संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए चौधरी राजेंद्र और मंचासीन अनीता भारती, डॉ. दुर्गा श्रीवास्तव, अमरनाथ और विजय नारायण। |
लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जयंती और डॉ. राम मनोहर लोहिया
की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘लोकतंत्रः गतिरोध और संभावनाएं’ विषयक संगोष्ठी में समाजवादियों,
गांधीवादियों और वामपंथियों ने व्यक्त किये विचार।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। लोकनायक जय
प्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया राजनीतिक और वैचारिक प्रतिबद्धता और समर्पण
के प्रतीक हैं। उनका ना कोई घर था और ना ही कोई निश्चित पता। आज राजनीति से
विचारधाराएं गायब हो गई हैं। उनकी जगह संप्रदायवाद और जातिवाद ने ले लिया है।
राजनीति आज देश का खजाना लूटने का धंधा बन चुकी है।
ये बातें प्रखर
समाजवादी विचारक विजय नारायण ने बुधवार को मैदागीन स्थित पराड़कर स्मृति सभागार
में आयोजित ‘लोकतंत्रः गतिरोध और
संभावनाएं’ विषयक संगोष्ठी में
कहीं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता और राजनीतिज्ञ चौधरी
राजेंद्र की पहल पर भारतीय समता परिवार, असि नदी बचाओ, भारतीय सामाजिक न्याय
मोर्चा और आदिवासी संगठन सोनभद्र ने संयुक्त रूप से इस संगोष्ठी का आयोजन किया था।
लोकनायक जय प्रकाश नारायाण की जयंती और डॉ. राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि की
पूर्व संध्या पर आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विजय नारायण ने काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय (बीएचयू) की छात्राओं के आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि बीएचयू तानाशाही
के ढांचे में ढल चुका है। छात्राओं पर लाठीचार्ज इसका प्रतीक है। उन्होंने युवाओं
का आह्वान करते हुए कहा कि अगर आप सामुहिक रूप से लड़ेंगे तो आप किसी भी तानाशाह
सरकार को हरा देंगे। उन्होंने साफ कहा कि डॉ. लोहिया और जेपी की रिक्ति को
नौजवानों को ही पूरा करना होगा तभी वास्तविक लोकतंत्र का रास्ता प्रशस्त होगा।
उन्होंने काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र आंदोलन में विश्वविद्यालय प्रशासन और जिला प्रशासन
की भूमिका को रेखांकित करते हुए 16 अगस्त 1942 की घटना का जिक्र किया जिसमें 200
से ज्यादा छात्रों को गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने बताया कि उस समय डॉ.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति थे। अंग्रेजों से देश
की आजादी के लिए छात्र आंदोलन कर रहे थे लेकिन कुलपति ने पुलिस फोर्स को
विश्वविद्यालय के अंदर घुसने नहीं दिया। साथ ही छात्रों से कहा कि आप
विश्वविद्यालय के बाहर चाहे जो आंदोलन करें लेकिन विश्वविद्यालय के अंदर यह
स्वीकार नहीं किया जाएगा। 200 से ज्यादा छात्रों ने लंका से कलेक्ट्रेट तक जुलूस
निकाला और एक छात्र ने कलेक्ट्रेट भवन की छत पर लहरा रहे ब्रिटिश साम्राज्य के
झंटे को उतारकर कांग्रेस के झंडे को लगा दिया। उस समय कलेक्टर ने अपनी कुशलता का
परिचय दिया। उसने कोई लाठीचार्ज नहीं कराया और ना ही गोली चलवाई। हालांकि
विश्वविद्यालय लौट रहे करीब 200 छात्रों को रास्ते में गिरफ्तार करा लिया। लेकिन,
पिछले दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्राओं के साथ जो हुआ वह एक तानाशाही व्यवस्था
का प्रतीक है जो ब्रिटिश सरकार में भी नहीं हुआ था। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आज
अंग्रेजी शिक्षा व्यापारीकरण और लूट का माध्यम बन गया है। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने
1967 से पहले ही यह आशंका व्यक्त कर दी थी। उन्होंने 1967 में अंग्रेजी भाषा के
खिलाफ ‘अंग्रेजी हटाओ, भारतीय
भाषा लाओ’ आंदोलन शुरू किया था। आज
फिर से यह आंदोलन शुरू करने की जरूरत है।
मंचासीन गोकुल अगरिया, अनिता भारती, डॉ. दुर्गा श्रीवास्तव, अमरनाथ भाई, विजय नारायण, तपन घोष, शमीम मिल्की और चौधरी यशवंत सिंह। |
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
के प्रोफेसर आनंद दीपायन ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज लोकतांत्रिक
प्रक्रिया की चुनौती यह है कि समाज के कितने लोग लोकतंत्र की स्थापना के लिए आग्रह
करना चाहते हैं और वे इसके लिए लोगों के बीच जाते हैं। आज किसी भी राजनीतिक पार्टी
के अंदर लोकतंत्र नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि उनके अंदर जनता का दबाव बढ़ाया
जाए। आज विश्व में लोकतंत्र के सिवाय कोई विकल्प नहीं है।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रखर गांधीवादी विचारक अमर नाथ भाई। |
कार्यक्रम में
समाजवादी जन परिषद के अफलातून, डॉ. महेश विक्रम, डॉ. स्वाति सिंह, काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष चंचल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तपन घोष,
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो. रमन पंत, प्रखर समाजवादी डॉ. छोटेलाल यादव,
मृत्युंजय त्रिपाठी, अब्दुल्लाह खान, प्रेमचंद शोध संस्थान लमही के डॉ. दुर्गा
श्रीवास्तव, सामाजिक कार्यकर्ता शमीम मिल्की, भारतीय समाजिक न्याय मोर्चा के अध्यक्ष
चौधरी यशवंत सिंह, भारतीय समता परिवार की उपाध्यक्ष अनिता भारती, राहुल राजभर,
अमरेंद्र प्रताप, सुनील कश्यप, इश्तिखार अली, राकेश मौर्य आदि ने भी विचार व्यक्त
किये। इस दौरान जनवादी युवा कवि नरेश राम ने अपने आंदोलनकारी कविताओं और गीतों से
स्रोताओं की तालियां बंटोरी।
कार्यक्रम में
प्रमुख रूप से राजीव कुमार मौर्य, शिक्षक कमलेश कुमार यादव, सहायक प्राध्यापक मनीष
सिंह, भारतीय समता परिवार के अध्यक्ष और शोधार्थी बिजेंद्र कुमार मीणा, तौसिफ रजा,
प्रज्ञा सिंह, प्रवीण पाल, प्रभात महान, गौविंद मीणा समेत सोनभद्र से आये दर्जनों
आदिवासी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन असि नदी बचाओ संस्था के संयोजक डॉ. गणेश
चतुर्वेदी और अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन राजनीतिक चिंतक चौधरी राजेंद्र ने किया।
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