाषाओं में काम करने वाले लोग थे। एक भी अंग्रेज़ी के पत्रकार को जानलेवा हमला नहीं झेलना पड़ा है, जो उनकी लाभप्रद स्थिति को दर्शाता है। गांवों में बढ़ती असमानता और खराब होती जीवनशैली पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि एक ग्रामीण पत्रकार ही हो रहे बदलावों को रिपोर्ट कर सकता है क्योंकि शहरी पत्रकार को तो तापमान, मौसम और जलवायु के बीच का ही फ़र्क पता नहीं होता।
साइनाथ ने परी (पीपुल्स आर्काइव आँफ रूरल इंडिया) के मॉडल को बताया जिसे वे तेरह भाषाओं में चला रहे हैं। उन्होंने ग्रामीण पत्रकारों को सुझाव दिया कि वे सहकारी मॉडल पर डिजिटल मंच का निर्माण करें। उन्होंने ऐसे मंचों को परी की ओर से मदद देने की भी बात कही। साइनाथ ने पत्रकार यूनियनों को दोबारा खड़ा करने और नेटवर्क बनाने पर खास जोर दिया।
बनारस और पूर्वी उत्तर प्रदेश में साइनाथ का यह पहला सार्वजनिक व्याख्यान था जिसके आयोजन में कर्इ स्थानीय क्षेत्रीय पत्रकार संगठनों ने हाथ मिलाया। इतना ही नहीं, आम तौर से अंग्रेज़ी में बोलने वाले साइनाथ ने लगातार एक घंटे से ज्यादा समय तक हिंदी में संबोधन किया जिसे सुनने के लिए दो सौ से ज्यादा पत्रकार और श्रोता लगातार मौजूद रहे।
नोट: Committee Against Attacks On Journalists (CAAJ) की ओर से जारी विज्ञप्ति।
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