रविवार, 31 अगस्त 2014

113 परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की होगी जांच, टीमें गठित

विकास खंड स्तरीय जांच टीमें सात दिनों के अंदर जिलाधिकारी को सौंपेंगी अपनी जांच रिपोर्ट

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। जिले में 113 परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच के लिए विकास खंड स्तरीय आठ टीमों का गठन किया गया है जो एक सप्ताह के अंदर अपनी जांच रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपेंगी। टीमें विभिन्न कार्यदायी संस्थाओं द्वारा कराए गए निर्माण कार्यों की भौतिक स्थिति और उनकी गुणवत्ता से संबंधित बिन्दुओं पर जांच रिपोर्ट तैयार करेंगी।

जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह ने उक्त बातों की जानकारी दी। जिला सूचना विभाग, सोनभद्र की ओर से जारी विज्ञप्ति में उन्होंने बताया कि जिले में कई विभागों के भवनों के निर्माण कार्यों की समीक्षा करने पर पाया गया कि विभागीय अधिकारियों और कार्यदायी संस्थाओं की सूचनाओं में फर्क है। इसलिए उन सभी निर्माण कार्यों की भौतिक स्थिति और उनकी गुणवत्ता से संबंधित जांच के लिए विकासखंड स्तर पर तीन सदस्यीय टीम का गठन करने का फैसला लिया गया है। सभी टीमें एक सप्ताह के अंदर अपनी जांच रिपोर्ट पेश करेंगी।

विज्ञप्ति के अऩुसार विकास खण्ड राबर्ट्सगंज में 30 परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच के लिए लोक निर्माण विभाग (निर्माण खण्ड दुद्धी) के अधिशाषी अभियंता, खण्ड विकास अधिकारी राबर्ट्सगंज और लोक निर्माण विभाग (निर्माण खण्ड-2) के सहायक अभियंता को नामित किया गया है। वहीं विकास खण्ड चोपन में 19 परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच के लिए लघु सिंचाई विभाग के अधिशाषी अभियंता, खण्ड विकास अधिकारी, चोपन और सहायक अभियंता, लघु सिंचाई विभाग को नामित किया गया है। 

विकास खण्ड घोरावल में 19 परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच के लिए अधिशाषी अभियंता, लोक निर्माण विभाग (निर्माण खण्ड-2), खण्ड विकास अधिकारी, घोरावल और सहायक अभियंता को जिम्मेदारी गयी है। विकास खण्ड नगवां में तीन परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच के लिए अधिशाषी अभियंता, सिंचाई निर्माण खण्ड, खण्ड विकास अधिकारी, नगवां और सहायक अभियंता को नामित किया गया है। 

विकास खण्ड चतरा में आठ परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच के लिए अधिशाषी अभियंता, लोक निर्माण विभाग (प्रान्तीय खण्ड), खण्ड विकास अधिकारी, चतरा और सहायक अभियंता करेंगे। विकास खण्ड बभनी में आठ परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच बंधी प्रखंड के अधिशाषी अभियंता, खण्ड विकास अधिकारी, बभनी और सहायक अभियंता द्वारा की जाएगी। 

विकास खण्ड म्योरपुर में छह परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच अधिशाषी अभियंता, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा, खण्ड विकास अधिकारी, म्योरपुर और सहायक अभियंता द्वारा की जाएगी। इसी प्रकार से दुद्धी/म्योरपुर में 20 परियोजनाओं के तहत हुए निर्माण कार्यों की जांच अधिशाषी अभियंता, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा, खण्ड विकास अधिकारी दुद्धी/म्योरपुर और सहायक अभियंता, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा द्वारा की जाएगी।


उन्होंने बताया कि सभी जांच टीमें अपनी जांच रिपोर्ट जिला अर्थ एवं संख्याधिकारी को सात सितंबर,2014 तक उपलब्ध कराएंगी और वह उन्हें जिलाधिकारी के सामने पेश करेंगे। जिलाधिकारी ने कार्यदायी संस्थाओं जैसे परियोजना प्रबन्धक, सीएण्डडीएस, राजकीय निर्माण निगम, पैकफेड, उत्तर प्रदेश समाज कल्याण निर्माण निगम, यूपीसीएल को निर्देशित किया है कि वे अपने निर्माण कार्यों से संबंन्धित अभिलेख जांच टीमों को आवश्यक रूप से उपलब्ध करा देवें।

