BJP लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
BJP लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 20 जनवरी 2016

विरोध, बदला और विद्रोह के लिए रहें तैयारः संजय पासवान

वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्लीः हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मुश्किल में डाल सकता है। पूर्व मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य संजय पासवान ने खुद की पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। संजय पासवान ने ट्वीट किया, “सत्ता की राजनीति के भागीदारों को रोहित वेमुला प्रकरण को गंभीरता से लेना चाहिए या फिर विरोध, बदला, विद्रोह और प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार रहना चाहिए।


उन्होंने स्पष्ट रूप से पार्टी का नाम नहीं लिया है लेकिन उनके ट्वीट से साफ जाहिर है कि वे केंद्र की भाजपा को लेकर सहज नहीं है। पासवान ने लोकसभा चुनाव-2014 में पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चे की कमान संभाली थी।  

रविवार, 10 जनवरी 2016

संदीप पाण्डेय की बर्खास्तगी के खिलाफ निकला विरोध मार्च


अस्सी घाट पर जनसभा का आयोजन भी हुआ

वनांचल न्यूज नेटवर्क

वाराणसी। आईआईटी बीएचयू के विजिटिंग फैकल्टी पद से सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय की बर्खास्तगी के खिलाफ विभिन्न सामाजिक संगठनों ने रविवार को सामुहिक रूप से काशी विश्वविद्यालय के सिंघद्वार से अस्सी घाट तक विरोध मार्च निकाला। यह विरोध मार्च अस्सी घाट पर पहुंचकर जनसभा में तब्दील हो गया। इसमें बीएचयू परिसर के भगवाकरण के सवालों के साथ नई शिक्षा नीति और पूंजीवादी फाँसीवाद के मुद्दों पर चर्चा की गई।

संगठनों की ओर से जारी संयुक्त विज्ञप्ति में कहा गया है कि संदीप पाण्डेय सोनभद्र के अवैध खनन का मसला हो या कनहर बांध परियोजना के विस्थापितों के पुनर्वास माँग हो, राजातालाब में कोकाकोला के खिलाफ आंन्दोलन हो या लंका पर पटरी व्यवसाइयों के नियमितीकरण की बात हो या फिर गंगा किनारे 200 मीटर में रह रहे बाशिंदों के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ बुलंद करना हो,  सभी मोर्चों पर मजलूमों के साथ खड़े रहे। उन्होंने अपने छात्रों को भी ऐसे विषयों पर सोचने और सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया।

संदीप पाण्डेय का कहना है कि बीएचयू के कुलपति ने उन्हें नक्सलवादी और राष्ट्रद्रोही करार देते हुए पद से हटाया है। विरोध मार्च में लोगो ने कहा की एक सम्मानित सामाजिक कार्यकर्त्ता के लिए कुलपति ने यदि ये कहा है तो उन्हें तत्काल क्षमा मांगनी चाहिए। मालवीय जी भी विश्वविद्यालय में सिर्फ किताबी शिक्षा देने के पक्ष में कभी नहीं थे। वे चाहते थे कि विश्वविद्यालय का छात्र राष्ट्रनिर्माण और समाज निर्माण में जुटे। संदीप पाण्डेय भी परिसर के छात्रों के साथ ऐसे ही सामाजिक रचनात्मक विषयों पर कार्यक्रम करते रहे हैं। ऐसा करना नक्सलवादी और राष्ट्रद्रोही कैसे हो सकता है भला ?

विरोध मार्च में संदीप पाण्डेय की तत्काल बहाली की मांग किया गया और ऐसा न होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी गयी है। विरोध मार्च में लोगों ने कहा कि संदीप पाण्डेय के बीएचयू में आने से आम गरीब ग्रामीण, मजदुर, पटरी व्यवसायी प्रकृति के लोग आने जाने लगे थे। गरीब मजलूम एक प्रोफेसर के कमरे में आराम से आते जाते थे। यह बात विश्विद्यालय के उन लोगों को अच्छी नहीं लगी जो ये सोचते है की विश्वविद्यालय एक वीआईपी स्थान है और विश्विद्यालय के शिक्षकों को इन गरीब गंदे लोगो के साथ मिलना जुलना नहीं चाहिए। संदीप पाण्डेय गाँधीवादी नेता हैं।  बीएचयू ने उन्हें जो अपमानित करने का काम किया है उसका विरोध बनारस में शुरू हुआ और आज देश भर के टीवी न्यूज़ चैनलों अख़बारों और बुद्धिजीवियों के बीच में हो रहा है और दिन रात बढ़ता ही जा रहा है

विरोध मार्च की अगुवाई गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति लंका ने किया। मार्च को समर्थन देने पंहुचे लोगों में प्रमुख रूप से चिंतामणि सेठ, बाबू सोनकर, अस्पताली सोनकर, प्रेम सोनकर, धनञ्जय त्रिपाठी, विकास सिंह, रामजी पाण्डेय, विजय मिश्र, आनदं पाण्डेय, आकाश सिंह, प्रेमनाथ, धर्मा देवी, उर्मिला, महेंद्र, पार्वती, राजेश्वरी देवी, कृष्णा, रतन सोनकर, शीला देवी, संदीप, अजय, लक्ष्मी और मनीष भरद्वाज मौजूद रहे।

गांधीवादी संदीप पांडे को देशद्रोही कहना गांधी का अपमानः रिहाई मंच


संदीप पांडेय
"बीएचयू के वीसी संघ के एजेंट। बीएचयू को अंधविश्वासी और मूर्खों की फैक्टरी बनाना चाहते हैं जीसी त्रिपाठी।"

