लंका थाना पुलिस ने पीड़ता की तहरीर में उल्लेखित आरोपों को
दरकिनार कर मनमुताबिक धारा में दर्ज किया एफआईआर।
Reported by राजीव कुमार मौर्य, विधि संवाददाता
वाराणसी। अवैध वसूली, उत्पीड़न और मानवाधिकार हनन के गैर-कानूनी
कारनामों में बदनाम उत्तर प्रदेश पुलिस का एक नया कारनामा सामने आया है। लंका थाना
पुलिस ने अपने यहां दर्ज एफ.आई.आर. में दलित उत्पीड़न की शिकार महिला शिक्षिका को
ना केवल जूता-चप्पलों की माला पहनाई, बल्कि उसे नंगा तक घुमा दिया जबकि पीड़िता ने
अपनी तहरीर में कहीं भी इन शब्दों का जिक्र नहीं किया है।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पत्रकारिता एवं जन
संप्रेषण विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. शोभना नर्लिकर ने गत 6 जुलाई को विश्वविद्यालय
के मुख्य सुरक्षाधिकारी के मार्फत लंका थाना प्रभारी को तहरीर देकर कला संकाय
प्रमुख और प्रभारी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कुमार पंकज के खिलाफ जातिसूचक शब्द का
प्रयोग करते हुए भद्दी-भद्दी गालियां देने, दुर्व्यवहार करने और जान से मारने की
धमकी देने के आरोपों में एफ.आई.आर. दर्ज करने और गिरफ्तार करने की गुहार लगाई थी
लेकिन 7 जुलाई की शाम तक एफ.आई.आर. दर्ज नहीं हुई।
पीड़िता डॉ. शोभना नर्लिकर के मुताबिक, वह 7 जुलाई की शाम
एफ.आई.आर. की प्रति लेने लंका थाने पहुंची थीं लेकिन लंका थाने में उनके नाम से
कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई थी और ना ही उनके द्वारा लिखी गई तहरीर विश्वविद्यालय
के मुख्य सुरक्षाधिकारी की ओर से अग्रसारित होकर थाना प्रभारी के पास आया था।
आगे वह बताती हैं, “मैं 7 जुलाई की शाम कुछ छात्रों के साथ लंका
थाने गई थी और एफ.आई.आर. के बाबत जानकारी मांगी लेकिन वहां उपस्थित दारोगा ने ऐसी
किसी प्रकार की तहरीर नहीं मिलने की बात कही। इसके बाद मैंने तहरीर की हस्ताक्षरित
प्रति दारोगा को देकर प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया लेकिन उसने तत्काल ऐसा
करने से मना कर दिया। उसने भरोसा दिलाया कि दो घंटे में मेरी तहरीर पर एफ.आई.आर.
दर्ज हो जाएगी और उन्हें उसकी कॉपी मिल जाएगी। फिर हम वापस घर चले आए। 8 जुलाई को मैंने इस संबंध में थाने में पता
किया तो यह जानकारी हुई कि मेरी तहरीर पर कोई एफ.आई.आर. दर्ज नहीं हुई है।”
पुलिस के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए डॉ. नर्लिकर
कहती हैं, “उसी दिन मैंने एसएसपी के पीआरओ से बात की और
उनको मामले से अवगत कराते हुए एसएसपी से मिलने के लिए समय मांगी। कुछ देर बाद मेरे
मोबाइल फोन पर सीओ का फोन आया और उन्होंने थाने पहुंचने की बात कही। कुछ देर बाद
मैं कुछ छात्रों के साथ थाने पहुंची। तब जाकर मेरी तहरीर पर आई.पी.सी की धारा-504
और 506 तथा एससी/एसटी एक्ट की धारा-3(1)(डी) में एफ.आई.आर. दर्ज हुई। करीब चार
घंटे बाद मुझे एफ.आई.आर. की कॉपी मिली और उसे लेकर मैं घर वापस आ गई। जब कानून के
जानकारों ने एफ.आई.आर. की कॉपी देखी तो मुझे मालूम हुआ कि पुलिस ने आरोपी को लाभ
पहुंचाने के लिए एससीएसटी एक्ट की गलत धारा एफ.आई.आर. में दर्ज की है। इसमें
उन्होंने आरोपी द्वारा मुझे जूता-चप्पलों की माला पहनाने और नंगा घुमाने का आरोप
लगा दिया है जबकि मेरी तहरीर में कहीं भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया
है।”
“वनांचल एक्सप्रेस” ने जब डॉ.शोभना
नर्लिकर की तहरीर, उसके आधार पर लंका थाने में दर्ज एफआईआर और अनुसूचित जाति एवं
अनुसूचित जनजाति (निशंसता निवारण) अधिनियम-1989 के यथासंशोधित प्रावधानों का
अध्ययन किया तो पाया कि पुलिस ने तहरीर के शब्दों से अलग जाकर एससी/एसटी एक्ट की
3(1)(डी) धारा का इस्तेमाल किया है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (निशंसता
निवारण) संशोधित अधिनियम-2015 की धारा-3(1)(डी) कहता है, कोई व्यक्ति, जो अनुसूचित
जाति अथवा अनुसूचित जनजाति वर्ग का नहीं है, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग
के सदस्य को जूता-चप्पलों की माला पहनाता है या अर्द्ध नग्न या नग्न घुमाता है तो उसे
कम से कम छह महीने और अधिकतम पांच साल की जेल के साथ जुर्माने की सजा होगी।
अगर पीड़िता की तहरीर में उल्लेखित शब्दों पर गौर करें तो लंका
पुलिस को भारतीय दंड संहिता की धारा-504 (गाली-गलौज) और 506 (जान से मारने की
धमकी) के अलावा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (निशंसता निवारण) अधिनियम-1989
की यथासंशोधित धारा-3(1)(आर) एवं 3(1)(एस) में एफ.आई.आर. दर्ज करनी चाहिए थे लेकिन
उसने ऐसा नहीं किया। इस अधिनियम की धारा-3(1)(आर) में ऊंची जाति के व्यक्ति द्वारा
किसी सार्वजनिक स्थान पर अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्य को नीचा
दिखाने के उद्देश्य से बेइज्जत करने का जिक्र किया गया है जबकि धारा-3(1)(एस) में किसी
सार्वजनिक स्थान पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्य को जाति सूचक
शब्द द्वारा गाली देने का उल्लेख किया गया है। तहरीर में पीड़िता ने कायस्थ समुदाय
से ताल्लुक रखने वाले प्रो. कुमार पंकज पर जातिसूचक शब्द का प्रयोग करते हुए
भद्दी-भद्दी गालियां देने का आरोप लगाया है।
इस बाबत जब पुलिस विभाग के पूर्व आईजी और दलित चिंतक
एस.आर.दारापुरी से बात की गई तो उन्होंने कहा, "पुलिस
ने आरोपी को लाभ पहुंचाने के लिए जान-बूझकर ऐसा किया है। इसके लिए वह पूरी तरह से
दोषी है। उसके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें इसका
प्रावधान है।"
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