कांग्रेस की अगुआई वाली UPA-I की सरकार ने केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 के तहत राष्ट्रीय महत्व (Institutions of Excellence) की 8 संस्थाओं और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को छोड़कर देश के सभी केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में ओबीसी कोटा के तहत 27 प्रतिशत सीटों पर पिछड़े छात्रों को प्रवेश देने की व्यवस्था की थी। इस कानून की धारा-3(iii) में साफ लिखा था कि केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में किसी भी शाखा या संकाय में उपलब्ध सीटों का 27 प्रतिशत सीट अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होगी। वहीं, UPA-II की सरकार के दौरान केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 की धारा-3(iii) में संशोधन कर OBC आरक्षण को कुछ केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों तक सीमित कर दिया गया...
reported by Shiv Das
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की अगुआई वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार के दौरान केंद्र की सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए लागू अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 27 प्रतिशत आरक्षण को देने में भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने जमकर आनाकानी की हैं। भाजपा की अगुआई वाली NDA सरकारों ने जहां OBC आरक्षण के संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों की जमकर धज्जियां उड़ाई हैं, वहीं, कांग्रेस की अगुआई वाली UPA सरकारों ने भी OBC कोटा के तहत मिले पिछड़ों के हक पर डाका डालने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। NEET (National Eligibilty-cum-Intrance Test) के तहत राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के अधीन चिकित्सा शिक्षण संस्थानों में अखिल भारतीय कोटा (AIQ-ALL India Quota) की सीटों में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं किए जाने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (BBAU) समेत कई केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में पिछड़ों को अपनी पहचान पर शिक्षा पाने से ही रोक दिया। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने पहले इन संस्थाओं में साज़िश के तहत OBC कोटा के तहत पिछड़ों को उनका हक नहीं दिया लेकिन जब मिला तो कानून में संशोधन कर उनका हक ही मार दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं 2007 में लागू केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 की, जिसमें सोनिया गांधी की अगुआई वाली UPA-II की सरकार ने 2012 में संशोधन कर BBAU समेत अन्य ऐसे शिक्षण संस्थानों में OBC छात्रों के प्रवेश को रोक दिया।
कांग्रेस की अगुआई वाली UPA-I की सरकार ने केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 के तहत राष्ट्रीय महत्व (Institutions of Excellence) की 8 संस्थाओं और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को छोड़कर देश के सभी केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में ओबीसी कोटा के तहत 27 प्रतिशत सीटों पर पिछड़े छात्रों को प्रवेश देने की व्यवस्था की थी। इस कानून की धारा-3(iii) में साफ लिखा था कि केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में किसी भी शाखा या संकाय में उपलब्ध सीटों का 27 प्रतिशत सीट अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होगी।
वहीं, UPA-II की सरकार के दौरान केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 की धारा-3(iii) में संशोधन कर OBC आरक्षण को कुछ केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों तक सीमित कर दिया गया। इस संशोधन के तहत निम्नलिखित बातें जोड़ी गईं-
पहला, भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची के तहत अधिसूचित जनजातीय क्षेत्रों में स्थित केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए उपलब्ध सीटें, जहां राज्यों की सीटें हैं, उस राज्य सरकार की अधिसूचना में उल्लिखित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की आरक्षण नीति के तहत निर्धारित की जाएंगी, जिसके अधिकार क्षेत्र में ये शिक्षण संस्थाएं स्थित हैं। इन संस्थाओं में केंद्र सरकार की ओर से अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण लागू नहीं होगा।
दूसरा, उन केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में जहां राज्य की सीटें नहीं हैं और इन संस्थाओं में बिन्दु-(i) में अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित 15 प्रतिशत, बिन्दु-(ii) में अनुसूचित जनजाति के लिए निर्धारित 7.5 प्रतिशत या बिन्दु-(i) और बिन्दु-(ii) में निर्धारित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्गों के संयुक्त प्रतिशत से ज्यादा प्रतिशत में सीटें आरक्षित होती हैं लेकिन उनकी संख्या उपलब्ध सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत से कम है तो वहां बिन्दु-(iii) के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग को मिला 27 प्रतिशत आरक्षण प्रतिबंधित होगा।
