गुरुवार, 21 जनवरी 2016
ROHIT VEMULA: अनुसूचित जाति वर्ग से ही है रोहित
आंध्र प्रदेश के राजस्व विभाग की ओर से जारी प्रमाण-पत्र में रोहित वेमुला की
जाति माला।
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित वेमुला की खुदकुशी
का मामला विश्वविद्यालय प्रशासन और केंद्र की सत्ताधारी भाजपा के लिए गले का फांस
बन गया है। इससे बचने के लिए एक रोहित वेमुला की जाति पर सवाल खड़ा कर रहा है तो
दूसरा अपने गैर-जिम्मेदार मंत्री की जाति उजागर कर अपनी कारस्तानियों पर मिट्टी
डालने की कोशिश में जुटा है। हालांकि रोहित वेमुला का जाति प्रमाण-पत्र सामने आ
गया है जिसमें साफ लिखा है कि वह अनुसूचित जाति वर्ग के तहत आता है।
आंध्र प्रदेश के राजस्व विभाग द्वारा पिछले साल 16 जून को जारी समुदाय एवं
जन्म प्रमाण-पत्र में साफ लिखा है कि गुंटूर मंडल निवासी वेमुला रोहित चक्रवर्ती
पुत्र श्री वेमुला नागा मणि कुमार माला समुदाय से है जिसे 1950 के भारतीय संविधान
आदेश, 1956 के अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों (सुधार) की आदेश सूची एवं 1976
के अनुसूचित जनजातियों (सुधार) अधिनियम-1976 के तहत अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान
किया गया है। प्रमाण-पत्र के अनुसार रोहित वेमुला की जन्म तिथि 30 जनवरी, 1980 है।
गौरतलब है कि रोहित वेमुला की मां राधा वेमुला अनुसूचित जाति वर्ग की हैं और
उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार अगर बच्चे का जन्म अनुसूचित जाति वर्ग या ऐसे
माहौल में हुआ है तो उसे अनुसूचित जाति वर्ग का ही माना जाएगा।
गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई में अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन से जुड़े रोहित वेमुला चक्रवर्ती और उसके साथियों ने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में 'मुजफ़्फ़रनगर अभी बाकी है' फिल्म का प्रदर्शन किया। इसके विरोध में एबीवीपी (एचसीयू) अध्यक्ष एन.सुशील कुमार ने फेसबुक पर उन्हें गुंडा कहा। बाद में उसने इसपर लिखित माफी मांगी लेकिन अगले दिन उसने रोहित और साथियों पर कथित तौर पर कमरे में हमला करने का आरोप लगाकर शिकायत दर्ज कराई। इसे शिकंदराबाद से सांसद और केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय से भी किया। इसे संजीदगी से लेते हुए दत्तात्रेय ने केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन को जातिवादी, चरमपंथी और राष्ट्रवाद विरोधी राजनीति का गढ़ कहा।
इसके बाद मंत्रालय ने सितंबर-अक्टूबर महीनों में छह सप्ताह के अंदर विश्वविद्यालय प्रशासन को पांच पत्र लिखे जिसमें उन्होंने रोहित और उसके साथियों पर कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी। इसी दौरान सुशील की मां ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी। इससे दबाव में आए विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोहित और उसके साथियों को विश्वविद्यालय के हास्टल में रहने समेत अन्य किसी प्रकार की गैर-शैक्षिक गतिविधियों में शामिल होने पर रोक सगा दी। इसके बाद रोहित और उसके साथ निष्कासित अन्य चार शोधार्थी विश्वविद्यालय के बाहर टेंट लगाकर विरोध दर्ज कराने लगे। रविवार को रोहित ने व्यथित होकर हास्टल के कमरे में जाकर खुदकुशी कर ली थी।
बुधवार, 20 जनवरी 2016
ROHIT VEMULA: तीसरे दिन भी प्रदर्शन जारी, हैदराबाद पहुंचे येचुरी
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में हो रहा प्रदर्शन। फोटो साभारः फेसबुक |
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जाएंगे हैदराबाद
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की
खुदकुशी को लेकर उठा सियासी बवंडर थमने का नाम नहीं ले रहा है। हैदराबाद में तीसरे
दिन भी प्रदर्शन जारी रहा। सीपीआईएम के नेता सीताराम येचुरी और वाईएसआर कांग्रेस
के नेता वाई एस जगनमोहन रेड्डी आज प्रदर्शनकारियों के मिलने हैदराबाद पहुंचे। वहीं
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हैदराबाद जाने की तैयारी में हैं।
