मंगलवार, 20 जुलाई 2021

GROUND REPORT: बनारस के केराकतपुर गांव में दलितों और पिछड़ों की हो रही जातिगत घेराबंदी, खौफ में जी रहे लोग

खौफ के साया में जी रहे कुम्हार-धोबी बस्ती के लोग। भूमिहार बहुल गांव में चारों तरफ भूमिहारों से घिरी है बस्ती। एक सप्ताह पहले भूमिहारों की बस्ती में प्लंबर कन्हैया लाल प्रजापति की दिन-दहाड़े गोली मारकर कर दी गई थी हत्या।

reported by SHIV DAS

त 13 जुलाई की सुबह करीब नौ बजे थे। बनारस के केराकतपुर गांव निवासी माया प्रजापति की हंसी-खुशी जिंदगी अचानक मातम में बदल गई। उनके पति कन्हैया लाल प्रजापति को अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। दिन-दहाड़े हुई इस हत्या से उन्हें ऐसा सदमा लगा कि एक सप्ताह बाद भी उनकी जुबां से बस यही शब्द निकल रहे हैं- हमके बंदूक दे दा जा...हथियरवा मारके हमरे कन्हैया के चल गइनअ... 

अट्ठाइस वर्षीय माया प्रजापति के दो बच्चे हैं- रुद्र प्रताप एवं ऋषि प्रताप। रुद्र प्रताप चार साल का है जबकि आठ माह का ऋषि अभी दूधमुहा है। ठीक से बैठ भी नहीं पाता है। उसे यह इल्म भी नहीं है कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। माया प्रजापति और उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा? इसे लेकर सभी चिंतित हैं। 

मृतक कन्हैया लाल प्रजापति की पत्नी माया प्रजापति अपने दोनों बच्चों के साथ

प्लंबर का काम करने वाले कन्हैया के परिवार का राशन कार्ड अभी नहीं बना है। उनके या उनके परिवार के किसी भी सदस्य के नाम से एक धुर भूमि भी नहीं है। 32 X 45 वर्ग फीट (करीब एक बिस्वा) भूमि पर बने पुस्तैनी मकान में मृतक कन्हैया अपने माता-पिता समेत तीनों भाइयों और उनके परिवार के साथ रहते थे। उनके 19 सदस्यीय परिवार में अब कुल 16 सदस्य बचे हैं। इनमें उनके परिवार के तीन सदस्य भी शामिल हैं। उनकी दो बहनों की शादी हो चुकी है और वे अपने ससुराल में ही रहती है।

मृतक कन्हैया लाल प्रजापति का परिवार

उनके बड़े भाई दिलीप प्रजापति के परिवार में कुल पांच सदस्य हैं। चार भाइयों और उनके माता-पिता में केवल दिलीप के परिवार का राशन कार्ड बना है। वह और उनका परिवार बुनकरी का काम करता है। वह बानी लाकर मजदूरी पर साड़ी बनाते हैं। इससे बड़ी मुश्किल से उनके परिवार का खर्च निकल पाता है। वह बताते हैं कि पिछले पांच महीने का बिजली बिल जमा नहीं हुआ है। लॉक-डाउन की वजह पर्याप्त मात्रा में बानी भी नहीं मिल रही है। 

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कन्हैया के छोटे भाई सर्वन के परिवार में कुल चार सदस्य हैं। सर्वन और उनका परिवार भी बुनकरी के काम में हांथ बंटाता है लेकिन परिवार का खर्च नहीं चल पाता है। वह बताते हैं कि बुनकरी के काम से खर्च नहीं निकल पाता है। इसलिए वह बाहर जाकर मजदूरी करते हैं। सर्वन के परिवार का भी राशन कार्ड नहीं बना है। कन्हैया का सबसे छोटा भाई सौरभ प्रजापति अभी पढ़ाई कर रहा है। वह अपने माता-पिता के साथ ही रहता है। कन्हैया के माता-पिता का राशन कार्ड भी नहीं बना है। 

