काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शोभना नेरलीकर ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए महिलाओं और छात्रों संग तीसरे दिन भी दिया धरना।
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) प्रशासन की उपेक्षा और जातिगत भेदभाव से नाराज पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग की दलित एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शोभना नेरलीकर ने बुधवार को छात्रों, महिलाओं और समर्थकों संग विरोध मार्च निकाला और केंद्रीय कार्यालय के मुख्य द्वार के सामने धरना दिया। वहीं, कुलपति प्रो. राकेश भटनागर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जैव रसायन विभाग के डॉ. एस. कृष्णा की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया जो 48 घंटे के अंदर दलित प्रोफेसर के आरोपों की जांच रिपोर्ट उन्हें सौंपेगी।
बुधवार को डॉ. शोभना नेरलीकर के धरने का तीसरा दिन था। उनके द्वारा विरोध मार्च की घोषणा से विश्वविद्यालय प्रशासन में हड़कंप मच गया था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने सुबह ही उनके मुद्दे पर बैठक बुलाई थी जिसमें उनके आरोपों और मांगों को लेकर चर्चा हुई।
उधर डॉ. शोभना नेरलीकर ने करीब एक बजे छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) बीएचयू, एससी/एटी/ओबीसी/मॉइनॉरिटी संघर्ष समिति बीएचयू, बहुजन छात्र संघ बीएचयू, भारतीय जनजागरण समिति वाराणसी, एसएआरसी महिला संगठन वाराणसी, महिला कांग्रेस आदि के समर्थकों समेत पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग से विरोध मार्च निकाला जो केंद्रीय कार्यालय पहुंच कर धरने में तब्दील हो गया।
इस दौरान मार्च को रोकने की कोशिश को लेकर उनके समर्थकों और बीएचयू प्रशासन के सुरक्षा अधिकारियों के बीच तीखी बहस भी हुई।
धरने के दौरान डॉ. शोभना नेरलीकर ने बीएचयू प्रशासन पर जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न के आरोपों की झड़ी लगा दी। उन्होंने कहा कि वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पिछले 19 सालों से सेवा दे रही हैं लेकिन दलित होने की वजह से बीएचयू प्रशासन ने उन्हें प्रोफेसर नहीं बनाया जबकि उनके जूनियर को गैर-कानूनी ढंग से रातों रात एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष बना दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि ऊंची जाति के विभागाध्यक्षों ने ज्वाइनिंग के समय पीएचडी उपाधिधारक होने के बावजूद 2015 के पहले तक शोध निर्देशन के लिए कोई शोधार्थी ही उपलब्ध नहीं कराया। ऊंची जातियों के उनके जूनियरों को ज्वाइनिंग के तुरंत बाद ही शोध निर्देशन के लिए शोधार्थी दे दिए।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनकी वरिष्ठता को प्रभावित करने और विभागाध्यक्ष बनने से रोकने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी एक्टिव सर्विस को एलडब्ल्यूपी (लीव-विदाउट-पे) दिखा दिया जबकि वह विभाग में उपस्थित थीं और उपस्थिति पंजिका पर उनके हस्ताक्षर भी थे। उन्होंने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशास ने उन्हें कानून के तहत मातृत्व अवकाश और सीसीएल (शिशु देखभाल अवकाश) समेत अन्य अवकाश देने में भी परेशानियां खड़ी कीं जो आज तक विवादित है।
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शाम को करीब पांच बजे उनका ज्ञापन लेने पहुंचे कुलसचिव डॉ. नीरज त्रिपाठी के सामने उन्होंने आरोप लगाया कि विभाग के एक प्रोफेसर ने उनका बलात्कार करने की धमकी तक दी थी। उन्होंने कुलसचिव से उनकी वरिष्ठता को प्रभावित करने और गैर-कानूनी ढंग से उनके जूनियर डॉ. अनुराग दवे की हुई प्रोन्नति की जांच निष्पक्ष कमेटी से कराने की मांग की। साथ ही उन्होंने कमेटी में अनुसूचित जाति वर्ग, अनुसूचित जनजाति वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिला को शामिल करने की मांग की।
कुल सचिव ने उन्हें मामले को हल करने का आश्वासन दिया। ज्ञापन सौंपने के बाद जब डॉ. नेरलीकर पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में कार्यरत डॉ. अनुराग दवे की प्रोन्नति में बरती गई अनियमितता और उसकी जांच कमेटी में एक विशेष जाति के लोगों को रखे जाने की बात कह रही थीं, तो बीच में ही कुलसचिव डॉ. नीरज त्रिपाठी वहां से खिसकने लगे। इससे वह और उनके समर्थक छात्र नाराज हो गए और उनसे तेज आवाज में जवाब मांगने लगे लेकिन वह धन्यवाद कहकर आगे निकल गए।
बता दें कि डॉ. शोभना नेरलीकर सोमवार को भी कुलसचिव कार्यालय के शिक्षण-प्रशासन अनुभाग में कार्यरत अनुभाग अधिकारी (अवकाश) सुरेंद्र मिश्रा पर जाति आधार पर भेदभाव और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए धरने पर बैठ गई थीं। देर शाम वह आवास पर चली गई थीं। मंगलवार की दोपहर में वह वापस धरने पर बैठीं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी उनसे मिलने नहीं पहुंचा। देर शाम उन्होंने अगले दिन विरोध मार्च निकालने और धरना देने की घोषणा कर घर चली गईं। बुधवार को दोपहर बाद उन्होंने छात्रों, महिलाओं और अपने समर्थकों संग मार्च निकाला और धरना दिया।
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