हालांकि वह कब जाएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है।
बता दें कि एबीवीपी (एचसीयू) के अध्यक्ष नंदानम सुशील कुमार की कथित पिटाई को लेकर
केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने पिछले साल मानव संसाधन विकास
मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा था। इसके बाद उन्होंने हैदराबाद केंद्रीय
विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर रोहित वेमुला और उसके साथियों के खिलाफ
कार्रवाई करने की बात कही थी। इसके बाद रोहित और उसके चार साथियों को हास्टल से
निकाल दिया गया था और वे विश्वविद्यालय के बाहर टेंट लगाकर अपना विरोध जता रहे थे।
रविवार को रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली थी।
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वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्लीः हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की
खुदकुशी का मामला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मुश्किल में डाल सकता है। पूर्व
मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य संजय पासवान ने खुद की पार्टी को
कटघरे में खड़ा कर दिया है। संजय पासवान ने ट्वीट किया,
“सत्ता की राजनीति के
भागीदारों को रोहित वेमुला प्रकरण को गंभीरता से लेना चाहिए या फिर विरोध,
बदला, विद्रोह और प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार रहना चाहिए।”
उन्होंने स्पष्ट रूप से पार्टी का नाम नहीं लिया है लेकिन उनके ट्वीट से साफ
जाहिर है कि वे केंद्र की भाजपा को लेकर सहज नहीं है। पासवान ने लोकसभा चुनाव-2014
में पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चे की कमान संभाली
थी।
रोहिथ वेमुलाः अपने शब्दों के साथ हमें अकेला छोड़ दिया
(सांप्रदायिक और ब्राह्मणवादी ताकतों के खिलाफ आंदोलनरत
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहिथ वेमुला की आत्महत्या पर यह
लेख ‘द हिंदू’ में प्रकाशित है। इसे
अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया है रेयाज उल हक ने। उन्हीं के ब्लॉग ‘हाशिया’ से यह लेख लिया गया है। - संपादक)
मीना कंदसामी
एक दलित छात्र की खुदकुशी बच निकलने की एक अकेले इंसान की हिकमत नहीं होती,
यह उस समाज को शर्मिंदा करने की कार्रवाई होती है,
जो उसके साथ खड़े न रह सका. रोहिथ वेमुला की मौत उनके
द्वारा जातिवादी, सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ चलाए जा रहे एक संघर्ष के एक
ऐसे उदासी भरे अंजाम के रूप में सामने आई है, जिसका पहले से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था. उन पांच दलित
अध्येताओं में से एक रोहिथ अपने आखिरी पल तक मजबूती से डटे रहे,
जिन्हें दक्षिणपंथी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्धी
परिषद द्वारा लगाए गए आरोपों पर हैदराबाद विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था.
यहां तक कि मौत की तरफ धकेले जाते हुए भी रोहिथ अपने सबसे जुझारू छात्रों की
असुरक्षाओं को हमें दिखाते गए, और हमारी शैक्षिक व्यवस्था की असली दशा को भी उजागर किया:
दलित छात्रों को निकालने के दशकों पुराने इतिहास वाला एक वाइस चांसलर,
दक्षिणपंथी हिंदू ताकतों की तरफ से बदला लेने के लिए
केंद्रीय मंत्रियों की भागीदारी, पूरी प्रशासनिक मशीनरी का शासक राजनीतिक दलों की कठपुतली बन
जाना और सामाजिक बेपरवाही के त्रासद नतीजे.
इन पांच दलित छात्रों को निकाले जाने से बढ़ कर इसकी कोई कारगर मिसाल नहीं मिल
सकती कि जाति व्यवस्था कैसे काम करती है. हालांकि उनके निकाले जाने की वजह से दलित
बहुजन छात्र समुदाय के बीच में एकजुटता की भावना मजबूत हुई थी,
लेकिन उनको निकाले जाने की कार्रवाई ने खौफनाक बातों की याद
दिला दी थी. ठीक मनुस्मृति द्वारा अवर्णों (यानी दलितों) को जातीय दायरों से बाहर
रहने के फरमान की तरह ही, इस सजा में ही वे सारे प्रतीक शामिल थे जिनमें जातीय सफाई
की अवधारणा छुपी हुई है.