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

कलेक्ट्रेट भवन में होगी ई-गवर्नेंस सेल की स्थापना, मिलेगा 26 सेवाओं का लाभ

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के तहत कलेक्ट्रेट भवन में ई-गवर्नेंस सेल की स्थापना की जाएगी जिसमें 14 कम्प्यूटर सेट और आठ प्रिंटर्स लगेंगे। यह सेल आम जनमानस को 26 सेवाओं का लाभ उपलब्ध कराएगा जिनमें आय प्रमाण-पत्र, जाति प्रमाण-पत्र, निवास प्रमाण-पत्र, खतौनियों की नकल, विधवा पेंशन, वृद्ध/वृद्धा पेंशन, राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना, राशन कार्ड बनाने का कार्य शामिल है। अभी ये सेवाएं जनसेवा केंद्र/लोकवाणी केंद्र से उपलब्ध कराई जा रही हैं।

उक्त जानकारी प्रभारी जिलाधिकारी मनीलाल यादव ने दी। उन्होंने बताया कि सोनभद्र में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के तहत आम जनमानस को जल्द से जल्द 26 सेवाओं का लाभ उपलब्ध कराने के लिए पूरे जनपद में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा रहा है। इसमें एसएसडीजी से सम्बन्धित समस्त सरकारी कार्यालयों में कम्प्यूटर, राउटर, स्विच, ऑन-लाइन यूपीएस तथा प्रिन्टर जैसे अत्याधुनिक उपकरणों को स्थापित किया जा रहा है।


इस बारे में और अधिक जानकारी देते हुए ई-डिस्ट्रिक्ट मैनेजर गौरव शाक्य ने कहा कि सरकार द्वारा ई-गवर्नेंस के क्षेत्र को सोनभद्र में विस्तार देने की मंशा से प्रत्येक तहसील में चार कम्प्यूटर सेट, प्रत्येक ब्लाक में तीन कम्प्यूटर सेट, एसएसडीजी से संबंधित नौ विभागों में दो-दो कम्प्यूटर सेट को स्थापित कर नेट कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी। एसएसडीजी परियोजना के तहत वेरीफाइंग अथॉरिटी जैसे लेखपाल, अमीन, ग्राम पंचायत विकास अधिकारी, एरिया राशनिंग आफिसर आदि उनका इस्तेमाल करेंगे। उन्होंने कहा कि सोनभद्र जिले में सम्पूर्ण डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर 31 अगस्त, 2014 तक विकसित कर दिया जाएगा।

बुधवार, 27 अगस्त 2014

दो सफाईकर्मी समेत ग्राम पंचायत विकास अधिकारी निलंबित

जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। मुख्यालय से सटे ग्राम पंचायत चुर्क के ग्राम पंचायत विकास अधिकारी हफीउल्ला, सफाईकर्मी मदीना और मुराहू लाल को अपने दायित्वों में लापरवाही बरतने के आरोप में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। साथ ही वहां के ग्राम प्रधान अर्जुन कन्नौजिया के खिलाफ विधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

उक्त जानकारी जिला सूचना एवं जन संपर्क विभाग, सोनभद्र की ओर से जारी विज्ञप्ति में दी गई। विज्ञप्ति के मुताबिक जिलाधिकारी ने बुधवार को कलेक्ट्रेट में बताया कि रॉबर्ट्सगंज विकास खंड के ग्राम पंचायत चुर्क के ग्राम प्रधान और वहां कार्यरत कर्मचारियों की काफी शिकायतें मिल रही थीं।

पिछले दिनों डीपीआरओ एमपी दुबे से उन शिकायतों की जांच कराई गई। डीपीआरओ की जांच में ग्राम पंचायत विकास अधिकारी हफीउल्ला द्वारा ग्राम प्रधान अर्जुन कन्नौजिया की मिलीभगत से अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में लापरवाही बरतने का मामला सच पाया गया।

