विश्वविद्यालय
के ठेकों में केंद्र की सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का दखल आया
सामने। नवंबर, 2014 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति और भाजपा के
मातृत्व संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रशंसक प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कार्यभार संभालने के 20
दिनों के अंदर ‘पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट
लिमिटेड’ को दिया मेडिकल गैसों की आपूर्ति का ठेका।
reported By
Shiv Das
वाराणसी स्थित काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय के सर सुन्दरलाल चिकित्सालाय में मेडिकल गैसों की आपूर्ति के ठेकों
में सत्ताधारी भाजपा के नेताओं का सीधे दखल सामने आया है। दस्तावेज बताते हैं कि केंद्र
में पार्टी की सरकार बनते ही भाजपा विधायक हर्ष वर्धन बाजपेयी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के इलाहाबादी 'अखाड़े' के सियासी गठजोड़ से सर सुंदरलाल चिकित्सालय में ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड की
आपूर्ति का ठेका हथिया लिया था। ठेके के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पर पार्टी का इस
कदर दबाव था कि नवनियुक्त कुलपति प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कार्यभार
संभालने के बीस दिनों के अंदर मेडिकल गैसों की आपूर्ति की ठेका भाजपा विधायक की
कंपनी ‘पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट
लिमिटेड’ को दे दिया जबकि आवश्यक प्रमाण-पत्रों के अभाव में
आबंटन की प्रक्रिया निविदा खुलने की तिथि से पांच महीनों तक लंबित रही।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
की अधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेज की मानें तो सर सुंदरलाल चिकित्सालय के
चिकित्सा अधीक्षक ने वर्ष 2014 में मई के आखिरी सप्ताह में मेडिकल ऑक्सीजन,
नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों की आपूर्ति के लिए निविदा (टेंडर)
आमंत्रित की थी। वित्तीय वर्ष 2014-15 के लिए आमंत्रित इस निविदा को जमा करने की
आखिरी तारीख 26 जून 2014 निर्धारित थी और इसका हर साल टर्न ओवर डेढ़ करोड़ रुपये
था।
सर सुंदरलाल चिकित्सालय के
चिकित्सा अधीक्षक कार्यालय के दस्तावेजों पर गौर करें तो भाजपा विधायक हर्ष वर्धन
बाजपेयी की कंपनी ‘पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट
लिमिटेड, 42, इंडस्ट्रियल कॉलोनी, चक दाउद नगर, नैनी, इलाहाबाद’ ने 25 जून 2014 की तिथि में अपना कोटेशन जमा किया था।
विश्वविद्यालय प्रशासन के
विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो भाजपा नेता की कंपनी की ओर से डाले गए कोटेशन में आवश्यक
प्रमाण-पत्रों और दस्तावेजों की कमी की वजह से निविदा की मंजूरी की प्रक्रिया लटक
गई थी। भाजपा नेता हर्ष वर्धन बाजपेयी और उनसे संबद्ध पार्टी नेताओं का
विश्वविद्यालय प्रशासन पर इस कदर दबाव था कि वे सभी मानकों को पूरा करने वाली
फर्मों को ठेका देने में कतरा रहे थे। इनमें कई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी
जुड़े थे। विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. लालजी सिंह भी भाजपा नेता हर्ष
वर्धन बाजपेयी की कंपनी ‘पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट
लिमिटेड’ को भी ठेका देने के पक्ष में नहीं थे। वे पहले से
ही विवादों में घिरे थे और 21 अगस्त को उनका कार्यकाल भी खत्म हो रहा था, इसलिए वे
किसी नये विवाद में पड़ना नहीं चाह रहे थे। इसके पीछे ठोस कारण भी थे। भाजपा नेता
