शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

विशेषः मंडल बनाम कमंडल की 30 सालों की राजनीति में OBC आरक्षण की चुनौतियां

आश्चर्य की बात यह है कि आज भी कई केन्द्रीय विश्वविद्यालय तथा अन्य केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों एवं राज्य सरकार के शिक्षण संस्थान तथा नौकरियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिल रहा है। पहले तो वजह यह था कि वहाँ एससी-एसटी की आबादी अधिक होने के कारण आरक्षण ज्यादा दिया गया था इसलिए अधिकतम 50 प्रतिशत की सीमा लाँघकर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देना मुश्किल था, लेकिन अब तो वह भी वजह वाजिब नहीं रहा...

written by डॉ. दिनेश पाल 

भारतीय इतिहास के पन्नों में अगस्त का महीना सर्वाधिक उथल-पुथल का महीना रहा है। अगस्त में कई अस्त तो, कई पस्त हुए हैं। इसी माह के बीच की तिथि अर्थात् 15 अगस्त देश के स्वतंत्रता का दिन भी है, जो कि पूरे देश के लिए महापर्व व राष्ट्रीय पर्व है। अगस्त में कुछ तिथियाँ किसी के लिए स्वर्णिम हैं, तो किसी के लिए कालिमा। विश्व इतिहास में भी 6 अगस्त और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम पटक कर काला अध्याय लिख रखा चुका है। खैर, विश्व पटल पर तो अगस्त के तमाम ऐसे दिवस होंगे, जो किसी के लिए स्वर्णिम तो किसी के काला दिवस होंगे।

बहरहाल भारतीय इतिहास में 7 अगस्त सामाजिक न्यास समर्थकों व पिछड़ा समाज के लिए ऐतिहासिक तथा स्वर्णिम दिवस है, क्योंकि 7 अगस्त, 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री विश्नाथ प्रताप सिंह द्वारा मण्डल आयोग की रिपोर्ट (ओबीसी आरक्षण) लागू करने की घोषणा की गई। इसे पिछड़ा वर्ग (SEWA) ‘राष्ट्र निर्माण दिवस’ के रूप में देखता है।

पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की घोषणा भले ही 7 अगस्त,1990 को हुई हो, लेकिन इसकी सुगबुगाहट तो आजादी के साथ ही शुरू हो गई थी। संविधान के अनुच्छेद 15(4) व अनुच्छेद 16(4) को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 340 के तहत 29 जनवरी, 1953 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा ’पिछड़ा वर्ग आयोग’ का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष काका कालेलकर बने। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 30 मार्च 1955 को सौंपी। अफसोस यह रिपोर्ट ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया और साथ ही ओबीसी आरक्षण की चर्चा को भी काँग्रेस सरकार ने ठण्डे बस्ते डाल दी।

आपातकाल के पश्चात 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी जो कि प्रथम गैर कांग्रेसी सरकार थी। 20 दिसम्बर 1978 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई ने बी. पी. मण्डल की अध्यक्षता में चार सदस्यों के साथ ’पिछड़ा वर्ग आयोग’ गठन के फैसले की घोषणा संसद के सदन में की। आयोग ने अपनी (3743 पिछड़ी जातियों वाली) रिपोर्ट 31 दिसम्बर, 1980 को राष्ट्रपति के समक्ष सौंपा। रिपोर्ट सौंपने तक जनता पार्टी की सरकार सत्ता से उतर चुकी थी और कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो चुकी थी जिसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। 8 साल बाद पुनः कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और भाजपा के समर्थन से जनता पार्टी सत्तासीन हुई। इस बार प्रधनमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह। इस बार मुलायम सिंह यादव, बेनी प्रसाद वर्मा, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार एवं शरद यादव जैसे पिछड़ों के दिग्गज नेता सत्ता में थे। 

मण्डल आयोग की सिफारिश को प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने स्वीकार करते हुए, 7 अगस्त अगस्त 1990 को लागू करने की घोषणा कर दी। 13 अगस्त को मण्डल आयोग की सिफारिश लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। अगले दिन से ही सवर्ण समाज के आरक्षण विरोधी लोग  बवाल करना शुरू कर दिए। पूरे देश से विरोध प्रदर्शन, तोड़फोड़ एवं आगजनी की खबरंे आने लगीं। हर तरफ नंगा नाच शुरू हो गया।  14 अगस्त, 1990 को अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चे के अध्यक्ष उज्ज्वल सिंह ने तो आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली। 10 नवम्बर, 1990 को भाजपा ने समर्थन वापस ले ली और विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई।

16 नवम्बर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में मण्डल आयोग की सिफारिशें लागू करने को वैध ठहराया। साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय किया। न्यायालय के इस फैसले के बाद 8 सितम्बर, 1993 को केंद्र सरकार ने नौकरियों में पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की। 20 फरवरी, 1994 को मण्डल आयोग की सिफारिशों के तहत वी राजशेखर आरक्षण के माध्यम से नौकरी पाने वाले पहले अभ्यर्थी बने।