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उनके सत्तर वर्षीय पिता श्याम नारायन प्रजापति बताते हैं, "दस साल पहले तक उनका राशन कार्ड बना था लेकिन जब ग्राम प्रधान पुष्पा देवी हुईं तो उन्होंने उनका राशन कार्ड काट दिया। उन्होंने नया राशन कार्ड बनवाने की बहुत कोशिश की लेकिन नया राशन कार्ड अभी तक नहीं बन पाया है।" उन्होंने यह भी बताया कि कन्हैया का राशन कार्ड भी नहीं बना है। 

कन्हैया के पिता जब यह बात बता रहे थे तो उनके चेहरे पर उनकी लाचारी साफ दिख रही थी। वह जिस ग्राम प्रधान पुष्पा देवी का जिक्र कर रहे थे, वह वर्तमान में भी ग्राम प्रधान हैं। उनका पति प्रमोद सिंह कन्हैया की हत्या के मामले में आरोपी है और फरार है। जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें वृद्ध पेंशन मिलता है? उन्होंने साफ कहा कि उन्हें या उनकी पत्नी को कोई पेंशन नहीं मिलती है। पास में बैठी कन्हैया की मां फूट-फूटकर रो रही थीं। पूछने पर वह कहती हैं कि गृहस्ती चौपट हो गयल हमरे बेटा क। सब परिवार बिखर परेशान हो गयल हव। भैया लोगन मारे टूट गइलन। अब खर्चा के चलाई?

माया प्रजापति और उनके परिवार की इस हालत के लिए भूमिहार जाति का शूदखोर हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह कथित रूप से जिम्मेदार है। वह स्थानीय लोहता थाने की दीवार पर 'ए' समूह के हिस्ट्री शीटरों में सूचीबद्ध है लेकिन पीड़ितों की मानें तो उसकी आजाद जिंदगी पर कभी कोई पाबंदी नहीं रही। वह आए दिन लोगों को डराया एवं धमकाया करता था। 

माया प्रजापति और उनकी सास

पिछले साल ही 5 जुलाई को उसने केराकतपुर गांव निवासी मनीष प्रजापति एवं अन्य लोगों के साथ मारपीट की थी। इनमें मृतक कन्हैया लाल प्रजापति भी शामिल थे। मामले में थाना प्रभारी एवं उप-निरीक्षक विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पीड़ितों की तहरीर पर एफआईआर दर्ज नहीं की थी। इसके उलट उन्होंने तहरीर देने वालों पर ही प्राथमिकी पंजीकृत कर ली थी। पीड़ितों को शूदखोर हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह और उसके भाइयों कमलेश सिंह और बृजेश सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए कोर्ट की शरण लेनी पड़ी थी। 

गोली मारे जाने के बाद ट्रामा सेंटर में मृतक कन्हैयालाल प्रजापति

कोर्ट के आदेश के बाद 19 नवंबर को तीनों के खिलाफ लोहता थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी। थाना प्रभारी विश्वनाथ प्रताप सिंह यही नहीं रुके। उन्होंने मामले की जांच आरोपियों की जाति के उप-निरीक्षक और हल्का प्रभारी अभिषेक कुमार राय को ही सौंप दी थी। प्लंबर कन्हैया की जिस दिन हत्या हुई, उस दिन भी हल्का प्रभारी अभिषेक कुमार राय ही थे। फिलहाल पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) अमित वर्मा ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। 

पिछले साल जुलाई में हुई घटना की एफआईआर का अंश

थाना प्रभारी विश्वनाथ प्रताप सिंह का दावा है कि इस मामले में हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह के खिलाफ कोर्ट में अभियोग-पत्र (चार्जशीट) दाखिल हो चुका है। आरोपी हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह पर मारपीट और धमकी के पांच से ज्यादा मामले पुलिस ने दर्ज किए हैं। उसे जिला बदर भी किया गया था। अब सवाल उठता है कि जब आरोपी इतने अपराधों में संलिप्त था तो वह आजाद कैसे घूम रहा था? उसने हत्या जैसे संगीन अपराध को भी अंजाम दे दिया! 

