बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे की तस्वीर |
-ʻवीआईपीʼ के नाम पर खनन विभाग हर महीने करता है 13 करोड़
रुपये से ज्यादा की अवैध वसूली।
- सफेदपोश नेताओं समेत
पत्रकारिता के लिबास में छिपे एक बड़े धड़े को भी बंटती है अवैध वसूली की रकम।
-27 फरवरी, 2012 को
बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित हो रही पत्थर की एक अवैध
खदान में पहाड़ी का टीला धंसने से हुई थी 10 मजदूरों की मौत।
-मुख्य विकास अधिकारी
पिछले ढाई साल से कर रहे हैं मामले की जांच। जांच कब पुरी होगी, उन्हें पता नहीं।
-मृतक मजदूरों के परिजनों को आज तक नहीं मिला मुआवजा। न्याय की आस भी टूटी।
reported by Shiv das Prajapati
‘मजदूरों की कब्रगाह’! चौंकिये नहीं, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले का
डाला-बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र अब इसी नाम से पुकारा जाने लगा है। ऐसा वहां के
हालात की वजह से हुआ है। कैमूर क्षेत्र में आबाद इन खनन क्षेत्रों में हर दिन औसतन
दो मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ हो रही है लेकिन आज तक उनके हत्यारे बेनकाब नहीं हुए
हैं। इसके पीछे पुलिस प्रशासन समेत जिला प्रशासन की वे कारगुजारियां हैं जिनकी वजह
से मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ लोगों को ‘मौत’ नजर आती है। ‘खननकर्ता’ का चोला पहने
सफेदपोश ‘संगठित हत्यारों’ ने जिला प्रशासन के सहयोग से वहां ऐसा जाल बुना है जो
किसी मजदूर की ‘हत्या’ को ‘हादसा’ ज्यादा साबित करता है। साथ ही उनका राजफाश भी
नहीं होता। हालांकि इसके लिए उन्हें जिला प्रशासन के विभिन्न नुमाइंदों के साथ-साथ
सूबे की राजधानी में बैठे उनके आकाओं को ‘वीआईपी’ के रूप में हर महीने तेरह करोड़
रुपये से ज्यादा की रकम चुकानी पड़ती है। इन आरोपों में कितनी सचाई है, यह जिला
प्रशासन और उनके नुमाइंदे ही जानें लेकिन उनको झुठलाने की वाजिब वजहें भी नहीं
हैं।
सोनभद्र-मिर्जापुर समेत कैमूर वन्य क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में ‘मौत का
कुआं’ बन चुकी पत्थर की अवैध खदानें इसका उदाहरण हैं। इनके सहारे खनन माफिया
मजदूरों की ‘हत्या’ का इतिहास लिख रहे हैं। कभी पत्थर की अवैध खदानों में टीला
धंसाकर तो कभी ट्रैक्टर-ट्रॉली पलटा कर। कभी कंप्रेशर चलवाकर तो कभी रहस्यमय
परिस्थितियों का बहाना बनाकर। बरसात के दिनों में पत्थर की खदानों में रहस्यमय
परिस्थियों में डूबकर मरने वालों की संख्या भी पुलिस प्रशासन की नींद खत्म नहीं कर
पाती। सूबे की सत्ता में समय-समय पर काबिज नुमाइंदों की मदद से खनन माफिया
सोनभद्र-मिर्जापुर में मजदूरों की ‘संगठित हत्या’ नंगा नाच दिखाते हैं लेकिन सालों
गुजर जाने के बाद भी उनकी इस साजिश का पर्दाफाश नहीं हो पा रहा और ना ही उनकी जाल
का शिकार हुए मृतक मजदूरों को न्याय नहीं मिल पा रहा है।
पौने तीन साल पहले 27 फरवरी, 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में शारदा
मंदिर के पीछे पत्थर की एक खदान में टीला धंसने से हुई 10 मजदूरों की मौत (जिला
प्रशासन के शब्दों में) का मामला ऐसा ही एक उदाहरण है। इसकी मजिस्ट्रेटियल जांच
रिपोर्ट अभी तक पूरी नहीं हुई है और ना ही मृतक मजदूरों के परिजनों को सरकारी