ग्राम पंचायत विकास अधिकारी हफीउल्ला को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है और डीपीआरओ को उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का आदेश दिया गया है। वहीं ग्राम प्रधान अर्जुन कन्नौजिया को नोटिस जारी कर उनके खिलाफ विधिक कार्रवाई करने की बात कही गई है। इसके अलावा चुर्क के सफाईकर्मियों मदीना और मुराहू लाल को भी अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतने के आरोप में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।


जिलाधिकारी ने जिले के नागरिकों, मीडिया के पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, स्वयंसेवी संगठनों के पदाधिकारियों और बुद्धजीवियों से अपेक्षा की है कि वे सरकारी योजनाओं, विकासपरक कार्यक्रमों के क्रियान्वयन/निर्माण में कोई कमी पाते हैं तो स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार अधिकारियों/खण्ड विकास अधिकारियों/ उप-जिलाधिकारियों/ कार्यदायी संस्थाओं के जिला स्तरीय अधिकारियों को सूचित करें ताकि समय रहते उसमें सुधार हो सके।

आश्रम पद्धति आवासीय विद्यालय में छात्र की मौत, उपजिलाधिकारी करेंगे जांच

वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो

सोनभद्र। जनपद के हाथी नाला थाना क्षेत्र के जवारीडाढ़ स्थित आश्रम पद्धति आवासीय विद्यालय में गत 27 अगस्त की रात एक छात्र की मौत हो गई। इसे लेकर स्थानीय लोगों ने मौके पर पहुंचे आलाधिकारियों का घेराव किया। अधिकारियों की ओर से मामले की मजिस्ट्रियल जांच के आश्वासन पर वे शांत हुए। फिलहाल प्रभारी जिलाधिकारी मनीलाल यादव ने मामले का संज्ञान लेते हुए सदर तहसील के उप-जिलाधिकारी राजेंद्र प्रसाद तिवारी को मजिस्ट्रियल जांच की जिम्मेदारी सौंप दी है। उन्हें 15 दिनों के अंदर अपनी जांच आख्या जिला प्रशासन को उपलब्ध कराना है।
जानकारी के मुताबिक बीती रात जवारीडाढ़ स्थित आश्रम पद्धति आवासीय विद्यालय में कक्षा तीन में पढ़ने वाले छात्र उमेश की मौत हो गई। वह तीन दिनों से बीमार था और खाना भी नहीं खा रहा था। सूत्रों की मानें तो उमेश की बीमारी की जानकारी होने पर परिजन उसे लेने विद्यालय पहुंचे थे लेकिन अध्यापक ने उसे घर ले जाने नहीं दिया।

बीती रात उसकी हालत बिगड़ गई और अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई। उसके मौत की सूचना भी परिजनों को काफी देर से दी गई। इसकी जानकारी होने पर मृतक छात्र के परिजनों समेत स्थानीय लोगों ने विद्यालय में जमकर बवाल काटा। उन्होंने मौके पर पहुंचे आलाधिकारियों का घेराव भी किया।

उन्होंने आरोप लगाया कि उमेश की मौत इलाज के अभाव में हुई है। इतना ही नहीं विद्यालय के अस्सी फीसदी बच्चे कुपोषित हैं और उन्हें उनकी सेहत के अऩुसार विद्यालय में भोजन भी नहीं मिलता है। इसके अलावा विद्यालय में चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा रहता है।

इस मामले की जानकारी होने पर जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह ने प्रकरण की मजिस्टियल जांच कराने की बात कही है। उन्होंने स्वीकार किया कि छात्र उमेश की मौत अस्पताल ले जाते समय हुई है।  


शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

सोनभद्र खनिज विभाग ने एक साल में बढ़ा ली 100 गुनी कमाई

गोलमालः विभाग की कमाई वित्तीय वर्ष 2010-11 में पिछले साल की कमाई 217 करोड़ रुपये से बढ़कर 27 हजार करोड़ रुपये से अधिक हुई।

reported by Shiv Das Prajapati

सोनभद्र। जनपद में मजदूरों और राहगीरों की मौत का इतिहास लिखने वाले खनन के धंधे से राज्य सरकार को हर साल 27 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी होती है। यह दावा जिला खनन विभाग का है।  