पुलिस थाना में सूचीबद्ध हिस्ट्री शीटरों की निगरानी की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस की होती है लेकिन लोहता थाना पुलिस अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने की जगह उसके साथ गलबहियां कर रही थी। इसका प्रमाण पिछले साल जुलाई में घटी वह घटना है जिसमें मृतक कन्हैया लाल प्रजापति पीड़ित और गवाह थे। थाना प्रभारी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उस मामले में हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह के खिलाफ पीड़ितों की एफआईआर तक दर्ज नहीं की थी। उल्टे पीड़ितों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज हो गई थी। क्या स्थानीय थाना पुलिस और हल्का प्रभारी जातीय आधार पर वंचित वर्गों के साथ भेदभाव नहीं कर रहे थे? दिन-दहाड़े हत्या और उसके बाद हिस्ट्री शीटर का फरार हो जाना पुलिस की निगरानी पर सवाल क्यों नहीं खड़ा करता है? चार दिनों बाद पुलिस को चकमा देकर एक पुराने मामले में कोर्ट में मुख्य आरोपी का सरेंडर करना भी लोहता थाना पुलिस की कार्यशैली पर सवाल क्यों नहीं खड़ा करता है? मामले में अभी भी पूरे आरोपी गिरफ्तार नहीं हुए हैं। उप-निरीक्षक विश्वनाथ प्रताप सिंह अभी भी थाना प्रभारी बने हुए हैं जो पुलिस प्रशासन की भूमिका को भी संदेह के दायरे में लाता है। 

भूमिहारों की बस्ती का वह इलाका जहां कन्हैया लाल प्रजापति को गोली मारी गई थी।

सूबे के मुखिया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आने से करीब चार घंटे पहले दिन-दहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर प्लंबर कन्हैया लाल प्रजापति की हत्या करना, यह साफ संकेत देता है कि हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह और उसके साथियों में पुलिस प्रशासन का कोई खौफ नहीं था। मुख्यमंत्री के काफिले का कार्यक्रम भी घटना स्थल से महज दो किलोमीटर ही दूर था। इसके बावजूद भूमिहार जाति का एक हिस्ट्री शीटर अपने जाति दंभ में कुम्हार समुदाय के एक व्यक्ति की दिन-दहाड़े हत्या कर देता है और मौके से आसानी से फरार हो जाता है। घटना में कन्हैया का साथी इलिहास भी घायल हो जाता है। जंसा थाना क्षेत्र के बड़ौरा बाजार के रहने वाला इलिहास ट्रामा सेंटर में इलाज के बाद से ठीक है लेकिन भयभीत है। वह हत्याकांड का इकलौता जश्मदीद है। मृतक कन्हैया लाल प्रजापति के पिता श्याम नारायण प्रजापति स्पष्ट आरोप लगाते हैं कि उनके बेटे की हत्या हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह और उसके साथियों ने की है। 

वह बताते हैं कि केराकत गांव निवासी हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह गांव के लड़कों को उनके माता-पिता से पूछे बिना ही सूद पर पैसे देता था और उनसे जबरन अवैध वसूली करता था। वह पांच सौ रुपये देकर एक दिन के अंतर पर उनसे चार से पांच हजार रुपये की वसूली करता था। ऐसे ही एक मामले में दखल देने पर उसने उनके बेटे को मारा पीटा था और आज उसकी हत्या कर दी। हालांकि उनके बड़े बेटे दिलीप प्रजापति ने लोहता थाने में दर्ज एफआईआर में हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह और उसके भाइयों समेत कुल पांच लोगों को नामजद किया गया है। इनमें प्रधान पति प्रमोद सिंह भी शामिल है। इनके अलावा एक अज्ञात व्यक्ति भी है। सभी पर साजिश, हत्या का प्रयास और हत्या करने का आरोप है। 

स्थानीय पुलिस प्रशासन पर सवाल उठाते हुए वह उप-जिलाधिकारी (सदर) नन्द किशोर कलाल से कहते हैं, 'कल नौ बजे की गोली लगी थी लड़का को। प्रशासन आकर देखकर गए।...प्रशासन वहां जमकरके देख रही है खाली। गोली का छूछा बिन रही है। कातिल को, जे जे गार्जियन है, उसको पकड़ नहीं रहा है। हम लोग कागज लिखकर देंगे, तब वो लोग पकड़ेंगे। खुक्खा बिन रहे हैं। कातिल इनके साथ में गाड़ी में आया था..."

