फोटो साभार- पत्रिका |
रविश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार, एनडीटीवी
मध्य प्रदेश में छात्र संगठन के चुनाव में एबीवीपी की जीत की ख़बर छाई हुई है। जबलपुर से एनएसयूआई की जीत की खबर भी को जगह मिली है। लेकिन एक ऐसे छात्र संगठन की ख़बर दिल्ली तक नहीं पहुंची है। जबकि पत्रिका ने इसे पहले पन्ने पर लगाया है कि धार में जयस ने एबीवीपी के वर्चस्व को समाप्त कर दिया है। इस संगठन का नाम है जय आदिवासी युवा संगठन या जयस ।
2013 में डॉ हीरा लाल अलावा ने इसे क़ायम किया है। हीरा लाल क़ाबिल डॉक्टर हैं और एम्स जैसी जगह से अपने ज़िले में लौट आए। चाहते तो अपनी प्रतिभा बेचकर लाखों कमा सकते थे मगर लौट कर गए कि आदिवासी समाज के बीच रहकर चिकित्सा करनी है और नेतृत्व पैदा करना है। 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर डॉ हीरा लाल की रैली का वीडियो देखकर हैरत में पड़ गया था।
भारत में नेतृत्व दिल्ली की मीडिया फैक्ट्री में पैदा नहीं होते हैं। तीन-चार साल की मेहनत का नतीजा देखिए, आज एक नौजवान डाक्टर ने संघ के वर्चस्व के बीच अपना परचम लहरा दिया है। जयस ने पहली बार छात्र संघ का चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की है। दरअसल, मध्यप्रदेश छात्र संघ के नतीजों की असली कहानी यही है। बाकी सब रूटीन है।
मध्य प्रदेश का धार, खरगौन, झाबुआ, अलीराज पुर आदिवासी बहुल ज़िला है। यहां कुछ अपवाद को छोड़ दें तो सभी जगहों पर जयस ने जीत हासिल की है। धार ज़िले के ज़िला कालेज में पहली बार जयस के उम्मीदवार प्रताप डावर ने अध्यक्ष पद जीता है। बाकी सारे पद भी जयस के खाते में गए हैं। प्रताप धार के ही टांडा गांव के पास तुकाला गांव के हैं जहां आज भी पानी के लिए सात किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। प्रताप अपने गांव का एकमात्र और पहला स्नातक है। इस वक्त एम ए इकोनोमिक्स का छात्र हैं। प्रताप ने एबीवीपी और एन एस यू आई के आदिवासी उम्मीदवारों को हरा दिया है। दस साल से यहां एबीवीपी का क़ब्ज़ा था।
धार के कुकसी तहसील कालेज में जीत हासिल की है। गणवाणी कालेज में भी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष समेत सारी सीटें जीत ली हैं। धर्मपुरी तहसील के शासकील कालेज में चारों उम्मीदवार जीत गए। अध्यक्ष उपाध्यक्ष और सचिव का पद जीता है। मनावर तहसील के कालेज की चारों शीर्ष पदों पर जयस ने जीत हासिल की है। गणवाणी में सारी सीटें जीते हैं। बाघ कालेज की सारी सीटें जीत गए हैं। अलीराजपुर के ज़िला कालेज की पूरी सीट पर जयस ने बाज़ी मारी है। खरगौन ज़िले के ज़िला कालेज में ग्यारह सीटे जीते हैं। जोबट और बदनावर कालेज में भी जयस ने जीत हासिल की है।
इन सभी सीटों पर जयस ने एबीवीपी के आदिवासी उम्मीदवारों को हराया है। माना जाता है कि आदिवासी इलाकों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपना सामाजिक राजनीतिक आधिपत्य जमा लिया है, मगर जयस ने अपने पहले ही चुनाव में संघ और एबीवीपी को कड़ी चुनौती दी है। जयस की तरफ से धार में काम करने वाले शख्स ने कहा कि संघ हमारा इस्तमाल करता है। हमारे अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ता है। हम यह सब समझ गए हैं। जहां जहां जयस ने हराया है वहां पर एबीवीपी का ही क़ब्ज़ा था।
