शिकायत
के बाद भी नहीं की कार्रवाई। जांच के नाम पर अधिकारी कर रहे खानापूर्ति। छह महीने
बीतने के बाद भी मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक (बेसिक) ने निदेशालय को नहीं भेजी
जांच आख्या।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
सोनभद्र। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भले ही फर्जी स्कूलों के संचालन पर रोक लगाने का
दावा कर रही हो लेकिन सूबे में धड़ल्ले से फर्जी स्कूली का संचालन हो रहा है और विभागीय
अधिकारी इसमें शिक्षा माफियाओं का बखूबी साथ निभा रहे हैं। सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज
विकास खण्ड में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। संस्था अथवा विद्यालय के नाम भूमि
अथवा पंजीकृत भवन लीज नहीं होने के बाद भी जिला बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने
प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्तर के दो विद्यालयों को मान्यता प्रदान कर दी और ये
विद्यालय कागज पर धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं। इतना ही नहीं, शिकायत के बाद भी
अधिकारियों ने विद्यालय संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। जवाब में
उन्होंने अपनी जांच आख्या में शिकायतकर्ता की नियत पर ही सवाल उठा दिया।
रॉबर्ट्सगंज विकास खंड के
ग्राम पंचायत बहुअरा स्थित ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय, बहुअरा
(बंगला), सोनभद्र और ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर पूर्व माध्यमिक विद्यालय, बहुअरा,
सोनभद्र ऐसे ही दो विद्यालय हैं जो शासन के मानकों पर खरे नहीं उतरते लेकिन वे
धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं। इनका संचालन करने वाली संस्था ‘ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर’ के नाम ग्राम पंचायत बहुअरा में ना कोई निजी भूमि है अथवा ना ही भवन। भवन की
पंजीकृत किरायेदारी भी नहीं है और ना ही योग्य शिक्षक हैं। फिर भी विभाग ने उन्हें
मान्यता प्रदान कर दी है।
तिनताली गांव निवासी
शिकायतकर्ता शिव दास प्रजापति के दावों पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा
विभाग ने ‘ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर’ संस्था द्वारा संचालित ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय, बहुअरा
(बंगला), सोनभद्र को 27 जून 2001 को मान्यता प्रदान की थी जबकि विभाग द्वारा ग्रामोदय
शिशु विद्या मंदिर पूर्व माध्यमिक विद्यालय, बहुअरा, सोनभद्र को 13 जनवरी 2003 को
प्राप्त हुई थी। उस समय इन विद्यालयों का संचालन करने वाली संस्था के नाम ग्राम
पंचायत बहुअरा में ना ही कोई भूमि थी और ना ही किसी भी भवन की लीज/किरायेदारी 10
सालों के लिए पंजीकृत नहीं थी और अब भी नहीं है जो शासनादेशों का खुलेआम उल्लंघन
है।
उत्तर प्रदेश शासन के
शिक्षा अनुभाग-6 के प्रमुख सचिव (बेसिक) द्वारा 8 मई 2013 को जारी पत्रांक
संख्या-418/79-6-2013-18 एस(7)/89 में भवन के संबंध में स्पष्ट लिखा है, “विद्यालय सोसाइटी का आवश्यकतानुसार उपयुक्त निजी भवन होने
अथवा कम से कम 10 वर्ष तक किराये/लीज पर भवन उपलब्ध होने पर मान्यता के लिए विचार
किया जा सकता है। किराये का भवन होने की स्थिति में किरायानामा पंजीकृत
(रजिस्टर्ड) होना अनिवार्य है।“
इतना ही नहीं, राज्य में
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 और इसके आलोक में राज्य
सरकार द्वारा पारित शिक्षा का अधिकार नियमावली-2011 लागू है। उत्तर प्रदेश शासन की
उक्त नियमावली के तहत प्राथमिक स्तर के विद्यालय के संचालन और मान्यता के लिए कम
से कम 180 वर्गफीट क्षेत्रफल के न्यूनतम नौ कक्ष अवश्य होने चाहिए। इसके अलावा
क्रिड़ा स्थल का होना जरूरी है। ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय,
बहुअरा (बंगला), सोनभद्र इन मानकों को पूरा नहीं करता है। इसके अलावा नियमावली
कहती है कि उच्च प्राथमिक विद्यालय के संचालन और मान्यता के लिए कम से कम 180
वर्गफीट क्षेत्रफल के न्यूनतम सात कक्ष और क्रीड़ा स्थल होना अनिवार्य है। ग्रामोदय
शिशु विद्या मंदिर पूर्व माध्यमिक विद्यालय, बहुअरा, सोनभद्र इन मानकों को भी पूरा
नहीं करता है।
शिकायतकर्ता के आरोपों की मानें तो विद्यालय संस्था में
शामिल व्यक्तियों के साथ-साथ इसके संचालक/प्रधानाध्यापक/प्रबंधक हरिदास खत्री और
उनके रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए संचालित किया जा रहा है जो गैर-कानूनी
है। इतना ही नहीं, ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय, बहुअरा (बंगला),