प्रावधानों के मुताबिक मुआवजा मिला है। सोनभद्र के मुख्य विकास अधिकारी महेन्द्र
कुमार सिंह इसकी जांच कर रहे हैं लेकिन वह अपनी जांच रिपोर्ट कब तक जिला प्रशासन
समेत उत्तर प्रदेश शासन को सौंपेंगे, यह उन्हें मालूम नहीं। मजे की बात यह है कि
उनके इस गैर-जिम्मेदाराना रवैये को लेकर शासन के नुमाइंदों के साथ-साथ विरोधियों
की जुबानें भी बंद हैं। इनमें वे सफेदपोश भी शामिल हैं जिन्होंने मजदूरों की
रोजी-रोटी की दुहाई देकर अवैध खनन के गोरखधंधे का संचालन शुरू कराने के लिए डाला बाजार
में महीनों तक धरना चलाया और उसे शुरू कराकर ही दम लिया।
इतना ही नहीं सफेद लिबास
में छिपे इन खनन माफियाओं ने ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले
तत्कालीन जिलाधिकारी सुहास एल. वाई को भी जिले से बेदखल करवा दिया क्योंकि
उन्होंने खनन माफियाओं के साथ उनके संरक्षक सफेदपोशों के आगे घुंटने टेंकने से मना
कर दिया था। सुहास एल. वाई. के जाने के बाद सोनभद्र में एक बार फिर अवैध खनन का
गोरखधंधा धड़ल्ले से शुरू हो गया और इस बार इसकी कमान अपर जिलाधिकारी
(वित्त/राजस्व) के रूप में तैनात मनीलाल यादव को मिली। आज भी वे इसके प्रभारी हैं।
मनीलाल यादव की पहुंच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शक्तिनगर विशेष
क्षेत्र प्राधिकरण (साडा) के सचिव की कमान भी उनके पास है जबकि यह प्रभार मुख्य
विकास अधिकारी के पास होना चाहिए। सूत्रों की मानें तो साडा के तहत कराए गए कार्यों
में भी बड़े पैमाने पर अनियमितता बरती गई है। अगर उन कार्यों की उच्च स्तरीय जांच
करा दिया जाए तो वहां करोड़ों रुपये का घोटाला उजागर हो सकता है।
इसके अलावा वे
जिला सूचना एवं जन संपर्क विभाग की कमान भी संभाले हुए हैं जबकि लोकतंत्र के चौथे
स्तंभ की सहायता के साथ-साथ शासन की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने वाले इस
महत्वपूर्ण विभाग में सूचना एवं प्रसारण क्षेत्र का एक भी सहायक अधिकारी या
पूर्णकालिक लिपिक तैनात नहीं हैं। उर्दू अनुवादक और चतुर्थ श्रेणी के दो
कर्मचारियों के भरोसे चल रहा यह विभाग इन दिनों लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के
प्रतिनिधियों को मैनेज करने की भूमिका निभा रहा है। इसके लिए वह फर्जी दस्तावेजों
के बल पर तथाकथित श्रमजीवी पत्रकारों को सरकारी मान्यता प्राप्त पत्रकार का दर्जा
दिलाने से भी हिचकिचा नहीं रहा। अगर जिले में मान्यता प्राप्त पत्रकारों की
योग्यता और उनकी पत्रावलियों की उच्च स्तरीय जांच करा दी जाए तो कई ऐसे चेहरे
धोखाधड़ी में मामले में जेल चले जाएंगे जो पत्रकारिता की आड़ में नौकरशाहों और
व्यवसायियों से अपना और अपने परिवार के सदस्यों का हित साधते नजर आते हैं।
बहरहाल, उक्त हादसे की मजिस्ट्रेटियल जांच कर रहे मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र
कुमार सिंह की भूमिका सवालों के घेरे में है क्योंकि जिला अधिकारी के निर्देश पर
गठित एक अन्य जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट मार्च, 2012 में ही जिला प्रशासन को सौंप
दी थी जिसमें स्पष्ट रूप से हादसा वाली खदान का संचालन अवैध रूप से होने की बात
कही गई थी। सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत पूर्व जिला खान अधिकारी एसके सिंह