शिक्षा अब अनुशासित करनेवाला एक उद्यम बन गई है,
जो दलित छात्रों के खिलाफ काम कर रही है: वे लगातार
रस्टिकेट कर दिए जाने, हमेशा के लिए निकाल दिए जाने, बदनाम हो जाने या पढ़ाई रुक जाने के खौफ में रहते हैं. एक
ऐसे समाज में जहां छात्रों ने उच्च शिक्षण संस्थानों में पहुंचने के अपने अधिकार
को आरक्षण की नीतियों की सक्षम बनाने वाली, सुरक्षा देने वाली धारणा के तहत यकीनी बनाने के लिए व्यापक संघर्ष
किया है,
किसी ने भी इस बात पर रोशनी डालने का साहस नहीं किया है कि
इनमें से कितने छात्रों को इसकी इजाजत मिलती है कि वे डिग्री हासिल करके इन
संस्थानों से लौटें, और कितनों को पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ती है और इस
तरह वे अवसाद के स्थायी शिकार बन जाते हैं और कितने आखिरकार मौत के अंजाम तक
पहुंचते हैं. रोहिथ वेमुला जैसे दलित छात्र एक डॉक्टरल डिग्री के लिए विश्वविद्यालयों में
दाखिल हो पाते हैं, यही उनकी समझदारी, जिद और जातीय भेदभाव के खिलाफ उनके अथक संघर्ष की निशानी
होती है,
वह भेदभाव जो पहले दिन से ही उनको तबाह कर देने की कोशिश
करता है.
जातीय वर्चस्व से भरी हुई पाठ्य पुस्तकें, अलगाव को और भी मजबूत कर देने वाला कॉलेज कैंपसों का माहौल,
अपने प्रभुत्वशाली जातीय रुतबे पर गर्व करनेवाले सहपाठी,
उनको एक बदतर भविष्य की तरफ धकेलने वाले शिक्षक जो इस तरह
उनके नाकाम रहने की अपनी भविष्यवाणी को सच साबित करते हैं –
ये सब दलित छात्रों के लिए पार करने के लिहाज से नामुमकिन
चुनौतियां हैं. बौद्धिक श्रेष्ठता के विचार में रंगी हुई जाति पर जब अकादमिक
दुनिया के दायरों में पर अमल किया जाता है, तो वह जिंदगियों को खा जाने और जानें लेने वाला एक ज़हर बन
जाती है. क्लासरूम जाति के खिलाफ प्रतिरोध और उसके खात्मे की जगहें बनने की बजाए
उन लोगों की बेकाबू जातीय ताकत की दावेदारी बन जाते हैं जो द्विज होने और ज्ञान के
संचरण के पवित्र धागों में यकीन करते हैं और जो अपनी पैदाइश से ही यथास्थिति को
कायम रखने को मजबूर हैं.
बहिष्कार के डर से अपनी पहचान छुपाए रखनेवाले उत्पीड़ित पृष्ठभूमियों के उन
थोड़े से छात्रों की असली पहचान उजागर होने पर सजा दी जाती है –
मिथकीय कर्ण की तरह उन्हें जानलेवा नाकामी का अभिशाप दिया
जाता है. अपने बूते उभरनेवाले दलित छात्रों को, जिनकी पहचान सबके सामने पहले से ही जाहिर होती है और जो
किंवदंतियों के एकलव्य बन जाते हैं, जिंदा छोड़ दिया जाता है लेकिन उन्हें अपनी कला को अमल में
लाने में नाकाम बना दिया जाता है. ऐसा अकेले छात्रों के साथ ही नहीं होता,
क्योंकि जातीय सत्ता के इन गलियारों में दलित-बहुजन फैकल्टी
भी अलग-थलग कर दिए जाने का सामना करते हैं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी
(आईआईटी),
मद्रास में अपनी मां के संघर्ष को मैंने जितने आदर से देखा
है,
उतनी ही बेचारगी के साथ मैंने इस औरत को टूटते और बिखरते
हुए भी देखा है, जिसे मैं प्यार करती हूं. अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अन्य पिछड़ा
वर्गों के फैकल्टी मेंबरों का हमारे आईआईटी/भारतीय प्रबंधन संस्थानों और
विश्वविद्यालयों में नाम भर का प्रतिनिधित्व इस जातीय भेदभाव को और बढ़ा देता है,
क्योंकि इससे मिलती जुलती पृष्ठभूमियों से आने वाले छात्रों
को एक ऐसा सहायता देने वाला समूह तक नहीं मिलता, जो उनकी मुश्किलों के बारे में सुन सके या उन्हें सलाह दे
सके.
