बुधवार, 15 जुलाई 2020

GROUND REPORT: यहां बारिश ढाती है कहर...जंगली घास है भूख मिटाने का निवाला

उत्तर प्रदेश में नक्सल आंदोलन और उसके दमन के लिए चर्चित नौगढ़ विकासखंड की भौगोलिक स्थिति यहां के बाशिंदों के लिए बरसात के दिनों में मुसीबत बनकर टूटती है। इसमें जब सरकारी तंत्र की उदासीनता शामिल हो तो यह यहां के लोगों पर सितम ढाती है। पढ़िए शिव दास  की यह ज़मीनी रिपोर्टः-
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'कवड़-फकवड़ क साग खोट के खात बानी जा...कहीं जंगल में बा पत्ती-पत्ता...बरवट-मरवट बोलला ऊ...उ लियायके, ओके चुरय-पकय के खाईला जा...का करल जाई' यह कहना है उत्तर प्रदेश के पैंसठ साल की गुलाबी का। वह मुसहर समुदाय से आती हैं और चंदौली के नरकटी गांव की निवासी हैं।

नक्सल प्रभावित नौगढ़ विकास खंड का नरकटी गांव 2004 में सुर्खियों में था। यहां के जंगल में हिनौत घाट के पास नक्सलियों ने बम विस्फोट कर पीएसी के एक वाहन को उड़ा दिया था। इसमें पुलिस और पीएसी के सत्रह जवानों की मौत हो गई थी। पिछले साल नवंबर के पहले सप्ताह में मैंने नरकटी गांव का दौरा किया। मधुपुर-नौगढ़ मार्ग से नरकटी को जाने वाले रास्ते पर मुड़ते ही मेरी मुलाकात नरकटी गांव निवासी राम बिलास कोल से हुई। उन्होंने इलाके की भौगोलिक स्थिति और वहां की समस्याओं के बारे में मार्ग दर्शक का काम किया।
नरकटी गांव को जाने वाला रास्ता और नरकटी गांव निवासी राम बिलास कोल।
करीब तीस साल पहले भी इस इलाके में मेरा कई बार जाना हुआ था। उस समय मैं जूनियर हाईस्कूल में पढ़ता था। जंगली बेर और मकोय खाने के लिए इंटरमीडिएट कॉलेज मधुपुर के छात्रों का झुंड अक्सर जयमोहनी और गहिला के झंगलों में जाता था। आंवला पैदा होने के मौसम में छात्र गहिला के जंगलों में चल देते थे। चंद्रप्रभा नदी किनारे लिट्टी-चोखा की पार्टी भी होती थी और आंवला तोड़कर शाम तक घर वापस हो लेते थे। स्कूल छोड़कर करीब दस से पंद्रह किलोमीटर की यह दूरी इंटर कॉलेज के छात्रों के लिए स्थानीय ट्रीप बन गई थी। हालांकि अब हालात बदल गए हैं। उस समय मधुपुर-नौगढ़ मार्ग से मुड़ते ही फॉरेस्ट रेंजर की ऑफिस पर वहां के कर्मचारियों से सामना होता था लेकिन अब यहां कोई नहीं रहता है। यह अब खंडहर बन चुका है। यहां कोई नहीं रहता। यहां से शुरू होने वाला घरघोर जंगल अब विरान है।  
जयमोहनी वन क्षेत्र के फॉरेस्ट रेंजर का ऑफिस।
गड्ढों में तब्दील हो चुकी तारकोल की सड़क के रास्ते करीब दो किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद चंद्रप्रभा नदी है जिसकी पुलिया पर हमेशा पानी बहता रहता है। इसी बहते पानी से होकर लोगों को नरकटी गांव जाना पड़ता है। बरसात के दिनों में इसे पार करना मुश्किल हो जाता है।
चंद्रप्रभा नदी
नरकटी गांव निवासी राम बिलास कोल की बातों की मानें तो गांव में जाने के लिए यह मुख्य मार्ग है। बरसात के दिनों में इसे पार करते समय लोग बह जाते हैं। कई बार वाहन भी बह चुके हैं। उनका कहना है कि क्षेत्र के पूर्व भाजपा सांसद छोटेलाल खरवार अपने कार्यकाल के दौरान कई बार इस रास्ते से गुजरे। लोगों ने इस पर ऊंचा पुल बनाने के लिए उनसे और स्थानीय विधायकों से गुहार भी लगाई लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
