बेटी के गम में डूंबी शकुंतला और उनकी बेटी पूनम शर्मा |
5-7 जून 2017। काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय का सर सुंदरलाल अस्पताल। कहीं शव पर सिर पटककर रोती महिलाएं तो कहीं
कानों के परदे को चिरतीं चीखें। किसी के सपने टूटें तो किसी के रिश्ते। कोई जिम्मेदारियों
से मुकरा तो कोई बांधा झूठ का पुलिंदा। इन सबके बीच थे तो कुछ सवाल जो अभी भी जवाब
खोज रहे हैं। आखिर कौन है मौत का सौदागर? विश्वविद्यालय प्रशासन, चिकित्सक, ठेकेदार
या फिर दवा बनाने वाली कंपनियां। कातिल कोई भी हो लेकिन असल में कुछ घर बर्बाद
जरूर हुए। किसी के सिर से पिता का साया छिना तो किसी भाई की कलाई की राखी। किसी की मांग का सिंदूर उजड़ा तो किसी के परिवार का सहारा। और ये हुआ है कुछ गैर-जिम्मेदार
लोगों की वजह से जिन्होंने चंद नोटों की लालच में मासूमों की जिंदगी का सौदा कर
लिया। अब हालात ऐसे हैं कि लोग बीएचयू के नाम से खौफ खाते हैं। पढ़िये वनांचल
एक्सप्रेस-मीडिया विजिल की यह संयुक्त रिपोर्टः
वाराणसी
से शिव दास की रिपोर्ट
“अब तो बीएचयू के नाम से दहशत हो गया है,
एकदम डर गये हैं भैया। बाहर ऑपरेशन कराते तो 25 हजार रुपये में आवारा-न्यारा हो
जाता। क्या बताएं भैया जब मति भ्रष्ट होती है और जब तबाही आती है तो...वही तबाही
आयी। अब देखिए जान बचती भी है कि नहीं। कुल मिलाकर 60-65 हजार रुपये भी इनवेस्ट
हुआ और स्थिति ये है। हिम्मत नहीं पड़ रही है कि दोबारा वहां जाएं। और वहां गए तो कहीं
ऐसी दवा मिल जाए कि वह सोयी की सोयी रह जाएं।”
ये कहना है मिर्जापुर के
चुनार निवासी 75 वर्षीय चिरंजी देवी की बहू स्नेह लता दुबे का। बीएचयू के नाम से
खौफजदा स्नेह लता ने गत 7 जून को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल
चिकित्सालय में अपनी सास की किडनी में मौजूद सात एमएम आकार की पथरी का ऑपरेशन
कराया था। ऑपरेशन के बाद चिकित्सक ने उन्हें छुट्टी तो दे दी लेकिन उनकी हालत में
सुधार अभी तक नहीं हुआ है। चिरंजी देवी की हालत को बयां करते हुए स्नेह लता कहती
हैं, “नहीं भैया उनकी स्थिति सही नहीं है। जब तक
चल रही हैं, बस चल रही हैं। कुछ कहा नहीं जा सकता है। कुछ खा रही हैं तो पचा नहीं
पा रही हैं। उनकी सेहत में सुधार नहीं हुआ है भैया...झेल ही रहे हैं अभी तक। कब तक
वे ऐसे झेलेंगी और कब तक हम लोग ऐसे झेलेंगे, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। लास्ट
में देखिए अब क्या होता है?” फिलहाल स्नेह लता वाराणसी के
निजी चिकित्सक के यहां अपनी सास का इलाज करा रही हैं।
कुछ ऐसे ही हालात 65
वर्षीय उषा सिंह के भी हैं जिनके यूटरस का ऑपरेशन भी गत 7 जून को बीएचयू अस्पताल
में हुआ था। उनके पति किरण शंकर सिंह का कहना है कि उषा सिंह की किडनी में
इंफेक्शन हो गया है और कमजोरी ज्यादा है। उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा है।
स्नेह लता दुबे और किरण
शंकर सिंह की उक्त बातें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष और
एनीस्थिशिया विशेषज्ञ डॉ. अनिल ओहरी के उस अनुभव को पुख्ता करती हैं जिसमें
उन्होंने कहा था कि मनुष्यों के इलाज में नॉन फार्माकोपियल ग्रेड की नाइट्रस
ऑक्साइड का उपयोग जानलेवा होता है। इससे अधिकतर लोगों की मौत हो जाती है। अगर कोई
बच गया तो वह रिकवर नहीं कर पाता है।
शुक्र है कि चिरंजी देवी
और उषा देवी अभी जिंदा हैं लेकिन जून के पहले सप्ताह में बीएचयू अस्पताल की
विभिन्न ओटीज में हुए ऑपरेशनों के कई भुक्तभोगी अब इस दुनिया में नहीं हैं। वनांचल
एक्सप्रेस और मीडिया विजिल ने ऐसे लोगों के परिवार वालों से भी संपर्क
किया जिन्होंने बीएचयू प्रशासन और चिकित्सकों पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया।
साथ ही अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए उन्होंने परिजनों के कहने पर भी शवों का
पोस्टमार्टम नहीं किया।
वाराणसी के अशोक नगर
(पांडेपुर) निवासी तीस वर्षीय पूनम शर्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनकी मौत 7
जून को सर सुंदर लाल चिकित्सालय में ट्यूमर के ऑपरेशन के दौरान हो गई थी। पूनम के