ब्राह्मणवादी प्रोफेसरों के एक इंटरव्यू पैनल के सामने,
जिनकी अदावत एक फायरिंग दस्तों की याद दिलाती है,
एक छात्र कैसे अपने बूते पर टिका रह सकता या सकती है?
ये प्रोफेसर, जिन्होंने एक तरफ हो सकता है कि न्यूक्लियर फिजिक्स में
महारत हासिल कर ली हो, लेकिन दूसरे तरफ अपने प्यारे जातीय पूर्वाग्रहों को
पालते-पोसते रहते हैं. और ये अकादमिक दुनिया में जातीय आतंकवाद की समस्या के सिर्फ
एक पहलू का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. जब इसका मेल एबीवीपी जैसे दक्षिणपंथी
राजनीतिक छात्र गिरोहों से होता है तो यह एक खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है.
हमारे विश्वविद्यालय आधुनिक कत्लगाह बन गए हैं. सभी दूसरे जंग के मैदानों की
तरह,
उच्च शिक्षा के संस्थान भी जातीय भेदभाव के साथ साथ दूसरी
चीजों में भी महारत हासिल कर रहे हैं. वे छात्राओं और महिला फैकल्टी के यौन
उत्पीड़न के लिए बदनाम हो चुके हैं, कहानियां जो दबा दी जाती हैं, कहानियां जिन्हें उन शिकायतकर्ताओं का चरित्र हनन करने के
लिए तोड़-मरोड़ दिया जाता है जो विरोध करती हैं, आवाज उठाती हैं और जो अपने साथ धमकी से,
मजबूरी से या जबरदस्ती सेक्स करने की किसी भी कोशिश को
कारगर नहीं होने देतीं. ठीक जिस तरह से रोहिथ की खुदकुशी ने चुप्पियों को तोड़ते
हुए जाति की हत्यारी पहचान उजागर की है, एक दिन हम उन औरतों की कहानियां भी सुनेंगे,
जिन्हें इन एकाकी टापुओं से मौत के समंदर में ले जाया गया.
हमने हैदराबाद विश्वविद्यालय के मामले में जो देखा है वह जातीय श्रेष्ठता और
राजनीतिक सहभागिता का खतरनाक मेलजोल है. छात्रों को धमकाने और दबाने में राज्य
मशीनरी और खासकर पुलिस बल की भूमिका कैंपसों में दमन के एक पुराने और आजमाए हुए
तरीके के रूप में स्थापित हुई है. आईआईटी मद्रास में आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल
की मान्यता खत्म करने के बाद के दिनों में वर्दी वाले मर्द और औरतें कैंपस में हर
जगह दिन रात मौजूद रहते थे और इसके दरवाजों की पहरेदारी करते थे. (यह फैसला काफी
विरोध के बाद वापस लिया गया था.) अब इसी तरह हैदराबाद कैंपस में हथियारबंद पुलिस
की ऐसी ही भारी तैनाती और धारा 144 के तहत कर्फ्यू लगा दिया गया है.
एक वादा जिस पर अमल करना है
रोहिथ, तुमने कार्ल सेगान की तरह एक विज्ञान लेखक बनने का अपना एक सपना अपने पीछे
छोड़ा है और हमें सिर्फ अपने शब्दों के साथ अकेला कर गए हो. अब हमारे हर शब्द में
तुम्हारी मौत का वजन है, हर आंसू में तुम्हारा अधूरा सपना है. हम धमाके को तैयार
सितारों का वह समूह बन जाएंगे, जिसके बारे में तुमने बात की है,
वह समूह जिसकी जबान पर जाति की इस उत्पीड़नकारी व्यवस्था की
दास्तान होगी. इस मुल्क के हर विश्वविद्यालय में, हर कॉलेज में, हर स्कूल में, हमारे हर नारे में तुम्हारे संघर्ष का जज्बा भरा होगा.
डॉ.