जयमोहनी-गहिला के जंगलों से गुजरने वाली चंद्रप्रभा नदी पर बनी यह पुलिया धार्मिक सद्भाव की प्रतीक भी है। पुलिया के पश्चिमी छोर पर मुस्लिम धर्म में विश्वास रखने वाले लोगों की आस्था का प्रतीक मजार है तो पूर्वी छोर पर हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों की आस्था का प्रतीक गहिला बाबा का मंदिर। इस वजह से यह दोनों धर्मों के लोगों का तीर्थ स्थल भी बन गया है। आस-पास के लोग यहां समय मिलने पर लिट्ठी-चोखा की पार्टी करते हैं।
चंद्रप्रभा नदी के पश्चिमी छोर पर स्थित मजार
चंद्रप्रभा नदी के पूर्वी छोर पर स्थित गहिला बाबा का मंदिर।
गहिला बाबा के मंदिर स्थित प्रतिमा
गहिला बाबा मंदिर के पुजारी हरिवंश की मानें तो मंदिर का निर्माण 1985 में हुआ था। लोग यहां मन्नते मानते हैं और उसके पूरा होने पर कथा सुनते हैं या शिव चर्चा कराते हैं।
गहिला बाबा के मंदिर से नरकटी गांव की घनी बस्ती की दूरी करीब तीन किलोमीटर है लेकिन चंद्रप्रभा बांध किनारे बसे उस गांव की हंसुअवा टोला की दूरी महज दो किलोमीटर ही है। हालांकि इसका रास्ता गहिला बाबा मंदिर के पास से ही कटता है जो पूरी तरह से कच्चा और उबड़-खाबड़ है।
नरकटी के हंसुअवा टोला जाने का रास्ता
नरकटी के हंसुअवा टोला जाने का रास्ता
मुसहर और चमार समुदाय बहुल करीब 30 परिवारों वाली इस बसावट तक पहुंचने के लिए सरकारी कागजों में रास्ते के लिए अभी कोई योजना नहीं है। हालांकि स्थानीय बाशिंदों ने खुद रास्ता बनाने की कोशिश की है लेकिन वन विभाग के अधिकारियों की आपत्ति की वजह से वह परवान नहीं चढ़ सका है। हंसुअवा निवासी नारायण कहते हैं कि हम लोग जब रास्ता बनाने लगे तो वन विभाग के अधिकारियों ने रोक दिया जिसकी वजह से रास्ता नहीं बन सका।
हंसुअवा टोला निवासी बाशिंदों ने सामुहिक प्रयास से करीब एक किलोमीटर तक कच्चा मार्ग का निर्माण कर लिया है लेकिन जंगल की भूमि वाले रास्ता का निर्माण नहीं हो पाया है। आज भी वे उसी कच्चे रास्ते से लोग आते-जाते हैं।
हंसुअवा टोला के बाशिंदों द्वारा बनाया गया मार्ग।
अगर नियमों के मामले में वन विभाग के अधिकारियों के दावों पर गौर करें तो उनके अनुपालन में वे फिसड्ढी साबित हुए हैं। इस इलाके में आंवला के सैकड़ों वृक्ष हुआ करते थे। यहां अन्य कई प्रकार के वृक्ष थे जिसकी वजह से ये इलाका घना जंगल हुआ करता था लेकिन आज ये वृक्ष नहीं हैं। वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से लकड़ी तस्करों ने पूरे जंगल को विरान कर दिया है। अब यहां केवल झाड़िया नज़र आती हैं। आज ये इलाका कहने मात्र को जंगल है लेकिन जब यहां के आदिवासी और वन निवासी रास्ता बनाकर अपने जीवन को सुगम बनाना चाहते हैं तो वन विभाग के अधिकारी नियमों का हवाला देकर उनके विकास में रोड़े खड़ा किये हुए हैं।
हंसुअवा टोला को जाने वाले रास्ते का जंगल
जब मैं हंसुअवा टोला में पहुंचा तो वहां तेरही (मृत्यु भोज) का कार्यक्रम चल रहा था। अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल चमार समुदाय से आने वाले एक बुजुर्ग की मौत कुछ दिनों पहले हो गई थी। पूरी बस्ती उस कार्यक्रम में व्यस्त थी। हिन्दू धर्म की परंपरा के अनुसार वे ब्राह्मण भोज की तैयारी कर रहे थे। कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोग एक पेड़ के नीचे लगी चारपाई और कुर्सी पर बैठे थे।
हंसुअवा टोला में तेरही (मृत्यु भोज) के कार्यक्रम में मौजूद लोग।