उसने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत मांगी गई सूचना में यह दावा किया है। चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने जिला खनिज विभाग की कमाई में वित्तीय वर्ष 2009-10 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2010-11 में अचानक 100 गुने का इजाफा कर दिया है। यूं कहें कि जिला खनिज विभाग की आमदनी 217 करोड़ रुपये से बढ़कर अगले साल कुल 26,271 करोड़ रुपये हो गई। हालांकि इस कमाई का असर धरातल पर कहीं भी दिखाई नहीं दिया। खनन क्षेत्र में अवैध खनन से होने वाले खनन हादसों में ना ही कोई कमी आई और ना ही पत्थर की घातक खदानों में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा ही सुनिश्चित हो पाई।

27 फरवरी, 2012 को बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में शारदा मंदिर के पीछे स्थित पत्थर की एक खदान के धंसने से हुई 10 मजदूरों की मौत का मामला जिला खनिज विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के नतीजे के रूप में जिला प्रशासन और सरकार को मुंह चिढ़ा रहा है। वर्तमान में जनपद में चल रहे अवैध खनन के मामले में भी जिला खनिज विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्यशाली सवालों के घेरे में है।
  
सोनभद्र के तत्कालीन जिला खान अधिकारी एसके सिंह द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत वनांचल एक्सप्रेसको उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग ने वित्तीय वर्ष 2010-11 में राज्य सरकार को 26,271 करोड़ रुपये का राजस्व दिया था जबकि वित्तीय वर्ष 2009-10 में यह आंकड़ा 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये था। इस तरह विभाग की कमाई में एक साल में 100 गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। 
8 अक्टूबर, 2012 को एसके सिंह की ओर से पत्रकार शिव दास प्रजापति को मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार को 27,198 करोड़ रुपये का राजस्व दिया था। वहीं वित्तीय वर्ष 2012-13 के सितंबर तक विभाग ने राज्य सरकार के कोष में 8,669 करोड़ रुपये जमा किया था।

पूर्व में सोनभद्र के तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत शिव दास प्रजापति को ही उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक जिला खनिज विभाग से राज्य सरकार को वित्तीय वर्ष 2009-10 में कुल 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। वित्तीय वर्ष 2008-09 में यह आंकड़ा 120 करोड़ 94 लाख 64 हजार रुपये था। वित्तीय वर्ष 2007-08 में जिला खनिज विभाग ने राज्य सरकार के कोष में 170 करोड़ 90 लाख 25 हजार रुपये जमा किया था। वित्तीय वर्ष 2006-07 में यह आंकड़ा 147 करोड़ 52 लाख 6 हजार रुपये था। 

अगर सोनभद्र से राज्य सरकार को हर साल मिलने वाले औसत राजस्व की बात करें तो उसे वहां के 16 विभागों से कुल 8 अरब रुपये का राजस्व प्राप्त होता है जबकि इसमें केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाला राजस्व शामिल नहीं है। सोनभद्र प्रशासन से सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत जनपद गठन के बाद प्राप्त राजस्व एवं खर्च धन की जानकारी मांगी गई थी। जवाब में जिला प्रशासन की ओर से अपर जिलाधिकारी (वित्त/राजस्व) ने 16 विभागों से प्राप्त होने वाले राजस्व का विवरण उपलब्ध कराया। 

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य सरकार को सोनभद्र से सबसे अधिक राजस्व वाणिज्यकर विभाग और खनिज विभाग से मिलता है। वित्तीय वर्ष 2009-10 में राज्य सरकार को यहां से कुल 774 करोड़ 44 लाख 95 हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। इसमें 372 करोड़ 5 लाख 69 हजार रुपये वाणिज्यकर विभाग और 216 करोड़ 92 लाख 49 हजार रुपये खनिज विभाग से मिले थे।