आंबेडकर ने जाति को एक ऐसा शैतान बताया है, जो आप जिधर भी रुख करें आपका रास्ता काटेगा और भारतीय
शैक्षिक संस्थानों के अग्रहारों के भीतर हमारी शारीरिक मौजूदगी में ही जाति के
उन्मूलन के संदेश निहित होने चाहिए. अकादमिक दुनिया पर अपनी दावेदारी ठोकनेवाले एक
दलित,
एक शूद्र, एक आदिवासी, एक बहुजन, एक महिला से अपना सामना होने पर हरेक घिनौनी जातीय ताकत को
घबराने दो, उन्हें इसका अहसास होने दो कि हम यहां पर एक ऐसी व्यवस्था का खात्मा करने आए
हैं,
जो हमें खत्म करने की पुरजोर कोशिश करती रही है,
कि हम यहां पर उन लोगों के लिए बुरे सपनों की वजह बनने आए
हैं,
जिन्होंने हमसे हमारे सपनों को छीनने की हिम्मत की है.
उन्हें इसका अहसास हो जाने दो कि वैदिक दौर, पवित्र ग्रंथों को सुन लेने वाले शूद्र के कानों में पिघला
हुआ सीसा डालने का दौर, वंचित किए गए ज्ञान को अपनी जबान पर लाने का साहस करने
वालों की जबान काट लेने का दौर बीत चुका है. उन्हें यह समझ लेने दो कि हमने
शिक्षित बनने, संघर्ष करने और संगठित होने के लिए इन गढ़ों-मठों पर धावा बोला है;
हम यहां मरने के लिए नहीं आए हैं. हम सीखने के लिए आए हैं,
लेकिन जाति के शैतानों और उनके कारिंदों को यह बात समझ लेने
दो कि हम यहां पर उन्हें एक ऐसा सबक सिखाने भी आए हैं,
जिसे वे कभी भुला नहीं पाएंगे.
ROHIT VEMULA: जातिवादी एजेंडे की भेंट चढ़ा राहुल, देशव्यापी प्रदर्शन जारी
बंडारू और कुलपति के खिलाफ केस दर्ज। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पहुंचे
हैदराबाद।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का शोध छात्र रोहित वेमुला जातिवादी
सियासतदानों की साज़िश की भेंट चढ़ गया और अब वे जांच कमेटियां बनाकर उसकी खुदकुशी
से उठी आंदोलन की आवाज़ को दबाने की कोशिश में जुट गए हैं। वहीं दूसरी ओर विरोधी
पार्टियों के नेता अपना उल्लू सीधा करने में लग गए हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल
गांधी मंगलवार को धरनारत छात्रों से मिलने हैदारबाद पहुंचे और मृतक रोहित वेमुला
के परिजनों से भी मिले। बसपा, तृणमूल कांग्रेस आदि पार्टियों ने अपने-अपने प्रतिनिधियों
को हैदराबाद भेज दिया है तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी केंद्र
की बीजेपी सरकार पर निशाना साधा। वहीं राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने कहा कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी भाजपा-आरएसएस के घोर-जातिवादी एजेंडे की साजिश का नतीजा है।
दूसरी ओर हैदराबाद पुलिस ने दबाव में आकर रोहित के दोस्त प्रशांत की शिकायत पर केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय, भाजपा विधायक एन रमाचंदर, विश्वविद्यालय के कुलपति पी. अप्पा राव और एबीवीपी (एचसीयू) अध्यक्ष एन सुशील कुमार के खिलाफ गचिबाउली पुलिस थाने में झूठा आरोप लगाने और आत्महत्या के लिए उकसाने की
धारा के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया है। साथ ही उसने रोहित वेमुला के शव का अंतिम
संस्कार उनके परिजनों की सहमति के बिना ही कर दिया। वहीं केंद्रीय श्रम और रोजगार
राज्य मंत्री दत्तात्रेय ने खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोपों से इनकार कर दिया है।
बंडारू दत्तात्रेय पर लगे आरोपों की जांच के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री स्मृति
इरानी ने जांच समिति का गठन किया है। मामले को लेकर देश के विभिन्न इलाकों में
सोमवार को विरोध प्रदर्शन हुए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने शोध छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले को ‘लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और समानता की हत्या’ करार दिया है। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘यह आत्महत्या नहीं, हत्या है। यह लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और समानता की हत्या है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को मंत्रियों को निलंबित करना चाहिए और देश से माफी मांगनी चाहिए। केजरीवाल ने एक और ट्वीट में कहा, ‘‘दलितों का उत्थान मोदी सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है। इसके बावजूद मोदीजी के मंत्रियों ने पांच दलित छात्रों को बहिष्कृत व निष्कासित किया।"
