काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में छात्रों और शिक्षकों ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति छात्र आयोजन समिति और एससी-एसटी-ओबीसी-एमटी संघर्ष समिति ने संयुक्त रूप से मनाया देश की पहली महिला शिक्षिका का 190वां जन्मदिन। कार्यक्रम में बोलते प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। देश की पहली महिला शिक्षिका के रूप में चर्चित सावित्रि बाई फुले की जयंती के मौके पर रविवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के प्रो. एचएन त्रिपाठी सभागार में एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमें वक्ताओं ने समाज में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति और उनके साथ होने वाले भेदभाव का मुद्दा उठाया। साथ ही उन्होंने महिलाओं की संस्थागत शिक्षा की पहल करने वाली पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले और उनके पति ज्योतिबा फुले के संघर्षों को याद किया।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति छात्र आयोजन समिति और एससी-एसटी-ओबीसी-एमटी संघर्ष समिति, बीएचयू द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम में दर्शन शास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार बागड़े ने कहा कि माता सावित्री बाई फुले एक संघर्षशील महिला थीं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए जब पहल की तो उन पर शोषकों ने कीचड़ फेंक कर उनकी राह में बाधा पहुंचाई। उनके पति और महान समाजसुधारक की नजर में ब्राह्मणवादी और साहुकार दो लोग समाज के शोषक हैं। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता प्राचीन इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर सुजाता गौतम ने कहा माता सावित्री बाई फुले जब बच्चों को और विधवाओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो उन्हें गोबर और पत्थर से मारे जाते थे लेकिन उन्होंने कभी हार नही मानी। उन्होंने चुनौतियों का डटकर सामना किया। 1848 में प्रथम बालिका विद्यालय खोलने का काम किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आये बतौर विशिष्ट अतिथि और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर अमरजीत ने कहा कि दलितों के ऊपर सदियों से उत्पीड़न होते आया है। बिहार में दलितों को जिंन्दा जला दिया गया था जिसे कविता के रूप में नागार्जुन ने लिपिबद्ध भी किया था।
बीएचयू के प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार ने कहा कि हम समाज को संगठित करने की ज्यादा से ज्यादा पहल करें। इसी से समाज और राष्ट्र का विकास होगा क्योंकि हमारी बौद्ध परम्परा में समता और भाईचारे का संदेश है। बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर बुद्ध, कबीर और ज्योतिराव फुले को अपना गुरु मानते थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर लालचन्द ने भारतीय वर्ण-व्यवस्था में नारी जाति की अस्मिता पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज के माता- पिता बेटी को लेकर इसलिए चिन्तित होते हैं क्योंकि आज समाज का कोई भी व्यक्ति पीड़ित पक्ष की तरफ नहीं होता है। छेड़छाड़ जैसी घटनाओं पर लड़के तमाशबीन नजर आते हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत सावित्री बाई फुले, बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर और ज्योतिराव फुले की प्रतिमाओं के सामने दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम का संचालन विवेकानंद, रामधीरज अम्बेडकर और चांदनी ने संयुक्त रूप से किया और अपने विचार रखे। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से महेश कुमार, सूर्यमणि गौतम,अजीत कुमार ,अंकित ,अमन, विवेक ,पवन , चंद्रभान आदि मौजूद रहे।
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