इनके अलावा विद्युत विभाग से 98 करोड़ 10 लाख 35 हजार रुपये, आबकारी विभाग से 30 करोड़ 4 लाख 94 हजार रुपये, परिवहन विभाग से 19 करोड़ 91 लाख 17 हजार रुपये, स्वास्थ्य विभाग से 15 करोड़ 91 लाख 59 हजार रुपये और वन विभाग से 14 करोड़ 68 लाख, 19 हजार रुपये का राजस्व उत्तर प्रदेश सरकार को प्राप्त हुआ था। राज्य सरकार को राजस्व देने वाले अन्य विभागों में भू-राजस्व, मनोरंजन, नजूल, शिक्षा, चिकित्सा, सिंचाई, लोक निर्माण, मंडी और जिला उद्योग विभाग शामिल हैं। 

जिला प्रशासन के उपरोक्त आंकड़ों में केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाला राजस्व शामिल नहीं है। अगर इसमें उसे शामिल कर लिया जाए तो उपरोक्त आंकड़ा 10 अरब से ज्यादा पहुंच जाएगा। इससे पूर्व के वित्तीय वर्षों के राजस्व पर ध्यान दें तो वर्ष 2008-09 में 2007-08 और 2006-07 में राज्य सरकार को सोनभद्र से क्रमशः 539.1246 करोड़ रुपये, 739.1063 करोड़ रुपये और 584.2617 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था।

                                                          ( यह रिपोर्ट वनांचल एक्सप्रेस के प्रवेशांक में प्रकाशित हो चुकी है।)

रविवार, 17 अगस्त 2014

महज 0.20 फीसदी धनराशि से होगा बीस फीसदी आबादी वाले आदिवासियों का कल्याण

सोनभद्र जिला पंचायत अध्यक्ष अनिता राकेश, बेसिक शिक्षा मंत्री
राम गोविन्द चौधरी, जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह
बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविन्द चौधरी की अध्यक्षता में हुई जिला कार्य योजना समिति की बैठक। 130 करोड़ 25 लाख रुपये के प्रस्तावित परिव्यय को मिली मंजूरी...

written by Shiv Das Prajapati

सोनभद्र। राज्य सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री और जिला प्रभारी राम गोविन्द चौधरी की अध्यक्षता में गत 11 अगस्त को जिला योजना समिति की बैठक स्थानीय कलेक्ट्रेट सभागार में हुई। इसमें वित्तीय वर्ष 2014-15 के लिए 130 करोड़ 25 लाख रुपये के प्रस्तावित परिव्यय (खर्च) को मंजूरी दी गई। हालांकि जिले की करीब इक्कीस फीसदी आबादी वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए परिव्यय की यह संरचना एक बार फिर निराश करने वाली है। 

समिति ने उनके कल्याण के लिए महज 26 लाख 96 हजार रुपये के खर्च को ही मंजूरी दी है जो कुल परिव्यय का महज 0.20 फीसदी है। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग की पुत्रियों की शादी और उनकी बीमारी के इलाज की 10 लाख की वह धनराशि भी शामिल है जो उन्हें अनुदान के रूप में मिलती है। इस वर्ग में अत्याचार से पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता मुहैया कराने के लिए समिति ने एक लाख रुपये के खर्च को मंजूरी दी है जो उनकी आबादी और उन पर होने वाले अत्याचार के अनुपात में काफी कम है।


जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह और मुख्य विकास अधिकारी महेन्द्र सिंह की ओर से जारी जिला योजना संरचना वर्ष 2014-15 में उल्लेखित आंकड़ों के मुताबिक, जिला योजना समिति द्वारा बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान अनुसूचित जनजाति कल्याण के लिए कुल एक करोड़ उन्नीस लाख 80 हजार रुपये का परिव्यय अनुमोदित किया गया था। इसमें वित्तीय वर्ष 2012-13 में 23 लाख 96 हजार रुपये और 2013-14 में 23 लाख 96 हजार रुपये का परिव्यय पहले ही अनुमोदित हो चुका है। 