जातियों की जकड़न में फंसे भारतीय समाज की पृष्ठभूमि पर गौर करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का केराकतपुर गांव भूमिहार बहुल है। करीब तीन हजार आबादी वाले इस गांव में आधी आबादी भूमिहारों की है। जनगणना-2011 के अनुसार, गांव के 467 परिवारों की कुल आबादी 2851 थी। इनमें करीब चार सौ छह साल तक के बच्चे थे जो अब किशोरावस्था में पहुंच चुके हैं। उस समय गांव में महिलाओं की आबादी 1363 थी। अगर गांव में दलितों और आदिवासियों की बात करें तो आज से दस साल पहले उनकी आबादी सात सौ के करीब थी। इनमें एक दर्जन के करीब आदिवासी थे। इन सभी की आबादी गांव की आबादी की करीब 24 फीसदी थी। 

भूमिहारों से घिरी दलितों और पिछड़ों की बस्ती में धोबी समुदाय की गली

तालाब के दूसरे छोर पर बसी वंचित वर्गों की बस्ती की बात करें तो इसमें कुम्हारों के करीब 25 घर हैं। मृतक कन्हैया लाल प्रजापति के भाई दिलीप प्रजापति बताते हैं कि बस्ती में करीब 20 घर धोबी हैं। करीब 15 घर कुर्मी समुदाय के लोगों का है। अहीर समुदाय के लोगों के भी चार घर बस्ती में हैं। बस्ती में केवल एक घर कोइरी समुदाय के लोगों का है। बस्ती के अधिकतर लोग मजदूरी करते हैं या फिर वाराणसी-भदोही मार्ग पर दुकान खोलकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। 

तालाब किनारे बसी दलितों और पिछड़ों की बस्ती

पिछड़ों-दलितों की बस्ती चारों तरफ से भूमिहारों के मकानों से घिरा हुआ है। गांव में उनके करीब 70 घर होंगे। करीब 88 हेक्टेयर रकबे वाले केराकतपुर गांव में अधिकांश भूमि भूमिहारों की है। गांव के ही मोती प्रजापति बताते हैं कि गांव में जो अधिकतर खाली भूमि पड़ी है, वह भूमिहारों की है। अगर वे अपनी भूमि बेच भी रहे हैं तो केवल भूमिहारों को। इसलिए गांव में भूमिहारों की आबादी बढ़ती ही जा रही है। कन्हैया लाल प्रजापति की दिन-दहाड़े हुए हत्या ने हम लोगों को एक बार फिर डरा दिया है। 

केराकतपुर गांव के पूर्व प्रधान घासी प्रजापति के बेटे मोती प्रजापति

पचपन वर्षीय मोती प्रजापति गांव के पूर्व प्रधान घासी प्रजापति के लड़के हैं। आज से करीब 27 साल पहले उनके पिता को भूमिहार बच्चन सिंह ने गोली मारी थी। हालांकि वह बच गए थे। मामले में 14 साल मुकदमा चला। बच्चन सिंह को निचली अदालत से साढ़े तीन साल की सजा हुई लेकिन अपील में उन्हें जमानत मिल गई। वह अभी बाहर हैं। वह बताते हैं कि करीब 10 साल पहले उनके पिता जी की मौत हो गई। अब वैसे ही मामला लंबित है। 

तालाब के दूसरे छोर पर आबाद भूमिहार बस्ती। सामने बीच में हिस्ट्री शीटर अखिलेश सिंह का मकान है।

गांव में भूमिहारों की दबंगई के बाबत छत्तीस वर्षीय हीरा लाल प्रजापति बताते हैं कि गांव में होलिका दहन के लिए सरकार की तरफ से भूमि चिन्हित है। भूमिहार उस पर कब्जा किए हुए हैं। आज तक हम लोग वहां होलिका दहन नहीं कर पाए हैं। मजबूरन सड़क पर ही हमें होलिका दहन करना पड़ता है। वह यह भी बताते हैं कि यहां कुम्हारों के करीब 75 परिवार होंगे लेकिन गांव में कुम्हारों को मिट्टी निकालने के लिए एक धूर भी जमीन मुहैया नहीं कराई गई है। केराकतपुर गांव का यह हाल तब है जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजस्व विभाग को स्पष्ट निर्देश दे चुके हैं कि प्रदेश के हर गांव में कुम्हारों को मिट्टी निकालने के लिए पट्टा किया जाए।