वहां मेरी मुलाकात बस्ती निवासी उन्तालीस वर्षीय नारायण से हुई जो अनुसूचित जाति वर्ग के चमार समुदाय से आते हैं। लाउडस्पीकर पर बज रहे गाने की शोर की वजह से मैं वहां बैठे लोगों से बात कर पाने में सक्षम नहीं हो पाया तो नारायण मुझे मुसहर समुदाय से आने वाली पैंसठ वर्षीय गुलाबी के घर ले गए। वह सत्तर वर्षीय पति घूरा के साथ खपरैल के कच्चे मकान में रहती हैं।
गुलाबी का घर
बंधी प्रखंड की एक बीघा जमीन पर उन्हें खेती कर जीवन यापन करने का अधिकार मिला है जिसका पनकट उन्हें हर साल देना पड़ता है। उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है। उनका बड़ा बेटा कुमार तीस साल का है जबकि छोटा शिवकुमार पच्चीस साल का। दोनों उनके साथ रहते हैं। गुलाबी का परिवार राज्य सरकार की अत्योदय कार्ड (लाल कार्ड) श्रेणी में आता है लेकिन उन्हें केंद्र या राज्य सरकार की ओर से आवास नहीं मिला है। राशन लेने के लिए उन्हें चंद्रप्रभा नदी पार कर पंद्रह किलोमीटर दूर हिनौत घाट जाना पड़ता है। बरसात के दिनों में चंद्रप्रभा नदी में बाढ़ आ जाती है जिसकी वजह से उन्हें राशन लेने के लिए पैंतीस किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। वे लौआरी गांव होते हुए हिनौत घाट स्थित सरकारी राशन की दुकान से अनाज उठाती हैं जिसकी वजह से वे कई महीने राशन नहीं उठा पातीं। मनरेगा के तहत उनका जॉब कार्ड तो बना है लेकिन ग्राम पंचायत से उन्हें काम ही नहीं मिलता। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत उन्हें एलपीजी गैस का कनेक्शन तो मिल गया है लेकिन घर तक गैस सिलेंडर की आपूर्ति नहीं होने की वजह से उसमें दोबारा गैस नहीं भराया जा सका है। वह शो-पीस बनकर रह गया है। बस्ती में विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था नहीं है। इस वजह से उनके घर भी बिजली नहीं है। केंद्र सरकार का स्वच्छता अभियान इनके लिए केवल दिखावा है। बस्ती में किसी के घर शौचालय नहीं है। गुलाबी और उनके पति सरकारी की वृद्धा पेंशन योजना के पात्र हैं लेकिन उन्हें सरकार की ओर से कोई पेंशन नहीं मिलता है जबकि दोनों के पास मतदाता पहचान-पत्र और आधार कार्ड है।
गुलाबी के घर पर ही मेरी मुलाकात टोला निवासी सैंतालीस वर्षीय श्याम लाल से हुई। घास खाने के सवाल पर उन्होंने स्वीकार किया कि वे लोग बरसात के दिनों में चकवड़, कुनकुन, गेलिहा आदि घासों का साग बनाकर खाते हैं।
सरकारी योजनाओं और समस्याओं के बारे में श्यामलाल के परिवार की हालत भी वही है जो गुलाबी के परिवार की है। अंत्योदय राशन कार्ड धारक श्यामलाल बताते हैं कि बरसात के दिनों में राशन उठाने के लिए उन्हें लौआरी के रास्ते पैंतीस किलोमीटर दूर हिनौत घाट जाना पड़ता है। इसकी वजह से वे कई बार राशन नहीं उठा पाते हैं।
यह हाल है उस मुसहर समुदाय का जिसके विकास के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जाति आधार पर विशेष दिशा-निर्देश जारी कर रखा है। उत्तर प्रदेश शासन के मुख्य सचिव राजीव कुमार ने 22 जनवरी 2018 को सूबे के समस्त मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर प्राथमिकता के आधार पर मुसहर समुदाय के परिवारों का सर्वेक्षण कर केंद्र और राज्य सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिये जाने का निर्देश दिया। साथ ही उन्होंने मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में जिला स्तर पर एक कमेटी गठित की जो मुसहरों के लिए जरूरी योजनाओं का अनुमोदन करेगा।
उत्तर प्रदेश शासन के मुख्य सचिव की ओर से मुसहर समुदाय के विकास के लिए जारी शासनादेश की छायाप्रति।