तीसरा, उन केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में जहां अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने से आरक्षण का प्रतिशत 50 प्रतिशत से ज्यादा होता होगा, वहां, बिन्दु-(iii) में उल्लिखित ओबीसी का आरक्षण लागू नहीं होगा लेकिन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सीटों के आरक्षण में बढोत्तरी अधिसूचित पूर्वोत्तर राज्य स्थित केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में नहीं घटाया जाएगा।
केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 की धारा-3(iii) में हुए इन संशोधनों की वजह से BBAU जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों समेत भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची के तहत अधिसूचित जनजातीय क्षेत्रों में स्थित केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों के छात्रों का प्रवेश उनको मिले 27 प्रतिशत आरक्षण के अनुपात में रुक गया। हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) नीत भाजपा की अगुआई वाली NDA सरकार द्वारा लागू आर्थिक रूप से वंचित वर्ग (EWS) का 10 प्रतिशत आरक्षण इन संस्थाओं में भी लागू कर दिया गया।
इतना ही नहीं इसने उच्चतम न्यायलय के उस आदेश को खारिज करते हुए EWS आरक्षण इन संस्थानों समेत सरकारी नौकरियों में एक अध्यादेश के बल पर लागू कर दिया जिसका हवाला देकर उसने और कांग्रेस की सरकारों ने सितंबर, 1993 में अधिसूचित ओबीसी आरक्षण के प्रावधानों को आज तक लागू नहीं किया।
अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुआई वाली यूपीए सरकार के दौरान पिछड़ों के खिलाफ हुई उस अधिकारिक साज़िश की बात करते हैं, जिसकी वजह से अन्य पिछड़ा वर्ग का 27 प्रतिशत आरक्षण केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 की अधिसूचना के बाद भी BBAU समेत विभिन्न केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में लागू नहीं हो पाया। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने 4 जनवरी, 2007 को इस कानून का राजपत्र प्रकाशित किया। उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री थे और प्रो. सुखेदव थोराट विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष। यूजीसी के उपाध्यक्ष पद पर प्रो. मूल चंद्र शर्मा तैनात थे। इससे पहले ये यहां सचिव पद पर कार्यरत रहे थे।
4 जनवरी 2007 को भारत सरकार के सचिव के.एन. चतुर्वेदी (विधि एवं न्याय मंत्रालय) के हस्ताक्षर से प्रकाशित चार पृष्ठों के राजपत्र में केवल राष्ट्रीय महत्व के आठ संस्थानों की सूची थी लेकिन बाद में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा बिना किसी अधिकारिक हस्ताक्षर के आठ विश्वविद्यालयों का नाम इसमें अलग से जोड़कर विभिन्न केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं को यह कहते हुए प्रेषित किया गया कि यूजीसी के निर्देशानुसार इन विश्वविद्यालयों को केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 के प्रावधानों से बाहर रखा गया है।
इसमें लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय का नाम भी शामिल था। इसके अलावा इसमें नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ स्थित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अरुणांचल प्रदेश स्थित राजीव गांधी विश्वविद्यालय, शिलांग स्थित नार्थ इस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, आइजोल स्थित मिजोरम विश्वविद्यालय, कोहिमा स्थित नागालैंड विश्वविद्यालय और त्रिपुरा स्थित त्रिपुरी विश्वविद्यालय का नाम था।
अगर केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 के राजपत्र की बात करें तो इसके प्रावधानों के तहत अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में वे संस्थान ही आते हैं जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 के उपबंध-(1) के तहत स्थापित एवं शासित हैं।
लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय इस श्रेणी में नहीं आता है। यह भारतीय संसद द्वारा स्थापित और शासित केंद्रीय विश्वविद्यालय है। फिर किस प्रावधान के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इसे जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ विश्विवद्यालय समेत अन्य अल्पसंख्यक विश्वविद्यालयों के साथ रखा? इसके आधार पर इस विश्वविद्यालय में केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 कानून में संशोधन होने तक अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को उनका आरक्षण नहीं दिया गया।