की कंपनी के पास मेडिकल गैसों के उत्पादन और वितरण का कोई अनुभव नहीं था और न ही
उसके पास इसका व्यापार करने का लाइसेंस। इस तरह मेडिकल गैसों की आपूर्ति का ठेका
आबंटन लंबित रहा।
उसी साल 22 अगस्त को
आईआईटी, बीएचयू के निदेशक प्रो. राजीव संगल ने विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति का
कार्यभार संभाला लेकिन वे भी इस पर कोई निर्णय नहीं ले सके। हालांकि सर सुंदरलाल
चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक कार्यालय के दस्तावेज बताते हैं कि भाजपा नेता
हर्ष वर्धन बाजपेयी की कंपनी ‘पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट
लिमिटेड’ को मेडिकल गैसों की आपूर्ति के ठेके की मंजूरी
प्रो. राजीव संगल के कार्यकाल में ही मिल गई थी।
19 दिसंबर 2014 की तिथि
में हस्ताक्षरित अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के पत्र की नोटिंग बताती है कि विश्वविद्यालय
प्रशासन ने 18 अक्टूबर 2014 को ‘पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज प्राइवेट
लिमिटेड’ का कोटेशन मंजूर कर लिया था और प्रो. संगल 24 अगस्त
तक विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति का दायित्व निभाते रहे। हालांकि उक्त कंपनी को
आबंटन आदेश (रेट कॉन्ट्रैक्ट) विश्वविद्यालय प्रशासन की मंजूरी के दो महीने तक
जारी नहीं हुआ। संभवतः इसके पीछे विश्वविद्यालय के कुलपति की सहमति अनिवार्य होती हो
जो उस समय चिकित्सा अधीक्षक को न मिली हो। कंपनी ने 3 नवंबर को अस्पताल के
चिकित्सा अधीक्षक को पत्र लिखकर ऑक्सीजन गैस की आपूर्ति के लिए रेट कॉन्ट्रैक्ट पर
गैसों की आपूर्ति की स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध किया लेकिन मामला लंबित रहा।
इस सियासी टेंडर प्रक्रिया
के साथ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति भी नया रंग ले रही थी।
मई, 2014 में केंद्र
में भाजपा की सरकार बनने के साथ ही विश्वविद्यालय में छात्र संघ का चुनाव कराने की
मांग जोर पकड़ने लगी थी। छात्र संगठन छात्र संघ की बहाली को लेकर आंदोलन छेड़ चुके
थे। 20 नवंबर को छात्र संगठनों के आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया जिसमें कई छात्रों
को गंभीर चोटें आईं और आगजनी तक घटनाएं हुईं।
फोटो साभारः इंडियन एक्सप्रेस |
आनन-फानन में 24 नवंबर को
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कोर्ट की बैठक हुई। इसमें इलाहाबाद के अर्थशास्त्र
विभाग के प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी को विश्वविद्यालय का नया कुलपति नियुक्त किया।
मीडिया रिपोर्टों की मानें तो औद्योगिक अर्थशास्त्र के जानकार प्रो. गिरीश चंद्र
त्रिपाठी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिय सदस्य हैं और उन्हें इस पर
गर्व है। हालांकि वे संगठन के पदाधिकारी कभी नहीं रहे।
नवनियुक्त कुलपति ने 27
नवंबर 2014 को अपना कार्यभार संभाल लिया और बीस दिनों के अंदर सर सुंदरलाल
चिकित्सालय में मेडिकल ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों की
आपूर्ति का ठेका भाजपा विधायक हर्ष वर्धन बाजपेयी की उक्त कंपनी को आबंटित कर दिया
गया। चिकित्सा अधीक्षक कार्यालय ने 15 दिसंबर 2014 को उक्त कंपनी के नाम एक पत्र
लिखा जिसमें सर सुंदरलाल चिकित्सालय में मेडिकल ऑक्सीजन, नाइट्रस ऑक्साइड और
कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों की आपूर्ति की दर का उल्लेख करते हुए उक्त गैसों की
आपूर्ति का निर्देश दिया गया। हालांकि इस पत्र पर चिकित्सा अधीक्षक का हस्ताक्षर 19
दिसंबर 2014 को हुआ।
