देशद्रोह के आरोप में आठ साल से ज्यादा समय जेल में गुजारने के बाद दोषमुक्त
हुये अजीर्जुरहमान, मोहम्मद अली अकबर और शेख मुख्तार हुसैन बयां किया दर्द।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
लखनऊ। बिजली का झटका लगाना, उल्टा लटका कर नाक से पानी पिलाना,
टांगे दोनों तरफ फैलाकर डंडा से पीटना,
नंगा कर पेट्रोल डालना, पेशाब पिलाना जैसे तमाम
हथकंडे पुलिस ने हमपर आजमाया और छह दिन तक हमें एक मिनट के लिए भी सोने
नहीं दिया। यह कहना है पश्चिम बंगाल में 24 परगना जिले के बशीर हाट निवासी इक्तीस वर्षीय अजीर्जुरहमान
का जिन्हें उत्तर प्रदेश एटीएस ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में ठूंस
दिया था। अदालत ने पिछले दिनों अजीर्जुरहमान को करीब आठ साल बाद देशद्रोह के आरोप
से दोषमुक्त कर दिया। उनके अलावा अदालत ने मोहम्मद अली अकबर और शेख मुख्तार को भी
देशद्रोह के आरोप से मुक्त कर उन्हें रिहा कर दिया है।
शनिवार को लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश क्लब में रिहाई मंच द्वारा आयोजित पत्रकार
वार्ता के दौरान अजीर्जुरहमान ने बताया कि उसे 11 जून 2007 को सीआईडी वालों ने चोरी के इल्जाम में उठाया था। 16 जून को कोर्ट में पेश करने के बाद 22 जून को दोबारा कोर्ट में पेश कर 26 तक हिरासत में लिया। जबकि यूपी एसटीएफ ने मेरे ऊपर इल्जाम
लगाया था कि मैं 22 जून को लखनऊ अपने साथियों के साथ आया था। आप ही बताएं की
यह कैसे हो सकता है कि जब मैं 22 जून को कोलकाता पुलिस की हिरासत में था तो यहां कैसे उसी
दिन कोई आतंकी घटना अंजाम देने के लिए आ सकता हूं। 12 दिन की कस्टडी में यूपी एसटीएफ ने रिमांड में 5 लोगों के साथ लिया और बराबर नौशाद और जलालुद्दीन के साथ
टार्चर किया जा रहा था जिसे देख हम दहशत में आ गए थे कि हमारी बारी आने पर हमारे
साथ भी ऐसा ही किया जाएगा। टार्चर कुछ इस तरह था कि हमारा रिमांड खत्म होने के एक
दिन पहले लखनऊ से बाहर जहां ईट भट्टा और एक कोठरी नुमा खाली कमरा पड़ा था,
वहां ले जाकर गाड़ी रोका और मीडिया के आने का इंतजार किया।
यहां लाने से पहले एसटीएफ वालों ने हमसे कहा था कि मीडिया के सामने कुछ मत बोलना।
इस बीच धीरेन्द्र नाम के एक पुलिस कर्मी ने सीमेंट की बोरी और फावड़ा लिया और
कोठरी के अंदर गया फिर कोठरी के अंदर गड्डा खोदा, बोरी के अंदर से जो भी सामान ले गए थे गड्डे के अंदर टोकरी
में रख दिया। फिर जब सारे मीडिया वाले आ चुके तो हमको गाड़ी से निकालकर उस गड्डे
के पास से एक चक्कर घुमाया जिसका फोटो मीडिया खींचती रही। एसटीएफ वालों ने मीडिया
को बताया कि ये आतंकी हैं जो कि यहां दो किलो आरडीएक्स,
दस डिटोनेटर और दस हैंड ग्रेनेड छुपाकर भाग गए थे। इनकी
निशानदेही पर यह बरामद किया गया है। मीडिया वाले बात करना चाह रहे थे पर एसटीएफ ने
तुरंत हमें ढकेलकर गाड़ी में डाल दिया। हम लोगों को जब यूपी लाया गया उस समय उसमें
एक लड़का बांग्लादेशी भी था। पूछताछ के दौरान उसने बताया कि वह हिन्दू है और उसका
नाम शिमूल है। उसके बाद दो कांस्टेबलों ने उसके कपड़े उतरवाकर देखा कि उसका खतना
हुआ है कि नहीं। जब निश्चिंत हो गए की खतना नहीं हुआ है तो पुलिस वालों ने उससे
कहा कि यह बात कोलकाता में क्यों नहीं बताया। उसके बाद दो कांस्टेबल उसे फिर से
कोलकाता छोड़ आए। सिर्फ मुसलमान होने के नाते हमें आतंकी बताकर फंसा दिया गया।
मिदनापुर निवासी शेख मुख्तार हुसैन जो कि मटियाबुर्ज में सिलाई का काम करते थे
ने बताया कि उसने एक पुराना मोबाइल खरीदा था। उस समय उसकी बहन की शादी थी। उसी
