उत्तर प्रदेश की सपा सरकार की लचर पैरवी का परिणाम है तीस हजारी कोर्ट का फैसला।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
लखनऊ। रिहाई मंच ने दिल्ली स्थित तीस हजारी कोर्ट द्वारा 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार में 42 बेगुनाह मुसलमानों की हत्या के आरोपियों को बरी किए जाने की घोर निंदा की। मंच ने गत 21 मार्च को लोकतंत्र के लिए एक काला दिन बताया। मंच ने कहा है कि इस फैसले ने एक बार फिर से यह साफ कर दिया है कि सामाजिक न्याय के नाम पर मुसलमानों का वोट लेकर समाजवादी पार्टी की सरकार जब भी सत्ता में आई, उसने सुबूत इकट्ठा करने के नाम पर पीडि़तों से न केवल लफ्फाजी की, बल्कि आरोपियों का ही हित संरक्षण करते हए इंसाफ का गला घोंटा। हाशिमपुरा के आरोपियों के बरी होने के इस फैसले ने सपा सरकार के अल्पसंख्यक विरोधी चरित्र को एक बार फिर से बेनकाब कर दिया है।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि तीस हजारी कोर्ट द्वारा जब अभियुक्तों को रिहा कर दिया गया है तब यह सवाल पैदा होता है कि आखिर उन 42 मुसलमानों की हत्या किसने की थी? उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी सरकार ने अपने राजनैतिक फायदे के लिए आरोपियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने में कोताही बरतते हुए अदालत में लचर पैरवी की ताकि उस पर हिन्दुत्व के विरोधी होने का आरोप न लगे सके और उसका गैर मुस्लिम वोट बैंक सुरक्षित रहे।
रिहाई मंच के नेता राजीव यादव ने कहा है कि हाशिमपुरा के आरोपियों के बरी हो जाने के बाद यह साफ हो गया है कि इस मुल्क की पुलिस मशीनरी तथा न्यायिक तंत्र दलितों-आदिवासियों तथा मुसलमानों के खिलाफ खड़ा है। चाहे वह बथानीटोला का जनसंहार हो या फिर बिहार के शंकरबिगहा में दलितों की सामूहिक हत्या, इस मुल्क के लोकतंत्र में अब दलितों-आदिवासियों और मुसलमानों के लिए अदालत से इंसाफ पाने की आशा करना ही बेमानी है। उन्होंने कहा कि अगर इस मुल्क का यही लोकतंत्र है तो फिर ऐसे लोकतंत्र पर हमें शर्म आती है।
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