विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण यादव को दी सूचना। देश भर के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी वर्ग के 77 फीसदी पदों पर भी नहीं है एसोसिएट प्रोफेसरों की नियुक्ति।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षित एसोसिएट प्रोफेसरों की 94 फीसदी पदों पर अब तक नियुक्ति नहीं हो पाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित और सरकारी दस्तावेजों में दर्ज 'दिव्यांग' वर्ग के लिए आरक्षित एसोसिएट प्रोफेसर के 90 फीसदी पद भी खाली हैं। एसोसिएट प्रोफेसर वर्ग में अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित 86 फीसदी और अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित 77 फीसदी पदों पर भी अभी नियुक्ति नहीं हो पाई है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने
सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन
कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव को यह जानकारी मुहैया कराई है।
उन्होंने गत 12 मार्च को सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत आवेदन कर
यूजीसी से देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के पदों से
संबंधित सूचना मांगी थी। यूजीसी ने गत 8 जुलाई को उन्हें 1 जनवरी 2020 तक
की सूचना उपलब्ध कराई।
डॉ. लक्ष्मण यादव ने यूजीसी की ओर से भेजे दस्तावेजों में मौजूद आंकड़ों के आधार पर 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफेसर के पदों की स्थिति का एक चार्ट तैयार किया है। चार्ट के आंकड़ों पर गौर करें तो देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफेसर वर्ग में 544 पद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित हैं। इनमें अब तक केवल 31 पद भरे गए हैं। शेष 513 पद अभी भी खाली हैं जो ओबीसी के लिए स्वीकृत पदों का 94.30 फीसदी है। इनमें से अधिकतर पदों पर सवर्णों ने कब्जा कर रखा है।
अगर एसोसिएट प्रोफेसर वर्ग में एससी के लिए आरक्षित पदों की बात करें तो कुल 602 पदों में से केवल 141 पदों पर एसोसिएट प्रोफेसरों की तैनाती है। शेष 461 पद अभी भी खाली हैं जो एससी वर्ग के लिए स्वीकृत कुल पदों का 76.57 प्रतिशत है।
एसोसिएट प्रोफेसर वर्ग में एसटी वर्ग की हालत एससी वर्ग से काफी खराब है। एसटी के कुल 286 पदों में से केवल 40 पद ही अभी तक भरे हैं। शेष 246 पद अभी भी खाली हैं जो एसटी वर्ग के कुल पदों का 86.01 प्रतिशत है।
भाजपा की मोदी सरकार में 'दिव्यांग' का दर्जा पाने वाले शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए आरक्षित पदों पर नियुक्ति की हालत एससी और एसटी से भी बुरी है। उनके लिए 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफेसर के कुल 132 पद आरक्षित हैं लेकिन अभी तक केवल 13 पद ही भरे गए हैं। शेष 119 पद अभी भी खाली हैं जो उनके लिए आरक्षित कुल पदों का 90.15 फीसदी है।
गौरतलब है कि ओबीसी आरक्षण को लागू हुए 29 साल हो चले हैं लेकिन केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा और कांग्रेस की अगुआई वाली सरकारों ने आज तक पिछड़ों के लिए आरक्षित पदों पर नियुक्ति में कोई रुचि नहीं ली। वे इनमें से अधिकतर पदों पर सवर्णों की नियुक्ति दिखाकर पिछड़ों के हक पर डाका डाल रही हैं। वहीं सवर्णों के 10 फीसदी कोटे (EWS)को लागू हुए एक साल भी नहीं हुए लेकिन उनके लिए आरक्षित सभी पदों पर तेजी से नियुक्ति किए जा रही हैं। कई विश्वविद्यालयों में पिछड़े अभ्यर्थियों को योग्य उम्मीदवार नहीं बताकर उसे खाली छोड़ा जा रहा है। बाद में उन्हीं पदों पर संविदा के आधार पर सवर्ण उम्मीदवारों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
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