केराकतपुर गांव की परती भूमि जहां बस्ती के लोग होलिका दहन नहीं कर पाते हैं।

ग्रामीणों के बयानों और कन्हैया लाल प्रजापति के कत्ल की परिस्थितियों पर गौर करें तो रोहनिया विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के केराकतपुर गांव में धीरे-धीरे जातिगत हिंसा की जमीन तैयार हो रही है। इसमें प्रशासन के स्थानीय कर्मचारियों की भी बड़ी भूमिका सामने आ रही है। आखिरकार वह कौन-सी वजह थी कि जिसके वजह से इस गांव के हल्का प्रभारी के रूप में एक भूमिहार जाति के उप-निरीक्षक की नियुक्ति की गई। थाना प्रभारी विश्वनाथ प्रताप सिंह के पास ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि एक साल पहले हुई हिंसा की घटना में कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद आरोपी हिस्ट्री शीटर की जाति के दारोगा और हल्का प्रभारी को मामले की जांच सौंपी गई।

मृतक कन्हैया के घर पर ग्रामीणों और पुलिस की लगी भीड़

जाति जकड़न में फंसे भारतीय समाज में किसी पुलिसकर्मी या अधिकारी या व्यक्ति के जातिगत जुड़ाव और उसके प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता है। मामलों की जांच और कार्रवाइयों में अक्सर यह बातें सामने आती रहती हैं। ऐसे में अभिषेक कुमार राय का हल्का प्रभारी बने रहना और प्लंबर कन्हैया लाल प्रजापति की उनकी जाति के हिस्ट्री शीटर द्वारा हत्या कर दिया जाना लोहता थाना पुलिस को भी सवालों के घेरे में खड़ा करता है। 

फिलहाल वाराणसी जिला प्रशासन की ओर से उप-जिलाधिकारी (सदर) नंद किशोर कलाल ने गत 16 जुलाई को मृतक कन्हैया लाल प्रजापति की पत्नी माया प्रजापति के नाम से 0.018 हेक्टेयर (1.42 बिस्वा) आवासीय भूमि गांव के खसरा संख्या-153 में पट्टा कर दिया है।

ग्रामीणों के मुताबिक यह भूमि गांव के आखिरी छोर पर नाला के किनारे परती एवं विरान है। हालांकि भूमि की सही स्थिति प्रशासन द्वारा कब्जा दिलाए जाने के बाद ही पता चल पाएगा। क्षेत्रीय लेखपाल रेशमीना परवीन और थाना प्रभारी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रविवार को संयुक्त रूप से माया प्रजापति को भूमि का आबंटन-पत्र सौंपा।

माया प्रजापति को भूमि आबंटन पत्र सौंपतीं क्षेत्रीय लेखपाल रेशमीना परवीन और लोहता थाना प्रभारी

मृतक कन्हैया लाल प्रजापति के शव के अंतिम संस्कार से पहले उप-जिलाधिकारी (सदर) नंद किशोर कलाल की ओर से परिजनों को 'मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना' के तहत पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये दिए जाने का आश्वासन अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। 

पीएस4 की तरफ से मृतक कन्हैया लाल प्रजापति की पत्नी को 16000 रुपये की सहायता देतीं शालिंद्री चौधरी

वहीं, प्रजापति शोषित समाज संघर्ष समिति (पीएस4) की ओर से शालिंद्री चौधरी ने पीड़ित माया प्रजापति को 16 हजार रुपये की आर्थिक सहायता भेंट कीं। साथ ही पीएस4 प्रमुख छेदी लाल निराला ने मृतक कन्हैया लाल प्रजापति के बच्चों को इंटर तक शिक्षा का खर्च संगठन की ओर से उठाने का आश्वासन दिया। इस दौरान इंजीनियर रमेश चौधरी, इंजीनियर चेखुर प्रजापति, राजेश प्रजापति, वीके विजय, राकेश प्रजापति, शिव प्रसाद प्रजापति, घनश्याम प्रजापति, चंद्र प्रकाश प्रजापति, विनोद प्रजापति, बनारसी पटेल, रमेश चक्रधर आदि लोग उपस्थित रहे। 

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