वनांचल न्यूज नेटवर्क

लखनऊ। जन मुद्दों पर बेबाक बयानबाजी और प्रदर्शन के लिए पहचाने जाने वाले रिहाई मंच ने बीएचयू प्रशासन द्वारा मैग्सेसे पुरस्कार सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता और बीएचयू के गेस्ट फैकल्टी संदीप पांडे को बीच सत्र में बर्खास्त किये जाने को प्रगतिशील मूल्यों के प्रति संघ परिवार पोषित असहिष्णुता का ताजा उदाहरण बताया। मंच ने इस पूरे प्रकरण पर बीएचयू प्रशासन पर संघ और भाजपा के स्वयंसेवक के बतौर काम करने का आरोप भी लगाया और इसे मोदी सरकार में अकादमिक पतन की नजीर बताया।

रिहाई मंच की ओर से जारी विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा, "संदीप पांडे जैसे प्रतिष्ठित गांधीवादी और तर्कवादी फैकल्टी को हटा कर बीएचयू प्रशासन ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी कीमत पर तार्किक और प्रगतिशील विचारों को पनपने नहीं देगा। उसका मकसद बीएचयू जैसी संस्थान से सिर्फ अंधविश्वासी, लम्पट, साम्प्रदायिक और मूर्ख खाकी निक्करधारी छात्रों की खेप पैदा करना है जो संघ परिवार के देशविरोधी कार्यकलापों में आसानी से लग जाएं।"

राजीव यादव ने कहा कि संदीप पांडे को हटाने का निर्णय राजनीतिक है जिसके तहत उन्हें नक्सली और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त बताया गया है। उन्होंने इसे अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलाधिपति राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मामले में हस्तक्षेप करने और संदीप पांडेय को पुनः बहाल कराने की मांग की । यादव ने कहा कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से संघ के समाज विरोधी विचारधारा के विरोधियों को शैक्षणिक संस्थानों से हटा कर उनकी जगह संघ और भाजपा कार्यकताओं को बैठाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसी रणनीति के तहत इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कॅम्यूनिकेशन (आईआईएमसी) का निदेशक केवी सुरेश को बना दिया गया है जिनकी योग्यता महज इतनी है कि वे विवेकानंद फाउंडेशन के सदस्य हैं। इसके सदस्यों में गुजरात के मुस्लिम विरोधी जनसंहार को आयोजित करने के आरोपी प्रशासनिक अधिकारी से लेकर नृपेंद्र मिश्रा जैसे घोषित सीआईए एजेंट जैसे लोग हैं। मंच के नेता ने कहा कि विवेकानंद फाउंडेशन से जुड़े रहे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल के निजी संगठन इंडिया फाउंडेशन भी देश की बौद्धिक पूंजी को भोथरा करने का अभियान चला रहा है। उन्होंने कहा कि यह अपने आप में जांच का विषय है। मोदी के अमरीका दौरे के दौरान मेडिसन स्कवायर पर भी शौर्य डोभाल की कम्पनी ही इवेंट मैनेज करती है और वही पिछले दो साल से देश की सुरक्षा पर डीजीपी स्तर के अधिकारियों के सम्मेलन को भी आयोजित करती है। उन्होंने कहा कि संघ और विदेशी कॉरपोरेट पूंजी की बड़ी बड़ी लॉबियां भारतीय मेधा और बौद्धिक शक्ति को अपने अनुरूप ढालने का अभियान चला रही हैं और इसमें रोड़ा लगने वाले लोगों को जबरन हटा रही हैं।

वहीं, इंसाफ अभियान के प्रदेश महासचिव और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र नेता दिनेश चौधरी ने कहा, बीएचयू जैसे विश्वविद्यालय का यह दुर्भाग्य है कि उसे जीसी त्रिपाठी जैसा कुलपति मिला है जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इकोनॉमिक्स विभाग के औसत से भी कम दर्जे के शिक्षक रहे हैं। उन्हें उनके छात्र भी गम्भीरता से नहीं लेते थे। उन्होंने कहा कि जीसी त्रिपाठी सिर्फ संघ के पुराने कार्यकर्ता होने की पात्रता के कारण कुलपति बनाए गए हैं।

रविवार, 9 अगस्त 2015

भारत में 1866 राजनीतिक दल

नई दिल्ली (भाषा)। चुनाव आयोग के समक्ष राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण कराने के लिए काफी संख्या में आवेदन आ रहे हैं। मार्च 2014 से इस वर्ष जुलाई के बीच 239 नये संगठनों ने पंजीकरण कराया है। इससे देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या बढ़कर 1866 हो गई है।

चुनाव आयोग के अनुसार, 24 जुलाई को देश में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 1866 दर्ज की गई जिसमें 56 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल थे जबकि शेष ‘गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल थे। पिछले लोकसभा चुनाव 2014 के समय चुनाव आयोग की ओर से एकत्र आंकड़ों के मुताबिक, 464 राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार खड़े किये थे। चुनाव आयोग द्वारा एकत्र आंकड़ों को संसद में उपयोग के लिए विधि मंत्रालय के साथ साझा किया गया था। मंत्रालय का विधायी विभाग आयोग की प्रशासनिक इकाई है।

चुनाव आयोग के अनुसार 10 मार्च 2014 तक देश में ऐसे राजनीतिक दलों की संख्या 1593 थी। 11 मार्च से 21 मार्च के बीच 24 और दल पंजीकृत हुए और 26 मार्च तक 10 और दल पंजीकतृ हुए। इस दौरान ही पांच मार्च को लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई थी।