दिल्ली विश्वविद्यालय ने शिक्षा सत्र-2020-21 के आवेदन शुल्क में अन्य पिछड़ा वर्ग को कोई छूट नहीं दी है जबकि उतनी ही सलाना आमदनी वाले ईडब्ल्यूएस कोटे के सवर्णों को एससी,एसटी और दिव्यांग को मिलने वाली छूट के बराबर आवेदन शुल्क में छूट दी है। दिल्ली विधानसभा के पूर्व सदस्य पंकज पुष्कर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर जताई आपत्ति।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने हर साल आठ लाख रुपये तक कमाने वाले ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से वंचित वर्ग) कोटे के सवर्णों को शिक्षा सत्र-2020-21 के आवेदन शुल्क में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) एवं दिव्यांग (पीडब्ल्यूबीडी) वर्गों की तरह छूट दिया है। वहीं, इतनी ही कमाई करने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग को आवेदन शुल्क में छूट की व्यवस्था से वंचित कर दिया है। उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए आवेदन करने पर अनारक्षित वर्ग के लिए निर्धारित शुल्क ही चुकानी होगी।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने शिक्षा सत्र-2020-21 में प्रवेश के लिए इंफॉर्मेशन बुलेटिन जारी की है। इसमें उल्लिखित आवेदन शुल्कों की बात करें तो विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर संचालित पाठ्यक्रमों में अनारक्षित और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के लिए 250 रुपये (मेरिट आधारित पाठ्यक्रम) और 750 रुपये (प्रवेश परीक्षा आधारित पाठ्यक्रम) निर्धारित किया गया है। वहीं, एससी, एसटी, दिव्यांग और ईडब्ल्यूएस कोटे के छात्रों के लिए 100 रुपये (मेरिट आधारित पाठ्यक्रम) और 300 रुपये (प्रवेश परीक्षा आधारित पाठ्यक्रम) निर्धारित किया गया है। गौर करने वाली बात है कि सरकार द्वारा गठित विभिन्न आयोगों की रपटों में साफ हो चुका है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आने वाले समूहों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन सामान्य या अनारक्षित वर्गों में शामिल समूहों से बहुत अधिक है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (नान-क्रिमीलेयर) के लिए जो मानक तैयार किया है, वह ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आने वाले सवर्णों की आर्थिक आमदनी के समान ही है। इसके बावजूद अन्य पिछड़ा वर्ग को आवेदन शुल्क में कोई छूट नहीं दी गई है। बता दें कि केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (नान-क्रिमीलेयर) और ईडब्ल्यूएस कोटे की सलाना आमदनी आठ लाख रुपये से कम निर्धारित किया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले छात्रों के लिए निर्धारित आवेदन शुल्क |
इसी तरह दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के आवेदन शुल्क को भी निर्धारित किया है। एससी, एसटी, दिव्यांग और ईडब्ल्यूएस कोटे के छात्रों के लिए आवेदन शुल्क प्रति विषय 300 रुपये निर्धारित किया गया है। वहीं अनारक्षित, ओबीसी और अन्य वर्गों के छात्रों को प्रति विषय 750 रुपये चुकाने होंगे।
एम.फिल और पीएच.डी पाठ्यक्रमों के आवेदन शुल्क का हाल भी ऐसा ही है। अनारक्षित और ओबीसी को आवेदन शुल्क के रुप में प्रति विषय 750 रुपये भरने होंगे जबकि अन्य आरक्षित वर्ग के आवेदकों को आवेदन शुल्क के रूप में केवल प्रति विषय 300 रुपये चुकाने होंगे।
गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। यह केंद्र सरकार के अधीन आता है। केंद्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नीत भाजपा की सरकार जब से बनी है, तभी से विभिन्न सरकारी संस्थाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण और इसके तहत मिलनी वाली रियायतों को खत्म करने की कोशिश हो रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय में अन्य पिछड़ा वर्ग को शुल्क में छूट नहीं मिलने और ईडब्ल्यूएस कोटे के सवर्णों को एससी/एसटी/विकलांग की तहत छूट देने को लोग इसी कड़ी की कवायद में देख रहे हैं।