धार से जयस के प्रभारी अरविंद मुझालदा ने बताया कि धार ज़िला कालेज की जनभागीदारी समिति की अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा हैं। लीला वर्मा भाजपा विधायक भी हैं। इस कालेज में उनका काफी दबदबा था जिसे जयस ने ध्वस्त कर दिया। सह-सचिव के पद को छोड़ किसी भी पद पर एबीवीपी को नहीं जीतने दिया।
अरविंद का कहना था कि इलाके में भाजपा का इतना वर्चस्व है कि आप कल्पना नहीं कर सकते इसके बाद भी हम जीते हैं। हमने सबको बता दिया है कि आदिवासी समाज ज़िंदा समाज है और अब वह स्थापित दलों के खेल को समझ गया है। हमारे वोट बैंक का इस्तमाल बहुत हो चुका है। अब हम अपने वो का इस्तमाल अपने लिए करेंगे। जयस के ज़्यादातर उम्मीदवार पहली पीढ़ी के नेता हैं। इनके माता पिता अत्यंत निम्न आर्थिक श्रेणी से आते हैं। कुछ के सरकारी नौकरियों में हैं।
धर्मपुरी कालेज के अध्यक्ष का चुनाव जीतने वाले प्यार सिंह कामर्स के छात्र हैं। कालेजों में आदिवासी छात्रों की स्कालरशिप कभी मिलती है कभी नहीं मिलती है। जो छात्र बाहर से आकर किराये के घर में रहते हैं उनका किराया कालेज को देना होता है मगर छात्र इतने साधारण पृष्ठभूमि के होते हैं कि इन्हें पता ही नहीं होता कि किराये के लिए आवेदन कैसे करें। कई बार कालेज आवेदन करने के बाद भी किराया नहीं देता है। आदिवासी इलाके के हर कालेज में 80 से 90 फीसदी आदिवासी छात्र हैं। इनका यही नारा है जब संख्या हमारी है तो प्रतिनिधित्व भी हमारा होना चाहिए।
जयस आदिवासी क्षेत्रों के लिए एक बुनियादी और सैद्दांतिक लड़ाई लड़ रहा है। डॉ हीरा लाल का कहना है कि कश्मीर की तरह संविधान ने भारत के दस राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों और राज्यों के लिए पांचवी अनुसूचि के तहत कई अधिकार दिए हैं। उन अधिकारों को कुचला जा रहा है। पांचवी अनुसूचि की धारा 244(1) के तहत आदिवासियों को विशेषाधिकार दिए गए हैं।
आदिवासी अपने अनुसार ही पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में योजना बनवा सकते हैं। इसके लिए ट्राइबल एडवाइज़री काउंसिल होती है जिसमें आदिवासी विधायक और सांसद होते हैं। राज्यपाल इस काउंसिल के ज़रिए राष्ट्रपति को रिपोर्ट करते हैं कि आदिवासी इलाके में सही काम हो रहा है या नहीं। मगर डाक्टर हीरा लाल ने कहा कि ज़्यादातर ट्राइबल एडवाइज़री काउंसिल का मुखिया आदिवासी नहीं हैं। हर जगह ग़ैर आदिवासी मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष हो गए हैं क्योंकि मुख्यमंत्रियों ने खुद को इस काउंसिल का अध्यक्ष बनवा लिया है।
डॉ हीरा लाल और उनके सहयोगियों से बात कर रहा था। फोन पर हर दूसरी लाइन में पांचवी अनुसूचि का ज़िक्र सुनाई दे रहा था। नौजवानों का यह नया जत्था अपने मुद्दे और ख़ुद को संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार परिभाषित कर रहा है। पांचवी अनुसूचि की लड़ाई आदिवासी क्षेत्रों को अधिकार देगी लेकिन उससे भी ज़्यादा देश को एक सशक्त नेतृत्व जिसकी वाकई बहुत ज़रूरत है।
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