सोनभद्र और ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर पूर्व माध्यमिक विद्यालय, बहुअरा, सोनभद्र
में अध्यापन कार्य को अंजाम दे रहे प्रधानाध्यापकों, अध्यापकों और गैर-शैक्षणिक
कर्मचरियों की शैक्षिक योग्यता उत्तर प्रदेश बेसिक (अध्यापक) सेवा नियमावली-1981
(अद्यतन) के तहत नहीं है और ना ही बेसिक स्कूल अध्यापकों की भर्ती और सेवा शर्ते
नियमावली-1975 का अनुपालन सुनिश्चित किया गया है। इन विद्यालयों में जरूरी
शिक्षणेत्तर और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति भी नहीं की गई है।
ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय, बहुअरा
(बंगला), सोनभद्र और ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर पूर्व माध्यमिक विद्यालय, बहुअरा,
सोनभद्र में कार्यरत कर्मियों को मान्यता प्राप्त प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक
विद्यालय में कार्यरत अध्यापकों एवं कर्मचारियों के समान वेतनमान, महंगाई भत्ते,
प्रोविडेंट फंड, कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा आदि का लाभ नहीं दिया जा रहा है जो
शिक्षा का अधिकार नियमावली के तहत गैर-कानूनी है।
ग्रामोदय शिशु विद्या मंदिर प्राथमिक विद्यालय, बहुअरा
(बंगला), सोनभद्र में अध्ययनरत छात्रों से जानकारी मिली है कि इस विद्यालय में
प्रधानाध्यापक के रूप में संचालक हरिदास खत्री की रिश्तेदार साधना रानी पाल कार्य
कर रही हैं। छात्रों के अंक-पत्र और टीसी पर साधना ही हस्ताक्षर करती हैं। छानबीन
पर मालूम हुआ कि साधना रानी पाल प्राथमिक विद्यालय में
अध्यापिका/प्रधानाध्यापिका/सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति के योग्य नहीं हैं।
साधना रानी पाल पत्नी कमला पाल चंदौली जनपद के चकिया विधानसभा क्षेत्र के बड़गावा
गांव की निवासी हैं और हरिदास खत्री की रिश्तेदार हैं। साधना रानी पाल ने वर्ष
2014 में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से संबद्ध आदर्श जनता महाविद्यालय
कोलना, चुनार, मिर्जापुर से गृह विज्ञान में नियमित परास्नातक हैं। उन्होंने उत्तर
प्रदेश मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण संस्थान से अध्यापन प्रमाण-पत्र (नर्सरी) या
सरकार द्वारा उसके समकक्ष मान्यता प्राप्त कोई अन्य प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के साथ
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण नहीं
किया है। इसके बावजूद विद्यालय के प्रबंधतंत्र ने उन्हें प्रधानाध्यापक/सहायक
अध्यापक के पद पर नियुक्ति दे दी है जो पूर्णतः गैर-कानूनी है।
उत्तर प्रदेश शासन के शिक्षा अनुभाग-6 के प्रमुख सचिव
(बेसिक) द्वारा 8 मई 2013 को जारी पत्रांक संख्या-418/79-6-2013-18 एस(7)/89 में
भवन के संबंध में स्पष्ट लिखा है, “पूर्व
से मान्यता प्राप्त विद्यालय भी इन संशोधित मानक/शर्तों को उत्तर प्रदेश निःशुल्क
एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली-2011 लागू होने की तिथि से 03 वर्ष
में अपने आर्थिक स्रोतों से पूरा करने हेतु आवश्यक कदम उठाएंगे अन्यथा सक्षम
प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्रत्याहरित करने हेतु नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।
मान्यता प्रत्याहरण के उपरान्त इस प्रकार का विद्यालय किसी भी दशा में संचालित
नहीं किया जाएगा”। नियमावली लागू हुए करीब पांच वर्ष बीत चुके हैं लेकिन
उक्त विद्यालयों के प्रबंधन समिति ने शासन द्वारा निर्धारित मानकों को अब तक पूरा
नहीं किया है। इसके बावजूद विद्यालयों को संचालन धड़ल्ले से हो रहा है। संबंधित
विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने विद्यालय के खिलाफ अभी तक कोई ठोस कार्रवाई
नहीं की है।
शिकायतकर्ता शिव दास प्रजापति ने फर्जी ढंग से संचालित हो
रहे उक्त विद्यालयों की शिकायत विभागीय अधिकारियों और शासन से की। उनकी शिकायत पर
शासन ने विभाग से मामले की जांच आख्या तलब की। जांच में विभागीय अधिकारियों ने
शिकायत-पत्र में उल्लेखित बिन्दुओं की जांच की जगह शिकायतकर्ता और विद्यालय संचालक
के आपसी विवाद की झूठी रिपोर्ट शासन को भेज दी। बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षा
निदेशक ने उनकी रिपोर्ट खारिज कर दी और मामले की जांच विंध्याचल मंडल के मंडलीय
सहायक शिक्षा निदेशक (बेसिक) को सौंप दी। छह महीने बीत चुके हैं लेकिन जांच
अधिकारी ने अभी तक मामले की जांच आख्या निदेशालय को नहीं भेजी है। इससे साफ है कि
शिक्षा माफियाओं और नौकरशाहों का गठजोड़ तंत्र पर इस कदर हावी है कि योगी सरकार की
नसीहतें केवल मीडिया की तकरीर बनकर रह गई हैं।
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