उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती के मामले में आरक्षण के नियमों की अनदेखी की शिकायत पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) बेसिक शिक्षा परिषद के अधिकारियों को रिपोर्ट के साथ छह बार कर चुका है तलब। व्यक्तिगत तौर पर एक बार भी मौजूद नहीं रहे अधिकारी। अभी भी रिपोर्ट लंबित...
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। आयोग ने आरक्षण के नियमों की अनदेखी की शिकायत की जांच पूरी होने तक भर्ती प्रक्रिया में कोई भी कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया है। इतना ही नहीं आयोग ने आदेशों की अवहेलना करने पर बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों से सात दिनों के अंदर जवाब तलब किया है।
आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. लोकेश कुमार प्रजापति ने मंगलवार को बेसिक शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश के अधीन संचालित परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों की अनदेखी की शिकायतों पर सुनवाई की। आयोग द्वारा पूर्व में जारी आदेशों के तहत बेसिक शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, विशेष सचिव और प्रमुख सचिव जांच आख्या के साथ व्यक्तिगत रूप से आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए।
आयोग पूर्व में भी पांच बार ( 3 जून, 15 जून, 22 जून, 29 जून और 1 जुलाई) जांच आख्या के साथ व्यक्तिगत रूप से तलब कर चुका है लेकिन वे बिना कारण बताए व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहे। आयोग ने अधिकारियों के इस कार्यशैली को कर्तव्यों की अवहेलना, पेशेवर लापरवाही, आयोग के प्रति अनुसूचित व्यवहार और आयोग और उसमें निष्ठा स्वीकार नहीं करने को कदाचार माना। आयोग ने मामले की जांच पूरी होने तक पूरी भर्ती प्रकिया पर रोक लगा दी।
आयोग ने अपने आदेश में लिखा है, ''...कार्यविधि नियमावली के उप-नियम-3.2.7 के तहत आयोग की जांच पूर्ण होने तक प्रकरण में स्थिति को यथावत बनाये रखते हुए, आपको कोई भी कार्रवाई करने से निषद्ध किया जाता है। तदनुसार, आयग द्वारा निर्देशित किया जाता है कि उपरोक्त संबंध में माननीय आयोग को अपने कदाचार संबंधी स्पष्टीकरण एवं अपेक्षित जांच आख्या सात कार्य दिवसों में उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें।" आयोग ने यह आदेश मुरादाबाद निवासी मनोज प्रजापति, मेरठ निवासी सुनीता दक्ष, अयोध्या निवासी सुशील कुमार और आजमगढ़ निवासी राहुल मौर्य आदि की शिकायतों की सुनवाई के दौरान दिया।
गौरतलब है कि भाजपा की योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में हो रही भर्तियों में आरक्षण के नियमों की अनदेखी का मामला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के बाद अब उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती का मामला राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग पहुंच गया। आयोग ने मंगलवार को भर्ती में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण की अनदेखी को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों समेत परीक्षा नियामक प्राधिकारी के सचिव को तलब किया था। आयोग ने उन्हें और शिकायतकर्ता को अगली सुनवाई पर संबंधित सुबूतों और दस्तावेजों के साथ व्यक्तिगत रूप में उपस्थित होने का निर्देश दिया था। साथ ही आयोग ने उन्हें चेतावनी दी है कि अगर वे अगली सुनवाई पर आयोग के सामने उपस्थित नहीं होते हैं तो वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद-338बी(8) के तहत मिले सिविल कोर्ट के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होगा।
उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए परीक्षा नियामक प्राधिकारी उत्तर प्रदेश ने दिसंबर, 2019 में विज्ञापन प्रकाशित किया था। इस साल 6 जनवरी को इसकी लिखित परीक्षा हुई थी। इसमें करीब 409530 अभ्यर्थी शामिल हुए। 12 मई को इसका परिणाम जारी हुआ जिसमें 146060 अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया। बेसिक शिक्षा विभाग ने ओवरलैपिंग का हवाला देकर परिणाम में अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के बराबर अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को उनकी कैटगरी में रखकर उनके गृह जनपद में नियुक्ति देने की व्यवस्था लागू कर दी। इससे चयन प्रक्रिया से अन्य पिछड़ा वर्ग के करीब 15000 अभ्यर्थियों के बाहर होने की संभावना है।
अगर कानूनी प्रावधानों की बात करें तो उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम-1994 की धारा-3(6) कहता है कि उपधारा-(1) में उल्लेखित किसी श्रेणी से संबंधित कोई व्यक्ति योग्यता के आधार पर खुली प्रतियोगिता में सामान्य अभ्यर्थियों के साथ चयनित होता है तो उसे उपधारा-(1) के अधीन ऐसी श्रेणी के लिए आरक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित नहीं किया जाएगा। कार्मिक अनुभाग-1 की ओर से 25 मार्च 1994 को जारी शासनादेश (संख्या-1/1/94-कार्मिक-1/1994) में भी इसका जिक्र किया गया है जो कहता है, "यदि आरक्षित श्रेणी से संबंधित कोई व्यक्ति योग्यता के आधार पर खुली प्रतियोगिता में सामान्य अभ्यर्थियों के साथ चयनित होता है तो उसे आरक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित नहीं किया जाएगा अर्थात् उसे अनारक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित किया जाएगा, भले ही उसने आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को अनुमन्य किसी सुविधा या छूट (यथा आयु सीमा में छूट आदि) का उपभोग किया हो।"
इसे लेकर अभ्यर्थियों ने विभिन्न मंचों पर विरोध जताया। जिसके बाद मिर्जापुर निवासी अपना दल (एस) के एमएलसी आशीष पटेल, सीतापुर सदर के विधायक राकेश राठौर आदि ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई लेकिन कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। इसी बीच कुछ अभर्थियों ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में इस मामले की शिकायत कर दी। इस शिकायत पर आयोग के उपाध्यक्ष लोकेश कुमार प्रजापति ने बुधवार को सुनवाई की।
ये भी पढ़ें-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for comment