भाई आनंद शर्मा ने बीएचयू प्रशासन और चिकित्सकों पर लापरवाही बरतने की आरोप लगाया।
उन्होंने बताया कि पूनम की मौत 6 जून को ही हो गई थी लेकिन चिकित्सकों ने जानबूझकर
उसे आईसीयू में रखा और दवाइयां मंगाते रहे। उन्होंने उसके शरीर का इतना चीरफाड़
किया कि देखने लायक नहीं रह गया था। आखिरकार उन्होंने 7 जून को उसे मरा घोषित कर
दिया। उन्होंने कहा कि हम लोग शव का पोस्टमार्टम करने के लिए कह रहे थे लेकिन
चिकित्सकों ने पोस्टमार्टम करने से साफ मना कर दिया।
पूनम की मौत से उसकी मां
शकुंतला को इस कदर सदमा लगा है कि वह तीन महीने बाद भी सामान्य ढंग से बात नहीं कर
पा रही हैं। तीन भाइयों और दो बहनों में पूनम तीसरे नंबर पर थी। पूनम बहनों में
सबसे छोटी थी जिसकी शादी की बात चल रही थी लेकिन उसकी असमय मौत ने किसी के सपने
तोड़े तो किसी की ख्वाइशों को पर नहीं लगने दिये। फिलहाल पूनम के परिजनों ने जिला
एवं सत्र न्यायालय में मुकदमा कर न्याय की गुहार लगाई है। आनंद शर्मा की मानें तो
कोर्ट ने वाराणसी के मुख्य चिकित्साधिकारी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
पड़ोसी राज्य बिहार के
कैमूर(भभुआ) जिला अंतर्गत रामगढ़ (मुंडेश्वरी उमापुर) निवासी 45 वर्षीय आरती देवी
की मौत भी गत 7 जून को बीएचयू अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान हुई थी। उनके पति अशोक
कुमार बताते हैं कि मेरी पत्नी आंगनबाड़ी सहायिका थीं। मुख्य रूप से उनकी आमदनी से
ही घर का खर्च चलता था। उनकी मौत के बाद परिवार की परेशानियां बढ़ गई हैं। बीएचयू
अस्पताल के हालात को बयां करते हुए अशोक बताते हैं कि चिकित्सकों ने ऑपरेशन के लिए
कहा तो मैं राजी हो गया। मेरे पास उस समय पैसे नहीं थे तो मैंने अपने रिश्तेदार को
फोन किया और वे पैसे लेकर आए और ऑपरेशन हुआ। इसके बावजूद मेरी पत्नी बच नहीं सकी।
जब उनसे शव का पोस्टमार्टम कराने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम लोग
बार-बार शव का पोस्टमार्टम करने की बात कह रहे थे लेकिन डॉक्टर पोस्टमार्टम करने
से मना कर रहे थे। अशोक ने बताया, “जब मैंने पोस्टमार्टम के लिए कहा तो डॉक्टर
ने कहा कि जल्दी से शव लेकर भाग यहां से, हम पोस्टमार्टम नहीं करेंगे।” इसके बाद वहां मौजूद पुलिसवाले (सुरक्षाकर्मियों) हमें भगाने लगे। अशोक
ने बताया कि उन्होंने लंका थाने में डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है जिसमें
दारोगा ने हम लोगों का बयान दर्ज कर लिया है।
मृतकों में वाराणसी के
भोजूबीर निवासी 56 वर्षीय राधेश्याम त्रिपाठी का नाम भी शामिल है। राधेश्याम की
मौत बीएचयू अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान 6 जून को हुई थी। उनके बड़े लड़के संतोष
मणि त्रिपाठी ने भी अस्पताल प्रशासन और चिकित्सक पर लापरवाही बरतने और शव का
पोस्टमार्टम नहीं करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि चिकित्सकों से पोस्टमार्टम
के लिए कहा गया लेकिन उन लोगों ने पोस्टमार्टम करने से साफ इंकार कर दिया।
मेडिकल यंत्रों का कारोबार
करने वाले इलाहाबाद निवासी 40 वर्षीय मेहराज अहमद की मौत भी बीएचयू अस्पताल में गत
7 जून को हुए ऑपरेशन के दौरान हुई थी। मेहराज के रिश्तेदार आरिफ ने भी बीएचयू
प्रशासन और चिकित्सकों पर इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। उन्होंने भी
आरोप लगाया कि पोस्टमार्टम करने की बात कहने पर भी चिकित्सकों ने शव का
पोस्टमार्टम नहीं किया। मजबूरन हमें शव को लेकर घर वापस जाना पड़ा। मेराज अहमद के
परिजनों ने लंका थाना में बीएचयू प्रशासन और चिकित्सक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराकर
न्याय की गुहार लगाई है।
मृतक, सुमन देवी, पिंकी
अग्रहरी और सरिता के परिजनों से बात नहीं हो पाई। वहीं इस दौरान ऑपरेशन कराने
वालों 36 वर्षीय सुमन देवी, 34 वर्षी प्रांसी तिवारी, 40 वर्षीय माया देवी और 26
वर्षीय मधु भी हैं जिनके परिजनों से संपर्क नहीं हो पाने के कारण उनके स्वास्य की
जानकारी नहीं मिल पाई।
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