तब के रामविलास पासवान ने 8 अगस्त 1991 को केंद्र सरकार पर आयोग की सिफारिशों को पूर्ण रूप से लागू करने में विफलता का आरोप लगाते हुए जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। पासवान गिरफ्तार कर लिए गए। अबके रामविलास तो राजनीतिक मौसम की मार में बेहाल हो गए हैं।

 21 अगस्त 2007 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण से सम्बंधित विधेयक को मंजूरी दे दी। इसे भी कोर्ट में चुनौती दिया गया लेकिन 10 अप्रैल 2008 को दिए गए फैसले में उच्चतम न्यायालय ने उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को वैध ठहराया। मतलब ओबीसी को नौकरी में 1993 में तथा उच्च शिक्षण संस्थानों में 2008 में आरक्षण मिला। वो भी काशी हिन्दू विश्विद्यालय, वाराणसी में 2008 में 5 प्रतिशत, 2009 में 10 प्रतिशत (5+10=15) एवं 2010 में 12 प्रतिशत (5+10+12=27) करके लागू हुआ था। शेष विश्वविद्यालयों में भी सम्भवतः ऐसे ही लागू हुआ होगा।

आश्चर्य की बात यह है कि आज भी कई केन्द्रीय विश्वविद्यालय तथा अन्य केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों एवं राज्य सरकार के शिक्षण संस्थान तथा नौकरियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिल रहा है। पहले तो वजह यह था कि वहाँ एससी-एसटी की आबादी अधिक होने के कारण आरक्षण ज्यादा दिया गया था इसलिए अधिकतम 50 प्रतिशत की सीमा लाँघकर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देना मुश्किल था, लेकिन अब तो वह भी वजह वाजिब नहीं रहा।

जनवरी 2019 में मोदी सरकार द्वारा 124 वें संविधान संशोधन के तहत सामान्य वर्ग(सवर्ण) के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को बिना किसी सर्वे रिपोर्ट व आँकड़ा के 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया और आज लगभग हर जगह केन्द्रीय व राज्य स्तरीय सरकारी शिक्षण संस्थानों के नामांकन और नौकरियों में आरक्षण लागू हो गया।

अब सवाल यह उठता है कि-

1. आज 30 साल पूरा होने के बाद भी पूरी तरह से ओबीसी आरक्षण लागू नहीं हुआ है लेकिन ईडब्ल्यूएस आरक्षण मात्र एक में ही लागू हो गया। आखिर कैसे और क्यों?

2. सरकार 10 प्रतिशत सवर्ण को किस आधार पर आर्थिक रूप से कमजोर मानती है? सरकार के पास कौन-सा आँकड़ा या सर्वे रिपोर्ट है?

3. 15 प्रतिशत के आसपास आबादी वाली संपन्न जातियों में से 10 प्रतिशत को गरीबी के नाम पर आरक्षण दिया जा रहा है जबकि 55 प्रतिशत के आसपास की आबादी वाले को मात्र 27 प्रतिशत आरक्षण क्यों? 27 प्रतिशत देने में भी आना-कानी क्यों?

4. जातिगत जनगणना कराने से सरकार डरती क्यों है? बिना आँकड़े के आरक्षण कैसे?

5. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय-लखनऊ, नार्थ-ईस्ट हिल युनिवर्सिटी-शिलाँग, मिजोरम केन्द्रीय विश्वविद्यालय-ऐजौल जैसे विश्वविद्यालय जहाँ एससी-एसटी के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं, वहाँ 50 प्रतिशत की सीमा लाँघकर 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण दिया जा सकता है तो ओबीसी को आरक्षण क्यों नहीं?

6. जिन राज्यों में 50 प्रतिशत की सीमा के कारण ओबीसी को आज भी 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिल रहा है वहाँ 50 प्रतिशत की सीमा लाँघकर 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस को आरक्षण क्यों? और यदि सीमा टूट ही गई है तो फिर ओबीसी को भी 27 प्रतिशत आरक्षण क्यों नहीं?

7. 40 प्रतिशत अनारक्षित, अघोषित रूप से सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित क्यों किया जा रहा है? मण्डल आयोग की सभी सिफारिशें कब लागू होंगी?

आज उपर्युक्त सवाल इसलिए कमजोर पड़ते जा रहे हैं क्योंकि मण्डलवादियों की अधिकतर संतानें कमण्डवादियों की काँख में दबकर दाँत निपोर रही हैं। 1990 में जिस मण्डल (ओबीसी आरक्षण) को रोकने के लिए भाजपा व आरएसएस का कमण्डल उठा और धार्मिक उन्माद फैला, आज 30 साल बाद उसी मण्डल के लोग कमण्डल के उन्मादी जश्न में उनकी जयघोष कर रहे हैं। भला इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या हो सकता है? 

(लेखक राष्ट्रीय जनता दल के अति पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं। इससे संपादक का सहमत होना जरूरी नहीं है।)


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