जिला योजना समिति ने पिछले दिनों वित्तीय वर्ष 2014-15 में राज्य के संसाधनों से 26 लाख 96 हजार रुपये के प्रस्तावित परिव्यय को मंजूरी दी। इसमें 12 लाख 96 हजार रुपये कक्षा 1-10 तक के छात्रों की छात्रवृत्ति पर खर्च होंगे जबकि तीन लाख रुपये छात्रों के यूनिफॉर्म/साइकिल पर खर्च किए जाएंगे। अत्याचार से पीड़ित अनुसूचित जनजाति वर्ग के परिवार को आर्थिक सहायता मुहैया कराने के लिए इस साल एक लाख रुपये का आबंटन किया गया है। वहीं, इस वर्ग के लिए संचालित पुत्रियों की शादी-बीमारी योजना के लिए दस लाख रुपये के खर्च को मंजूरी दी गई है। 

गौरतलब है कि जिले की आबादी में अनुसूचित जनजाति वर्ग का अनुपात 20.67 फीसदी है। वहीं जिले में 22.63 फीसदी आबादी वाले अनुसूचित जाति वर्ग के कल्याण के लिए जिला योजना समिति ने वित्तीय वर्ष 2014-15 में महज दो करोड़ 31 लाख 64 हजार रुपये के प्रस्तावित खर्च को मंजूरी दी है जो 1.78 फीसदी के बराबर है। इसमें से एक करोड़ 39 लाख 64 हजार रुपये अनुसूचित जाति वर्ग के प्रिमैट्रिक छात्रों की छात्रवृत्ति पर खर्च किए जाएंगे और 80 लाख रुपये उनकी पुत्रियों की शादी समेत बीमारी के इलाज के लिए खर्च किए जाएंगे। 

इस वर्ग के अत्याचार पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए 12 लाख रुपये के खर्च को मंजूरी दी गई है। इस वित्तीय वर्ष में आश्रम पद्धति विद्यालय की स्थापना, निर्माण, विस्तार और रख-रखाव के लिए जिला योजना समिति ने कोई धन आबंटित नहीं किया है। बुक बैंक की स्थापना के लिए भी हर बार की तरह इस बार भी व्यवस्था नहीं की गई है। 

सरसठ साल की आजादी और हम

राजनेता और जनप्रतिनिधि पूंजीघरानों के एजेंट के रूप में कार्य करते नजर आ रहे हैं। इस वजह से देश के विभिन्न इलाकों में एक भारत दूसरे भारत से जंग कर रहा है... 

written by Shiv Das Prajapati

जादी! रहने, खाने, पीने, घूमने, जीने, रोजगार करने और बोलने की आजादी! कुछ ऐसी ही आजादी की सोच हर देश के हर आम नागरिक की होती है। भारतीयों की भी है। हालांकि वे अपनी आजादी को लेकर अभी भी विभिन्न खेमों में बंटे हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो भारत को अंग्रेजों की दासता से आजाद मानते हैं लेकिन नीतिगत मामलों में उसे आज भी गुलाम मानते हैं। 

विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था का दंभ भरने वाली भारतीय सरकारों की नीतियां लोकतांत्रिक न होकर पूंजीगत होती जा रही हैं। सरकार की जनहित नीतियों में पूंजीपतियों का दखल बढ़ता जा रहा है। इससे देश के विभिन्न इलाकों में आम नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है। पीड़ितों और शोषितों की आवाज पूंजी घरानों और सामंती सोच के नौकरशाहों के आगे फीकी पड़ती जा रही है। 

राजनेता और जनप्रतिनिधि पूंजीघरानों के एजेंट के रूप में कार्य करते नजर आ रहे हैं। इस वजह से देश के विभिन्न इलाकों में एक भारत दूसरे भारत से जंग कर रहा है। अंग्रेजों के शासन से भारत को आजाद हुए सरसठ साल हो चुके हैं लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में आज भी आधे से ज्यादा आबादी भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकारों के लिए सत्ता से लोहा ले रही है। कभी दो वक्त की रोटी के लिए तो कभी खुद की हिफाजत के लिए। कभी इंसाफ के लिए तो कभी भारतीय लोकतंत्र की सड़ांध (भ्रष्टाचार) को जड़ से मिटाने के लिए। 