की ओर से उपलब्ध कराई गई सूचना पर विश्वास करें तो उक्त हादसा बिल्ली-मारकुंडी
गांव के आराजी संख्या-4452 में हुआ था जो इन्द्रजीत मल्होत्रा और अन्य के नाम से
दर्ज है। इसमें दस मजदूरों की मौत हुई थी।
उक्त खनन हादसे के बाद जिलाधिकारी के निर्देश पर 2 मार्च, 2012 को जिला खान
विभाग के तत्कालीन सर्वेक्षकगण एसपी मिश्रा, राज नाथ, एके मौर्या, क्षेत्रीय
लेखपाल श्रीराम, राजस्व निरीक्षक हीरालाल शास्त्री, सर्वे नायब तलसीलदार प्रह्लाद
शुक्ला, सर्वे कानूनगो नन्दलाल, पीपरी के राजस्व निरीक्षक सैयद हिफाजत रजा और
दुद्धी तहसील के लेखपाल राम मूरत ने संयुक्त रूप से दुर्घटना स्थल का सीमांकन
किया। इसमें पाया गया कि 27 फरवरी को जहां पहाड़ी का धसान हुआ था, वह क्षेत्र
बिल्ली-मारकुंडी गांव के गाटा संख्या-4452 में पड़ता है जो संक्रमणीय भूमिधर के
रूप में इंद्रजीत मल्होत्रा पुत्र शंभुनाथ मल्होत्रा (0.164 हेक्टेयर) और हंसराज
सिंह पुत्र प्रताप सिंह (0.582 हेक्टेयर) के नाम से दर्ज है और इसमें किसी प्रकार
का कोई खनन पट्टा आबंटित नहीं है। उक्त टीम की जांच रिपोर्ट के आधार पर दुद्धी
तहसील के तत्कालीन उप-जिलाधिकारी त्रिलोकी सिंह, सोनभद्र के उप-जिलाधिकारी राम अरज
यादव और जिला खान अधिकारी एके सेन ने 3 मार्च, 2012 को जिलाधिकारी को अपनी संयुक्त
जांच आख्या सौंपी। इसमें उन्होंने साफ लिखा है कि सुरक्षित वन भूमि पर अवैध खनन
कार्य किया गया है।
जांच आख्या में लिखा है कि गाटा संख्या-4452 से लगे गाटा
संख्या-4471 का कुल क्षेत्रफल 12.519 हेक्टेयर है। इसमें से 1.763 हेक्टेयर
विभिन्न काश्तकारों के नाम संक्रमणीय भूमिधर के रूप में दर्ज है जबकि 2.035
हेक्टेयर पहाड़ और 8.701 हेक्टेयर सुरक्षित वन के रूप में राजस्व अभिलेखों में
दर्ज है। गाटा संख्या-4471 के लगभग 2.0 हेक्टेयर भूमि को छोड़कर शेष सभी क्षेत्रों
में खनन किया गया है। इसके अलावा आराजी संख्या-4449 पर खनन कार्य किया गया है जो
राजस्व अभिलेखों में पहाड़ के रूप में दर्ज है और उसका कुल क्षेत्रफल 0.417 है।
गाटा संख्या-4450 राजस्व अभिलेखों में श्रेणी-1 के तहत संक्रमणीय भूमिधर के रूप
में दर्ज किया गया जिसका कुल क्षेत्रफल 0.594 हेक्टेयर है और इसके 0.270 हेक्टेयर
क्षेत्रफल पर खनन कार्य किया जा रहा है। इसके बावजूद मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र
कुमार सिंह अभी तक अपनी जांच रिपोर्ट जिला प्रशासन समेत उत्तर प्रदेश शासन को सौंप
नहीं पाए हैं। हालांकि हादसा वाले खनन क्षेत्र में अवैध खनन का गोरखधंधा पिछले दो
सालों से धड़ल्ले से चल रहा है जो जिला प्रशासन की विभिन्न जांच आख्याओं में भी
सामने आ चुका है।
बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन के मामले में रॉबर्ट्सगंज
तहसील प्रशासन ने 15 सितंबर, 2014 को जिला प्रशासन को एक जांच आख्या सौंपी है
जिसमें स्वीकृत 27 पत्थर की खदानों में उनके संचालकों द्वारा अवैध खनन करने की बात
कही गई है। इन अवैध खननकर्ताओं में सपा नेता रमेश वैश्य तथा चोपन नगर पंचायत
अध्यक्ष और सपा नेता इम्तियाज अहमद का नाम भी शामिल है। गत सितंबर में जिला
प्रशासन ने पुलिस प्रशासन के सहयोग से बसपा विधायक उमाशंकर सिंह की खदान में छापा
