गुरुवार, 2 जुलाई 2020

सहायक अध्यापक भर्ती: भाजपा की योगी सरकार ने की आरक्षण के नियमों की अनदेखी, NCBC ने अधिकारियों को किया तलब

उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 68,500 सहायक अध्यापकों की भर्ती के मामले में आरक्षण के नियमों की अनदेखी की वजह से करीब अन्य पिछड़ा वर्ग के करीब 15000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया से बाहर हो रहे थे।

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

भाजपा की योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में हो रही भर्तियों में आरक्षण के नियमों की अनदेखी का मामला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के बाद अब उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 68,500 सहायक अध्यापकों की भर्ती का मामला राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग पहुंच गया है। आयोग ने भर्ती में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण की अनदेखी को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों समेत परीक्षा नियामक प्राधिकारी के सचिव को तलब किया है। आयोग ने उन्हें और शिकायतकर्ता को अगली सुनवाई पर संबंधित सुबूतों और दस्तावेजों के साथ व्यक्तिगत रूप में उपस्थित होने का निर्देश दिया है। साथ ही आयोग ने उन्हें चेतावनी दी है कि अगर वे अगली सुनवाई पर आयोग के सामने उपस्थित नहीं होते हैं तो वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद-338बी(8) के तहत मिले सिविल कोर्ट के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होगा। 

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष लोकेश कुमार प्रजापति ने मामले में बुधवार को सुनवाई की। वे आगामी सात जुलाई को इस मामले की पुनः सुनवाई करेंगे। आयोग के अनु-सचिव जे. रविशंकर के हस्ताक्षर से जारी नोटिस में उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, विशेष सचिव और परीक्षा नियामक प्राधिकारी के सचिव को सात जुलाई को उपाध्यक्ष लोकेश प्रजापति के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। नोटिस में लिखा है कि आयोग ने 68,500 पदों पर शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण के नियमों की जांच करने का निर्णय लिया है। 


बता दें कि उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 68,500 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए परीक्षा नियामक प्राधिकारी उत्तर प्रदेश ने दिसंबर, 2019 में विज्ञापन प्रकाशित किया था। इस साल 6 जनवरी को इसकी लिखित परीक्षा हुई थी। इसमें करीब 409530 अभ्यर्थी शामिल हुए। 12 मई को इसका परिणाम जारी हुआ जिसमें 146060 अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया। बेसिक शिक्षा विभाग ने ओवरलैपिंग का हवाला देकर परिणाम में अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के बराबर अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को उनकी कैटगरी में रखकर उनके गृह जनपद में नियुक्ति देने की व्यवस्था लागू कर दी। इससे चयन प्रक्रिया से अन्य पिछड़ा वर्ग के करीब 15000 अभ्यर्थियों के बाहर होने की संभावना है। 

अगर कानूनी प्रावधानों की बात करें तो उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम-1994 की धारा-3(6) कहता है कि उपधारा-(1) में उल्लेखित किसी श्रेणी से संबंधित कोई व्यक्ति योग्यता के आधार पर खुली प्रतियोगिता में सामान्य अभ्यर्थियों के साथ चयनित होता है तो उसे उपधारा-(1) के अधीन ऐसी श्रेणी के लिए आरक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित नहीं किया जाएगा। कार्मिक अनुभाग-1 की ओर से 25 मार्च 1994 को जारी शासनादेश (संख्या-1/1/94-कार्मिक-1/1994) में भी इसका जिक्र किया गया है जो कहता है, "यदि आरक्षित श्रेणी से संबंधित कोई व्यक्ति योग्यता के आधार पर खुली प्रतियोगिता में सामान्य अभ्यर्थियों के साथ चयनित होता है तो उसे आरक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित नहीं किया जाएगा अर्थात् उसे अनारक्षित रिक्तियों के प्रति समायोजित किया जाएगा, भले ही उसने आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को अनुमन्य किसी सुविधा या छूट (यथा आयु सीमा में छूट आदि) का उपभोग किया हो।"


इसे लेकर अभ्यर्थियों ने विभिन्न मंचों पर विरोध जताया। जिसके बाद मिर्जापुर निवासी अपना दल (एस) के एमएलसी आशीष पटेल, सीतापुर सदर के विधायक राकेश राठौर आदि ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई लेकिन कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। इसी बीच कुछ अभर्थियों ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में इस मामले की शिकायत कर दी। इस शिकायत पर आयोग के उपाध्यक्ष लोकेश कुमार प्रजापति ने बुधवार को सुनवाई की। 


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