मुख्य सचिव ने पत्र में लिखा, "प्रदेश के मुसहर जाति बाहुल्य जनपदों यथा- गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, जौनपुर सहित अन्य समस्त जनपदों में निवासरत मुसहर जाति के परिवारों का सर्वे करके उन्हें पात्रता के आधार पर भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा संचालित आवासीय योजनाओं, उनके परिवारों को अंत्योदय सूची में शामिल करने/पात्र गृहस्थी कार्ड (राशन कार्ड) निर्गत करने, पेंशन का लाभ व महिलाओं के लिए संचालित योजनाओं का लाभ अनुमन्य कराने, विद्युत कनेक्शन की सुविधा प्रदान करने, पेयजल हेतु हैंडपंप लगवाने एवं अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अनुमन्य कराये जाने हेतु जनपद स्तर पर मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया जाता है। समाज कल्याण अधिकारी समिति के सदस्य सचिव होंगे जबकि जिला विकास अधिकारी, जिला प्रोबेशन अधिकारी, जिला पूर्ति अधिकारी, अपर जिला अधिकारी (वित्त एवं राजस्व), ऊर्जा विभाग और जल निगम के अधिशासी अभियंता इसके बतौर सदस्य होंगे। उक्त समिति जनपदों में मुसहर जाति के परिवारों को सर्वे कर पात्रता के आधार पर एक माह के अंदर उपरोक्त अनुमन्य सुविधाओं का लाभ उपलब्ध करायेगी और तदानुसार अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी के माध्यम से शासन को उपलब्ध करायेगी।" 
....जारी 

1 टिप्पणी:

  1. ग्रामीण परिवेश की जमीनी हकीकत को दिखाने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद । पढ़ते समय ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं उस गांव की सैर कर रहे हो । बाहर से देखने में जितने ये गांव शांत नजर आते है अंदर से उतने है नहीं । सरकार द्वारा जो कथित विकास की नदियां बहाई जा रही उनका लेश मात्र भी इन्हें नहीं मिला है । सच में इनकी स्थिति हृदय विदारक है । कहीं इनको इस वजह से तो नहीं नजरअंदाज किया जा रहा कि ये हैं अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों से भरा है ।

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