मारा और वहां अवैध खनन पाया। प्रशासन ने उमाशंकर सिंह के खिलाफ अवैध खनन का मामला
दर्ज कराया। सपा के घोरावल विधायक रमेश चंद्र दुबे के खिलाफ स्मारक घोटाले में
पहले से ही जांच चल रही है।
इनके अलावा भाजपा, कांग्रेस, बसपा आदि राजनीतिक
पार्टियों के नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचार-पत्रों के कुछ
पत्रकारों के नाम से भी इन इलाकों में पत्थर और बालू की खदानें आबंटित हैं जिनमें
कई अवैध खनन के मामले में भी शामिल हैं। ऐसी कई वजहों से सोनभद्र के खनन क्षेत्रों
में अवैध खनन का गोरखधंधा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। अबतक तहसील प्रशासन की
विभिन्न जांच रपटों में 103 पत्थर की खदानों में से करीब 40 स्वीकृत पत्थर की
खदानों में अवैध खनन साबित हो चुका है। इसमें कई ऐसे पट्टाधारक हैं जिनकी खदानों
में पहले भी अवैध खनन के मामले उजागर हो चुके हैं।
ऐसे अवैध खनन कर्ताओं के खिलाफ
तत्कालीन जिलाधिकारी सुहास एल.वाई. ने 31 अगस्त, 2012 को ओबरा वन प्रभाग और कैमूर
वन्यजीव वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारियों समेत अपर जिलाधिकारी और खान अधिकारी
को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था लेकिन उन्होंने उनके निर्देश का अनुपालन
सुनिश्चित नहीं किया। इस मामले में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के क्षेत्रीय
कार्यालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक आजम जैदी ने उत्तर
प्रदेश शासन के तत्कालीन सचिव (वन) आरके सिंह को पत्र लिखकर अवैध खदान संचालकों के
खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था। ऐसे खदान संचालकों में महावीर प्रसाद
अग्रवाल, राकेश जायसवाल, श्रीमती प्रतिभा सिंह, प्रदुम्न कुमार सिंह, संतोष कुमार
सिंह, कादिर अली, मेसर्स अग्रवाल ब्रदर्स
की निर्मला अग्रवाल, मे. स्टोन ग्रीट ग्रामोद्योग संस्थान के ओम प्रकाश गिरि, अशोक
कुमार सिंह, रविन्द्र जायसवाल, धर्मेंद्र कुमार सिंह आदि का नाम शामिल है। जिला
प्रशासन के नुमाइंदों की शह पर खनन माफिया खनिजों का अवैध खनन और उनका परिवहन
धड़ल्ले से कर रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो इस गोरखधंधे के संचालन के पीछे जिला प्रशासन के नुमाइंदों
द्वारा हर महीने करीब तेरह करोड़ रुपये की वह ‘वीआईपी’ है जो सूबे की सत्ता में काबिज
राजनीतिक पार्टियों के विभिन्न नुमाइंदों के पास जाता है। अवैध रूप से खदानों का
संचालन और उससे निकलने वाले खनिज पदार्थों का परिवहन करने वाले खनन माफियाओं की
बातों पर विश्वास करें तो जिला प्रशासन के नुमाइंदे ‘वीआईपी’ के नाम पर इन दिनों
मोटी रकम की उगाही कर रहे हैं। इस उगाही में जिला राजस्व विभाग के एक शीर्ष
अधिकारी समेत जिला भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग (जिला खनिज विभाग), परिवहन विभाग,
जिला उद्योग केंद्र, जिला वाणिज्यकर विभाग, पुलिस प्रशासन, वन विभाग, क्षेत्रीय
कार्यालय, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विभिन्न अधिकारी एवं कर्मचारी
भी शामिल हैं। इससे राज्य सरकार के खजाने को हर वर्ष अरबों रुपये की चपत लग रही
है।
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