क्या स्वतंत्रता संग्राम के रणबांकुरों ने ऐसी ही आजादी की कल्पना की थी? संभवतः नहीं। उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की होगी जहां गांव की गलियों से लेकर महानगरों की चकाचौंध तक हर व्यक्ति खुद को आजाद महसूस कर सके। उसे दो वक्त की रोटी के लिए चोरी ना करना पड़े। इंसाफ के लिए उसे बंदूक उठाकर जंगलों में न भटकना पड़े। सांप्रदायिक कट्टरता का भय उसे अपना आशियाना छोड़ने को मजबूर ना करे। हलक की प्यास बुझाने के लिए खुद की जमीं और नदियों का पानी बीस रुपये लीटर ना खरीदना पड़े। और, एक भारत दूसरे भारत से संघर्ष करता ना दिखे। 

आजादी के बाद देश की कमान संभालने वाले राजनेताओं ने क्या उन रणबांकुरों के सपनों को साकार करने की कोशिश की? अगर हां तो फिर क्यों देश की आजादी के सरसठ साल बाद भी देश की चालीस फीसदी आबादी भूखमरी की कगार पर है? कहीं न कहीं देश की कमान संभालने वाले मौकापरस्त राजनेताओं ने अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में लापरवाही बरती है। उनकी इन लापरवाहियों के लिए हम आम नागरिक भी जिम्मेदार हैं क्योंकि समय-समय पर सत्ता की कमान हमने ही उनके हाथों में दिया।  

क्या स्वतंत्रता दिवस के इस अड़सठवें अवसर पर हम उनकी गलतियों का जिम्मा ले सकते हैं? अगर नहीं तो हमें देश की आजादी के इस त्यौहार को मनाने का कोई हक नहीं है। वास्तव में हमें उनकी लापरवाहियों का जिम्मा लेना होगा और उनसे सीख लेते हुए एक सच्चे लोकतांत्रिक देश के सपने को साकार करने के लिए खुद आगे आना पड़ेगा। इस ऐतिहासिक पर्व पर इसी संकल्प के साथ स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत मुबारकबाद!

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

मीडिया में राजनीतिक दलों और औद्योगिक घरानों के प्रवेश पर लगे रोकः ट्राई

धार्मिक संस्थाओं, शहरी-स्थानीय पंचायती राज संस्थाओं और सार्वजनिक धन से चलने वाली दूसरी संस्थाओं, केन्द्र और राज्य सरकारों के मंत्रालयों, विभागों, कंपनियों, उपक्रमों, संयुक्त उद्यमों और सरकारी धन से चलने वाली कंपनियों और सहायक एजेंसियों को प्रसारण और टीवी चैनल वितरण क्षेत्र में आने से रोकने की सिफारिश भी की...

वनांचल न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने समाचारों और विचारों के निष्पक्ष प्रसार के लिए टेलीविजन और समाचार-पत्र व्यवसाय के क्षेत्र में राजनीतिक दलों और औद्योगिक घरानों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने की सिफारिश की है।

ट्राई ने गत दिनों मीडिया स्वामित्व से संबंधित मुद्दों पर अपनी अनुशंसाओं को जारी करते हुए टीवी औऱ प्रिंट मीडिया के लिए एकल स्वतंत्र मीडिया विनियामक प्राधिकरण की वकालत की। सिफारिशों में कहा गया है कि विनियामक संस्था में मीडिया के लोगों के साथ ही समाज के विभिन्न क्षेत्रों के प्रख्यात लोगों को शामिल किया जाना चाहिए लेकिन संस्था में मीडिया के लोगों का बहुल नहीं होना चाहिए।

ट्राई ने प्रस्तावित विनियामक को 'पेड न्यूज', 'प्राइवेट ट्रीटीज' और संपादकीय स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दों की जांच, उन पर नियंत्रण करने और जुर्माना लगाने का अधिकार देने का प्रस्ताव किया है। 'प्राइवेट ट्रीटीज (निजि समझौतों)' के कारण उत्पन्न होने वाले हितों के टकराव के संबंध में ट्राई ने सुझाया है कि इस प्रथा को भारतीय प्रेस परिषद के आदेशों द्वारा या विधायी नियमों द्वारा तत्काल प्रभाव से रोका जाना चाहिए।