दिल्ली विधानसभा के पूर्व सदस्य पंकज पुष्कर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश त्यागी को पत्र लिखकर अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को आवेदन शुल्क में छूट नहीं दिये जाने पर आपत्ति जताई है। उन्होंने पत्र में लिखा है, "दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्र 2020-21 के एडमिशन फॉर्म में ओबीसी वर्ग से 750 रुपये जबकि ईडब्ल्यूएस वर्ग से 300 रुपेय लेने का प्रावधान रखा गया है। ईडब्ल्यूएस केटेगरी 8 लाख रुपये वार्षिक से कम आय वाले केवल सवर्ण उम्मीदवारों के लिएं लागू है। यह किसी तरीके से भी न्याय संगत नहीं है। इस तरह की छोटी-छोटी विसंगतियां शिक्षा तथा रोजगार में समुचित सामाजिक भागीदारी एवं सामाजिक न्याय के संवैधानिक नीति निर्देश पर ही चोट करती है। कृपया तत्काल ओबीसी छात्रों के लिए भी एडमिशन फॉर्म की कीमत 300 रुपये करना सुनिश्चित करें। बड़ी संख्या में छात्र और शिक्षकों का ऐसा आग्रह है।"
वनांचल एक्सप्रेस ने पंकज पुष्कर से बात की तो उन्होंने कहा, "दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रबंधन का मॉडल बहुत अनुत्पादक सवर्ण पूंजीवादी मॉडल है। साधनों का अपव्यय, लूट और बर्बादी की कीमत वास्तव में गरीब सवर्ण छात्रों सहित सभी को चुकानी पड़ती है। एडमिशन का फॉर्म भरने जैसे रूटीन प्रशासनिक काम के लिए किसी भी छात्र से 700 रुपये क्यों वसूले जाएं, इसका तर्कसंगत आधार ढूंढना मुश्किल है। यह एक अनुत्पादक पूंजीवादी मॉडल का उदाहरण है जिसमें प्रबंध तंत्र की अयोग्यता और कुशलता की कीमत उत्पादक या उपभोक्ता को झेलनी पड़ती है। दिल्ली विश्वविद्यालय के संदर्भ में एडहॉक और गेस्ट टीचर और साधारण छात्र इस अयोग्य प्रबंधन तंत्र के अकुशल वित्तीय प्रबंधन के कारण पीड़ित हैं। लेकिन इस सर्वव्यापी कुप्रबंध में विशेष तौर से मार दलित और पिछड़े छात्रों को पड़ती है।"
वे आगे कहते हैं कि जब विश्वविद्यालयों में सामाजिक प्रतिनिधित्व देने और आरक्षण को लागू करने की बात आती है तो विश्वविद्यालय का सवर्ण अभिजात्य प्रबंध तंत्र तरह-तरह के चोर दरवाजे निकाल लेता है। इसी तरह एडमिशन प्रक्रिया के साथ ही विभेदकारी अनुभवों जीने की आदत डलवाई जाती है। एडमिशन के बाद के कड़वे अनुभवों की आदत डलवाने के लिए पहले ही कदम पर 52 प्रतिशत ओबीसी आबादी के आने वाले छात्रों को एक मैसेज दे दिया जाता है कि तुमको बैकवर्ड कहकर बदनाम किया जाएगा लेकिन तुमसे फीस पूरी वसूली जाएगी। तुम्हें सुविधाएं आधी मिलेंगी लेकिन तुमसे जो वसूला जाना है वह दोगुना होगा।
अगर दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया की नीति को निर्धारित करने वाली प्रवेश कमेटी के सदस्यों की बात करें तो इस कमेटी के डीन पद पर क्लस्टर इन्नोवेशन सेंटर की प्रो. शोभा बगई तैनात हैं जो सामान्य वर्ग में आने वाले सिंधी समुदाय से हैं। नवंबर में इस पद पर शिक्षा विभाग के प्रो. पंकज अरोरा की नियुक्ति की गई थी जो सामान्य वर्ग से ही आते हैं। फरवरी के तीसरे सप्ताह में उनकी जगह बगई की तैनाती कर दी गई। कमेटी के दूसरे सदस्य और डिप्टी डीन के रूप में डॉ. हनीत गांधी की नियुक्ति की गई है। यह भी सामान्य वर्ग से आती हैं। सहायक उप-कुलसचिव (प्रवेश) के रूप में डॉ. ओ.पी. शर्मा की नियुक्ति की गई है। यह भी सामान्य वर्ग से हैं।
इस मामले पर वनांचल एक्सप्रेस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। उनका पक्ष आते ही खबर में जोड़ दिया जाएगा।
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