गौर करने वाली बात यह है
कि सर सुंदरलाल चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को जीवन देने वाली मेडिकल ऑक्सीजन,
नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड गैसों का ठेका विश्वविद्यालय प्रशासन ने
ऐसी कंपनी को दे दिया जिसके पास इन गैसों के उत्पादन और वितरण का ना कोई अनुभव था
और ना ही लाइसेंस। इलाहाबाद मंडल के सहायक आयुक्त (औषधि) केजी गुप्ता ने भी यह
स्वीकार किया है। उन्होंने गत 6 जुलाई को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दी गई
जानकारी में स्पष्ट लिखा है कि “मेसर्स पैररहट इंडस्ट्रियल इंटरप्राइजेज
प्राइवेट लिमिटेड” कंपनी को औषधि विभाग द्वारा किसी भी
प्रकार के मेडिकल गैस उत्पादन का लाइसेंस जारी नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी
स्पष्ट कहा है कि उक्त कंपनी को मेडिकल ऑक्सीजन गैस और मेडिकल नाइट्रस ऑक्साइड गैस
के उत्पादन का लाइसेंस प्रदान नहीं किया गया है।
विश्वविद्यालय की आमंत्रित
निविदा के महत्वपूर्ण निर्देशों के बिन्दु13 (iv) में
स्पष्ट लिखा हुआ है कि मेडिकल गैसों के उत्पादन और वितरण से संबंधित सरकारी
संगठनों अथवा संस्थाओं की जांच रिपोर्टों और प्रमाण-पत्रों की अनुपस्थिति में
कोटेशन निरस्त करने का अधिकार विश्वविद्यालय प्रशासन के पास सुरक्षित है। इसके
बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने भाजपा विधायक की कंपनी के कोटेशन को ना केवल
मंजूर किया बल्कि उसे उक्त मेडिकल गैसों की आपूर्ति का ठेका दे भी दिया, जबकि यह
कंपनी मशीनों और उनके कलपुर्जों का उत्पादन करती थी। सियासी गठजोड़ और कमीशखोरी के
चक्कर में विश्वविद्यालय प्रशासन और बीजेपी विधायक ने सर सुंदरलाल चिकित्सालय में
भर्ती मरीजों के खिलाफ ऐसी साजिश रची कि इस साल 5-7 जून के बीच कथित रूप से डेढ़
दर्जन से ज्यादा मरीजों की मौत हो गई।
यहां तक कि खाद्य सुरक्षा
एवं औषधि प्रशासन उत्तर प्रदेश के आयुक्त ने भी विभागीय जांच रिपोर्ट में स्वीकार किया
है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय में 5-7 जून हादसे के
दौरान नॉन फार्माकोपियल ग्रेड की नाइट्रस ऑक्साइड का उपयोग किया गया जो औषधि की
श्रेणी में नहीं आती है। दरअसल मौके से मिले नॉन फार्माकोपियल ग्रेड की नाइट्रस
ऑक्साइड का उपयोग औद्योगिक कारखानों में होता है। इतना ही नहीं, उक्त कंपनी को
मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन और आपूर्ति करने का लाइसेंस भी नहीं है। इसके बावजूद वह
पिछले दो सालों से सर सुंदरलाल चिकित्सालय में इसकी आपूर्ति कर रही थी। आशंका यह
भी है कि अस्पताल के ओटी और आईसीयू में पिछले दो सालों के दौरान हुई मौतों में
उक्त कंपनी की जहरीली गैसों की भूमिका भी हो सकती है।
हैरानी की बात यह है कि
इतना तथ्य होने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसके लिए जिम्मेदार लोगों के
खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की है। फिलहाल विश्वविद्यालय प्रशासन ने मेडिकल गैसों
की आपूर्ति का ठेका निरस्त कर दिया है और वर्तमान में लिंडे नामक कंपनी इसकी
आपूर्ति कर रही है।
इस संबंध में जब सर
सुंदरलाल चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. ओपी उपाध्याय से उनके मोबाइल नंबर 8004929846
पर बात करने की कोशिश की गई तो वह स्वीच ऑफ मिला। उनके व्हाट्सअप नंबर 9415336707
पर जब काल किया गया तो उनके कार्यालय में कार्यरत अन्य व्यक्ति ने काल रिसीव किया
और बताया कि वे राउंड पर गए हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you for comment