दौरान एक फोन आया कि उसकी लाटरी लग गयी है और लाटरी के पैसों के लिए उसे कोलकाता आना
होगा। इस पर उसने कहा कि अभी घर में शादी की व्यस्तता है अभी नहीं आ पाउंगा। उसी
दौरान उसे साइकिल खरीदने के लिए नंद कुमार मार्केट जाना था तो उसी दौरान फिर से उन
लाटरी की बात करने वालों का फोन आया और उन लोगों ने कहा कि वे वहीं आ जाएंगे। फिर
वहीं से उसे खुफिया विभाग वालों ने पकड़ लिया। जीवन के साढे़ आठ साल बर्बाद हो गए।
उनका परिवार बिखर चुका है। उन्होंने अपने बच्चों के लिए जो सपने बुने थे उसमें देश
की सांप्रदायिक सरकारों, आईबी और पुलिस ने आग लगा दी। उनके बच्चे पढ़ाई छोड़कर सिलाई
का काम करने को मजबूर हो गए, उनकी बेटी की उम्र शादी की हो गई है। लेकिन साढे आठ साल जेल
में रहने के कारण अब वे पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। अब उनके सामने आगे का रास्ता
भी बंद हो गया है। क्योंकि फिर से जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए जो पैसा रुपया
चहिए वह कहा से आएगा। सरकार पकड़ते समय तो हमें आतंकवादी बताती है पर हमारे
बेगुनाह होने के बाद न तो हमें फंसाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है और न
ही मुआवजा मिलता है। पत्रकारों द्वारा सवाल पूछने पर कि मुआवजा की लड़ाई लड़ेगे पर
शेख मुख्तार ने कहा कि छोड़ने के वादे से मुकरने वाली सरकार से मुआवजे की कोई
उम्मीद नहीं।
24 परगना बनगांव के रहने वाले अली अकबर हुसैन ने कहा कि देश
के खिलाफ नारे लगाने के झूठे आरोप ने उसे सबसे ज्यादा झटका दिया। जिस देश में हम
रहते हैं उसके खिलाफ हम कैसे नारा लगाने की सोच सकते हैं। आज जब यह आरोप बेबुनियाद
साबित हो चुके हैं तो सवाल उठता है कि हम पर देश के खिलाफ नारा लगाने का झूठा आरोप
क्यों मढ़ा गया। उन्होंने कहा कि हमारे वकील मु0 शुऐब जो कि हमारा मुकदमा लड़ने (12 अगस्त 2008) कोर्ट में गए थे को मारा पीटा गया और हम सभी पर झूठा मुकदमा
दर्ज कर दिया गया कि हम देश के खिलाफ नारे लगा रहे थे।
जेल की पीड़ा और अपने ऊपर लगे आरोपों से अपना मानसिक असंतुलन का शिकार हो चुके
अली अकबर के पिता अल्ताफ हुसैन ने कहा कि मेरे बेटे की हालत की जिम्मेदार पुलिस और
सरकार है। एयर फोर्स के रिटायर्ड अल्ताफ ने कहा कि जिस तरह से झूठे मुकदमें में
उनके लड़के और अन्य बेगुनाहों को फंसाया गया ऐसे में एडवोकेट मुहम्मद शुऐब की
मजबूत लड़ाई से ही इनकी रिहाई हो सकी। उन्होंने कहा कि हमारे बेटों के खातिर मार
खाकरद भी जिस तरीके से शुऐब साहब ने लड़ा उससे इस लड़ाई को मजबूती मिली। पत्रकार
वार्ता में रिहा हो चुके लोगों के परिजन अब्दुल खालिद मंडल,
अन्सार शेख भी मौजूद रहे।
पत्रकार वार्ता के दौरान जेल में कैद आतंकवाद के अन्य आरोपियों के बारे में
सवाल पूछने पर अजीजजुर्रहमान ने बताया कि उनके साथ ही जेल में बंद नूर इस्लाम की
आंख की रौशनी कम होती जा रही है। लेकिन मांग करने के बावजूद जेल प्रशासन उनका इलाज
नहीं करा रहा है। शेख मुख्तार से यह पूछने पर कि अब आगे जिंदगी कैसे बढ़ेगी,
उन्होंने कहा कि बरी होने के बाद भी हमें जमानत लेनी है और
अभी तक हमारे पास जमानतदार भी नहीं है। हम एडवोकेट मोहम्मद शुऐब के उपर ही निर्भर
हैं। इस सिलसिले में मोहम्मद शुऐब से पूछने पर कि जमानत कैसे होगी ये कहते हुए वो
रो पड़े कि आतंकवाद के आरोपियों के बारे में फैले डर की वजह से मुश्किल होती है और
लोग इन बेगुनाहों के जमानतदार के बतौर खड़े हों। इसीलिए मैंने इसकी शुरूआत अपने घर
से की मेरी पत्नी और साले जमानतदार के बतौर खड़े हुए हैं। इन भावनाओं से प्रभावित
