नागरिका संशोधन कानून (CAA) विरोधी आंदोलन में शामिल प्रदर्शनकारियों और वक्ताओं को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार क्षतिपूर्ति की वसूली के लिए भेज रही नोटिस। रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब और एआईपीएफ (रेडिकल) के नेता और पूर्व पुलिस अधिकारी एस.आर.दारापुरी को भी मिला नोटिस। मंच के महासचिव राजीव यादव ने सरकार के नोटिस पर उठाया सवाल, कहा-अदालती प्रक्रिया पूरी हुए बिना वसूली नोटिस भेजकर सरकार कर रही कानून का उल्लंघन।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
लखनऊ। नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलन में शामिल प्रदर्शकारियों और वक्ताओं के खिलाफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार शख्त हो गई है। उसने प्रदर्शन के दौरान हुई क्षतिपूर्ति का आरोप लगाकर उन्हें वसूली नोटिस भेज रही है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब और पूर्व पुलिस अधिकारी एस.आर. दारापुरी को वसली नोटिस भेजा है। इससे नाराज रिहाई मंच ने संगठन के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब को रिकवरी नोटिस भेजे जाने को बदले की कार्रवाई करार दिया।
मंच ने जारी विज्ञप्ति में कहा कि दिल्ली के बाद यूपी पुलिस द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों और स्क्रोल की पत्रकार सुप्रिया शर्मा पर मुकदमा सरकार की दमनकारी नीति है। मंच इसका पुरजोर विरोध करता है। मंच ने सीएए विरोधी आंदोलन दिसंम्बर 2019 पर आई चार्जशीट को निर्धारित प्रक्रिया अपनाए बिना लाने पर सवाल उठाया। उसने कहा कि रासुका, गैंगेस्टर जैसी कार्रवाइयों के जरिए इंसाफ पसंद आवाजों को दबाने की कोशिश हो रही है। वहीं इस मामले में जब चार्जशीट पुलिस ने न्यायालय में दाखिल कर दिया है तो बिना न्यायालय की अनुमति के कैसे वह कार्रवाई कर रही है।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब और पूर्व पुलिस अधिकारी एस.आर.दारापुरी |
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब को ऐसे समय में रिकवरी नोटिस भेजा गया जब इससे सम्बंधित मुकदमा हाईकोर्ट में लंबित है। मुहम्मद शुऐब ने रिकवरी आदेश निरस्त करने की मांग की है। पुलिस सरकारी संम्पत्ति के नुकसान का जो आरोप मुहम्मद शुऐब और एसआर दारापुरी पर लगा रही है, वव बेबुनियाद है क्योंकि दोनों को पुलिस ने नजरबंद कर रखा था। इस मामले में 17 जून 2020 को सुनवाई थी जिसमें सरकारी वकील ने वक़्त मांगा है और अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में है।
राजीव यादव ने कहा कि देश कोरोना संकट से जूझ रहा है, अदालतों का काम आधा-अधूरा ही चल रहा है। ऐसे में रिकवरी नोटिस भेजा जाना जानबूझकर दमन करने और इंसाफ से वंचित करने की साजिश है। पूर्व आईजी एसआर दारापुरी समेत अनेक कार्यकर्ताओं को नोटिस भेजने वाली प्रदेश सरकार उनके खिलाफ कोई सुबूत पेश नहीं कर पाई और उनको जमानत मिल चुकी है। जुर्म साबित हुए बिना जुर्माना लेना कहां का कानून है? क्या भारतीय कानून से अलग कोई कानून योगी सरकार चला रही है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार अदालतों को नज़रअंदाज़ कर इंसाफ का गला घोंट रही है। इससे पहले भी सीएए आंदोलनकारियों के होर्डिंग लगाए जाने के मामले में भी हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रदेश सरकार ने होर्डिंग नहीं हटाए। होना तो ये चाहिए कि प्रदेश सरकार ने जनता की जो गाढ़ी कमाई बर्बाद की उसकी उससे वसूली हो।
मंच महासचिव ने कहा कि लखनऊ घंटाघर पर सीएए का विरोध कर रही महिलओं समेत अन्य लोगों को नोटिस भेजा जाना भी इसी दमनकारी चक्र का हिस्सा है। महिलाओं ने सीएए विरोधी आंदोलन 23 मार्च को कोरोना संकट के मद्देनज़र स्थगित कर दिया था। इससे पहले प्रदेश सरकार के इशारे पर लखनऊ पुलिस प्रशासन ने आंदोलन को खत्म करवाने के लिए दमनकारी नीति अपनाई थी और मारपीट के साथ ही फर्जी मुकदमें कायम कर जेल भेज दिया था।
रिहाई मंच ने कहा कि कोरोना संकट के आरंभिक काल में ही प्रदेश सरकार भी बार-बार कोरोना संक्रमण का हवाला देते हुए आंदोलन खत्म करने की बात कर रही थी। महिलाओं ने देश और समाज के व्यापक हित में धरना 23 मार्च को स्थगित भी कर दिया था जबकि उस समय तक देश में कुल संक्रमितों की संख्या मात्र 399 और प्रदेश में कोरोना पॉज़िटिव की संख्या 25 से भी कम थी। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि आज जब देश में करीब पौने तीन लाख कोरोना संक्रमित हैं और प्रदेश में यह संख्या पंद्रह हज़ार के करीब है, कोरोना संक्रमण से 450 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस तरह की कार्रवाई का मतलब लोतांत्रिक स्वर के दमन के अलावा और क्या हो सकता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह की धाराओं में प्रदर्शनकारियों पर मुकदमें कायम किए जा रहे हैं वह समाज में विभाजन पैदा करने वाले हैं।
(प्रेस विज्ञप्ति)
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