वहीं सवर्णों के आरक्षण के रूप में चर्चित EWS कोटा का 10 प्रतिशत आरक्षण लागू होते ही इसे BBAU समेत अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में लागू कर दिया गया। इसके लिए यूजीसी ने बकायदा सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं के नामों की सूची अधिकारिक ऑफिस मेमोरैंडम में जोड़ी गई (UGC के OM को देखने के लिए यहां CLICK करें)।
अगर BBAU 2007 में अल्पसंख्यक संस्थान था तो अब कैसे सामान्य केंद्रीय शिक्षण संस्थान हो गया? यह केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय समेत केंद्र की सत्ता में काबिज जातिवादियों की साजिश की ओर संकेत करता है जो ओबीसी के संवैधानिक हक को नहीं देना चाहते हैं।
बता दें कि लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय का विधान पहली बार अक्टूबर 2013 में अधिकारिक रूप से सामने आया था जो बाद में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम-1994 बना। भारत सरकार ने 5 जनवरी 1996 को इसकी अधिसूचना जारी की थी। पांच दिनों बाद 10 जनवरी को यह लागू हुआ। अब 24 साल गुजर चुके हैं लेकिन केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग को मिला 27 प्रतिशत आरक्षण इस विश्वविद्यालय में आज तक लागू नहीं हो पाया है जबकि विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले विश्वविद्यालय के कानून की धारा-7 किसी रूप में ओबीसी के आरक्षण को लागू करने से नहीं रोकता है।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम-1994 की धारा-7 कहती है, "विश्विविद्यालय सभी व्यक्तियों के लिए खुला होगा, चाहे वह किसी भी लिंग, जाति, पंथ, नस्ल, वर्ग या निवास स्थान का हो। विश्वविद्यालय के शिक्षक के रूप नियुक्ति प्रदान करने, इसके कार्यालयीन पद को धारण करने, विश्वविद्यालय में विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लेने, स्नातक होने या उसके किसी भी विशेष प्रावधान का लाभ उठाने की अर्हता को निर्धारित करने में किसी व्यक्ति पर उसकी धार्मिक आस्था या पेशे से संबंधित कोई परीक्षण अपनाना या थोपना विश्वविद्यालय के लिए विधिसम्मत नहीं होगा।
इस खण्ड में कोई भी प्रावधान विश्वविद्यालय को महिलाओं, दिव्यांगों, समाज के वंचित तबके के व्यक्तियों और, विशेष रूप से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, के रोजगार अथवा शैक्षणिक हितों के संवर्द्धन के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगा।"
उक्त प्रावधान पर गौर करें तो पाते हैं कि अधिनियम में महिलाओं, दिव्यांगों और समाज के वंचित तबकों के रोजगार और शैक्षणिक हितों के संवर्द्धन के लिए विशेष प्रावधान है। एक बात जरूर है कि वंचित समूहों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का विशेष तौर उल्लेख किया गया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि समाज के अन्य वंचित समूहों के रोजगार और शैक्षणित हितों के संवर्द्धन के लिए जरूरी प्रावधानों (आरक्षण) को बनाने या उन्हें लागू करने से रोका गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने जान बूझकर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण को आज तक नहीं लागू किया जबकि यह केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि सवर्ण आरक्षण के रूप में चर्चित ईडब्ल्यूएस का 10 प्रतिशत कोटा विश्वविद्यालय प्रशासन ने विश्वविद्यालय में उसकी अधिसूचना के एक साल के अंदर ही लागू कर दिया।
बीबीएयू प्रशासन द्वारा शिक्षा-सत्र-2020-21 के लिए जारी सूचना पुस्तिका के पृष्ठ संख्या-4 पर विश्वविद्यालय में लागू आरक्षण नीति का जिक्र किया गया है। इसमें एकैडमिक ऑर्डिनेंस के चैप्टर-VII(9) का जिक्र किया गया है जिसके तहत विश्वविद्यालय में संचालित सभी पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्गों के छात्रों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। इसके अलावा मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 31 जनवरी 2019 को जारी पत्र (एफ.एन.-19-4/2019-सीयू.सीडीएन) का हवाला देकर 10 प्रतिशत सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को आरक्षित करने की बात कही गई है और उसके आधार पर सूचना पुस्तिका में सीटों का बंटवारा भी कर दिया गया है।
इस रूप में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ईडब्ल्यूएस कोटा लागू किया जाना बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम-1994 के प्रावधानों को भी चुनौती देता है। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम-1994 की धारा-7 में स्पष्ट रूप से में लिखा है कि विश्वविद्यालय महिलाओं, दिव्यांगों, समाज के वंचित तबके के व्यक्तिओं और , विशेष रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति के रोजगार अथवा शैक्षणिक हितों के संवर्द्धन के लिए ही विशेष प्रावधान लागू कर सकता है। अन्य समुदाय के मामले में ऐसा नहीं है। इस वजह से ही बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय को विशेष दर्जा प्राप्त है। आर्थिक रूप से वंचित समूह (ईडब्ल्यूएस) के बारे में अभी ऐसा कोई अधिकारिक और विश्ववसनीय प्रमाण अथवा शोध मौजूद नहीं है जो उन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप में वंचित मानता हो। क्या संसद ने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम-1994 की धारा-7 में संशोधन किया है? फिलहाल इसमें संशोधन होने का कोई प्रमाण अभी मौजूद नहीं है। इस कानून की धारा-5 में विश्वविद्यालय को दिए गए शक्तियों को बात करें तो धारा-5(xxi) के तहत विश्वविद्यालय प्रशासन यहां विभिन्न पाठ्यक्रमों में उपलब्ध सीटों पर प्रवेश के लिए केवल अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों के लिए ही कोटा निर्धारित कर सकता है। हालांकि ऐसा करने के लिए भी विश्वविद्यालय प्रशासन को अध्यादेश लाना होगा और उसके राज-पत्र के रूप में प्रकाशित करना होगा।
विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में उपलब्ध सीटों पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग को 50 प्रतिशत आरक्षण ऐसे ही दिया गया था। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से 28 जनवरी 1997 को स्वीकृत और 23 दिसंबर 2004 को प्रकाशित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के पहले अकादमिक अध्यादेश के चैप्टर-VII के 9वें बिन्दु पर विश्वविद्यालय में संचालित सभी पाठ्यक्रमों में उपलब्ध सीटों में से 50 प्रतिशत सीटें एससी/एसटी छात्रों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान मौजूद है। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन ने बीबीएयू में प्रवेश की सीटों पर ईडब्ल्यूएस के 10 प्रतिशत कोटे को लागू करने से पहले बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय अधिनियम-1994 की धारा-5(xxi) के प्रावधान का पालन किया? यह स्पष्ट रूप से केवल अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों के प्रवेश के लिए ही कोटा निर्धारित करने की बात कहता है। अगर अन्य किसी वर्ग के छात्रों के लिए प्रवेश की सीटों पर कोटा निर्धारित करना है तो पहले बीबीएयू कानून के इस प्रावधान में संशोधन करना होगा। जानकारी के मुताबिक अभी तक इस प्रावधान में कोई संशोधन नहीं हुआ है। विश्वविद्यालय प्रशासन भी छात्रों के लिए प्रवेश के लिए जारी अधिसूचना में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 31 जनवरी 2019 को जारी पत्र के आधार पर ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करने की बात कह रहा है जो बीबीएयू कानून के प्रावधानों के तहत गैर-कानूनी है!
बीबीएयू कानून की धारा-5(xxix) में विश्वविद्यालय को कुछ छूट जरूर मिली है कि वह विश्वविद्यालय के कानून में उल्लिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक, प्रासंगिक और हितकारी इस प्रकार के दूसरे कार्यों को कर सकता है लेकिन इसके लिए उसे अध्यादेश लाना होगा और ऑफिसियल गजट (राजपत्र) के रूप में प्रकाशित करना होगा। बीबीएयू कानून की धारा-43(2) के तहत अध्यादेश को संसद के सत्र दौरान दोनों सदनों के सामने रखना होगा। अगर दोनों सदन सहमति देते हैं तो अध्यादेश के प्रावधान प्रभावी होगें अन्यथा शून्य हो जाएंगे। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से अब तक जो भी जानकारियां सार्वजनिक की गई हैं, उनके अनुसार ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करने के मामले में अभी तक इस प्रकार का कोई भी अध्यादेश संसद के दोनों सदनों से पास नहीं हुआ है।
...जारी...आगे पढ़ें OBC के खिलाफ केन्द्रीय शिक्षा संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम-2006 में संशोधन के लिए किसने रची साज़िश
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Thank you Shiv Das ji for sharing important information. Well, what I have observed that in struggle of reservation, majority of OBCs , particularly whose who are /were well to do, they have kept away from this movement. In fact, when in 1991, during the Mandal commission and consequently Kamandal agitation, I was in 9th class and about more than 6 months our schools were closed in Delhi. What I was knowing or hearing that it was the reservation of SC and STs which is/was at stake and we were arguing in support and to retain and preserve the reservation. At that time Sh. Ram Vilash Paswan Saheb was very vocal leader and representing us. During college time, I used to visit his Banglow at 10-Janpath to participate in meeting of Dalit Sena. In time of social medai, I came to know few OBCs that too who are either concerned are really poor advocate reservation, otherwise they find themselves near to Brahminism. Thanks again for your write up and making people aware and exposing the manuvadi forces. For me, it was a case of Nagnath, Sapnath and green snake in green garden as far as UPA, NDA or CMPs etc, respectively are concerned.
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