होते हुए पत्रकार वार्ता में मौजूद आदियोग और धर्मेन्द्र कुमार ने जमानतदार के
बतौर खड़े होने की बात कही। मु0 शुऐब ने समाज से अपील की कि लोग ऐसे बेगुनाहों के लिए खड़े
हों। इस मामले में अभी और जमानतदारों की जरूरत है अगर कोई इनके लिए जमानतदार के
बतौर खड़ा होगा तो ये जल्दी अपने घर पहुंचाए जाएंगे।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा सरकार ने अगर आतंकवाद के नाम
पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने का अपना चुनावी वादा पूरा किया होता तो यही नहीं इन
जैसे दर्जनों बेगुनाह पहले ही छूट गए होते। उन्होंने कहा कि सपा ने चुनाव में
मुसलमानों का वोट लेने के लिए उनसे झूठे वादे किए। जिसमें से एक वादा छूटे
बेगुनाहों के पुर्नवास और मुआवजे का भी था। लेकिन किसी भी बेगुनाह को सरकार ने
उनकी जिन्दगी बर्बाद करने के बाद आज तक कोई मुआवजा या पुर्नवास नहीं किया है।
पुर्नवास व मुआवजा न देना साबित करता है कि अखिलेश यादव हिन्दुत्वादी चश्मे से
बेगुनाहों को आतंकवादी ही समझते हैं। उन्होंने पूछा कि सरकार को बताना चाहिए कि इन
बेगुनाहों के पास से पुसिल ने जो आरडीएक्स,
डिटोनेटर और हैंडग्रेनेड बरामद दिखाया उसे वह कहां से मिला।
किसी आतंकी संगठन ने उन्हंे ये विस्फोटक दिया या फिर पुलिस खुद इनका जखीरा अपने
पास रखती है ताकि बेगुनाहों कों फंसाया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसी बरामदगी
दिखाने वाले पुलिस अधिकारियों का समाज में खुला घूमना देश की सुरक्षा के लिए ठीक
नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से कुछ मीडिया संस्थानों ने इनके छूटने पर यह
खबर छापी की ये सभी पाकिस्तानी है असल में यह वही जेहनियत है जिसके चलते पुलिस ने
देश के खिलाफ नारा लगाने का झूठा एफआईआर करवाया। आज असलियत आपके सामने है कि यह
अपनी बात कहते-कहते भूल जा रहे हैं। मानसिक रुप से असुंतलित हो गए हैं। ऐसे में
देशद्रोह और आतंकी होने का फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाले असली देशद्रोही हैं उनपर
मुकदमा होना चाहिए। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि क्या उसमें यह हिम्मत है?
रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने बताया कि आफताब आलम अंसारी,
कलीम अख्तर, अब्दुल मोबीन, नासिर हुसैन, याकूब, नौशाद, मुमताज, अजीजुर्रहमान, अली अकबर, शेख मुख्तार, जावेद, वासिफ हैदर वो नाम हैं जिन पर आतंकवादी का ठप्पा लगाकर उनकी
पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी गई। जिनके बरी होने के बावजूद सरकारों ने उनके प्रति कोई
जिम्मेदारी नहीं दिखाई। तो वहीं ऐसे कई नौजवान यूपी की जेलों में बंद हैं जो कई
मुकदमों में बरी हो चुके है जिनमें तारिक कासमी, गुलजार वानी, मुहम्मद अख्तर वानी, सज्जादुर्रहमान, इकबाल, नूर इस्लाम है। उन्होंने कहा कि सरकार बेगुनाहों की रिहाई
से सबक सीखते हुए इन आरोपों में बंद बेगुनाहों को तत्काल रिहा करे और सांप्रदायिक
पुलिस कर्मियों के खिलाफ कारवाई करे। उन्होंने कहा कि जब इन बेगुनाहों को फंसाया
गया तब बृजलाल एडीजी कानून व्यवस्था और बिक्रम सिंह डीजीपी थे और उन्होनें ही
मुसलमानों को फंसाने की पूरी साजिश रची। जिनकी पूरी भूमिका की जांच के लिए सकरार
को जांच आयोग गठित करना चाहिए ताकि आतंकवाद के नाम पर फंसाने वाले पुलिस
अधिकारियों को सजा दी जा सके। मंच ने यूएपीए को बेगुनाहों को फंसाने का पुलिसिया
हथियार बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की है।
(प्रेस विज्ञप्ति)
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