ट्राई ने कहा है कि एडवर्टोरियल या के कोई भी ऐसा कंटेंट जिसके लिए पैसा लिया गया है, में मोटे अक्षरों में अस्वीकरण (डिसक्लेमर, ये बताते हुए कि ये पेड कंटेंट है) का प्रिंट किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। अस्वीकरण का छोटे और पतले अक्षरों में प्रिंट किया जाना अपर्याप्त है। इस संबंध में शीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए। 

पेड न्यूज़ के संबंध में ट्राई का सुझाव है कि इसके लिए दोनो पक्षों को उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। यदि कोई सांसद या विधायक अपनी कवरेज के लिए मीडिया को पैसा देता है और ऐसी कवरेज को 'न्यूज' के रूप में बदल दिया जाता है तो इसके लिए मीडिया और संबंधित सांसद या विधायक दोनों उत्तरदायी होंगे।

ट्राई के अनुसार संपादकीय स्वतंत्रता को हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यदि मालिकान के हस्तक्षेप के कारण किसी कंटेंट की सत्यता को क्षति पहुंचती है या मालिकान द्वारा थोपी गयी सेन्सरशिप जनता के सूचना के अधिकार का अतिक्रमण करती है तो संपादक या पत्रकार को ऐसे मामलों को विनियामक प्राधिकरण के सामने उठाने का तथा उपचार पाने का अधिकार होना चाहिए। 

ट्राई ने कहा है कि राजनीतिक दलों, धार्मिक संस्थाओं, शहरी-स्थानीय पंचायती राज संस्थाओं और सार्वजनिक धन से चलने वाली दूसरी संस्थाओं, केन्द्र और राज्य सरकारों के मंत्रालयों, विभागों, कंपनियों, उपक्रमों, संयुक्त उद्यमों और सरकारी धन से चलने वाली कंपनियों और सहायक एजेंसियों को प्रसारण और टीवी चैनल वितरण क्षेत्र में आने से रोका जाना चाहिए।

यदि ऐसी किसी भी संस्था को प्रसारण और टीवी चैनल वितरण क्षेत्र में आने की अनुमति दी जा चुकी है तो उसे बाहर निकलने का विकल्प दिया जाना चाहिए। उपरोक्त ईकाइयों के प्रत्यायुक्तों (सरोगेट्स) को भी प्रसारण और टीवी चैनल वितरण क्षेत्र में आने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। मीडिया क्षेत्र में व्यावसायिक घरानों के बढ़ते प्रवेश पर ट्राई ने कहा है कि इसमें निहित हितों के टकराव को ध्यान में रखते हुए सरकार और विनियामक को व्यावसायिक घरानों के मीडिया क्षेत्र में प्रवेश पर रोक के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। 

ट्राई ने कहा है कि मीडिया संगठन को अनुज्ञप्ति-प्रदाता (लाइसेंसर) और विनियामक को अपने दस बड़े विज्ञापनदाताओं, विज्ञापन दरों और अभिदान(सब्सक्रिप्शन) और विज्ञापनों से होने वाली आय की जानकारी देनी होगी। मीडिया क्षेत्र में स्वामित्व संबंधी अपनी सिफारिशों में ट्राई ने कहा है कि समाचार और समसामयिक विषय अति महत्व के होते हैं तथा विचारों की बहुलता और विविधता से इनका सीधा सरोकार होता है, इसलिए मीडिया क्षेत्र की कंपनियों के बीच पारस्परिक हिस्सेदारी के नियमों को बनाते समय इसे ध्यान में रखकर विचार किया जाना चाहिए।

ट्राई ने यह भी कहा है कि सरकार और प्रसार भारती के बीच दूरी रखने के उपायों को मजबूत बनाना चाहिए और इसकी कामकाजी स्वतंत्रता और स्वायत्ता को बनाये रखने के उपाय किये जाने चाहिए। मीडिया के क्षेत्र में व्यावसायिक घरानों के प्रवेश पर पाबंदी के संबंध में टाई ने कहा है इसमें नियंत्रण संबंधी प्रावधानों के तहत किसी व्यावसायिक कंपनी द्वारा मीडिया कंपनी में शेयर भागीदारी या कर्ज की मात्रा को सीमित करने की व्यवस्थाकी जा सकती है।