उधर, कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया, "यह तो शुरूआत भर है। कुलपतियों का चयन भाजपा आरएसएस द्वारा किया जा रहा है। शिक्षा के बजाय उनकी रुचि एबीवीपी को बढ़ावा देने में है। सभी छात्र शाखाओं को परिसर में सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए एक साथ आना चाहिए।
मंगलवार, 19 जनवरी 2016
ROHIT VEMULA (HCU): विरोध की ये 18 तस्वीरें खोल रही हैं दिल्ली पुलिस, सरकार और मीडिया की पोल
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली। अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के सदस्य और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के
शोध छात्र रोहित वेमुला के उत्पीड़न और खुदकुशी के विरोध में सोमवार को बिरसा,
अंबेडकर, फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बाफसा), आइसा, एसएफआई, केवाईएस, एआइएसएफ,
डीएसएफ, अखिल भारतीय जाति विरोधी मोर्चा आदि विभिन्न छात्र-संगठनों के हजारों
कार्यकर्ताओं ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन
किया।
सोमवार, 18 जनवरी 2016
हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोधार्थी ने की खुदकुशी, देश व्यापी प्रदर्शन
-केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति इरानी को बर्खास्त करने की मांग
-मृतक रोहित वेमुला को सात महीने से नहीं दी गई थी फेलोशिप।
-अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े हैं निष्कासित शोधार्थी।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली। हैदराबाद विश्वविद्यालय के हास्टल से निकाले गए पांच शोधार्थियों
में से एक शोधार्थी रोहित वेमुला ने रविवार को खुदकुशी कर ली। इसकी जानकारी होते
ही यह खबर सोशल मीडिया पर वाइरल हो गई और लोगों का गुस्सा केंद्रीय मंत्री बंडारू
दत्तात्रेय और स्मृति इरानी के खिलाफ फूट पड़ा। लोग दत्तात्रेय के खिलाफ हत्या और
एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने तथा स्मृति इरानी को मानव संसाधन विकास
मंत्री के पद से बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं। सोमवार को देश के विभिन्न
इलाकों में इन दोनों समेत केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किये गए।
अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े इन दलित छात्रों को अखिल भारतीय
विद्यार्थी परिषद के एक नेता पर कथित हमले के मामले में हैदराबाद यूनिवर्सिटी ने
छात्रावास से निष्कासित कर दिया गया था। यहां तक कि विश्वविद्यालय के हॉस्टल,
मैस, प्रशासनिक भवन और कॉमन एरिया में भी इनके घुसने पर रोक लगा
दी गई थी। दलित छात्रों के इस 'बहिष्कार' के खिलाफ कई छात्र संगठन विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे और इस
मुद्दे पर विश्वविद्यालय में काफी दिनों से विवाद चल रहा था। रोहित समेत पांचों
छात्र अपने निष्कासन के खिलाफ कई दिनों से कैंपस में खुले आसमान के नीचे सो रहे
थे।
रविवार को एक तरफ जहां दलित छात्रों के समर्थन में कई छात्र संगठनों का धरना चल रहा था, रोहित चुपके से यूनिवर्सिटी के एनआरएस हॉस्टल गए और खुद को एक कमरे में बंद कर खुदकुशी कर ली। बताया जाता है कि इससे पहले रोहित की विरोधी गुट के छात्रों के साथ तीखी बहस हुई थी। पुलिस के मुताबिक, रोहित के पास से पांच पन्नों का एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है।
इसमें उसने लिखा है कि उसे पिछले सात महीनों से फेलोशिप नहीं मिली है। उसके
मरने के बाद यह धनराशि उसके माता-पिता को दे दी जाए। यह उसने अपने आखिरी पत्र (सूसाइड
नोट) मे लिखा है। इसमें यह भी लिखा है कि वह ख्याति प्राप्त लेखक कार्ल सागान की
तरह एक लेखक बनना चाहता था।
उधर, नई दिल्ली स्थित शास्त्री भवन के सामने विभिन्न संगठनों के करी 1200 लोगों ने धरना प्रदर्शन किया और केंद्रीय मंत्री बंगारू दत्तात्रेय और स्मृति इरानी समेत मोदी सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। दिल्ली पुलिस उनकी आवाज को दबाने के लिए पानी का बौछार किया लेकिन टैंकर का पानी खत्म हो गया लेकिन उनके हौसले कम नहीं हुआ। आखिरकार पुलिस को प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करना पड़ा जिसमें एक छात्र गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया। वहीं चार बसों में भरकर छात्रों को थाने ले जाया गया। इसके बावजूद वहां करीब पांच सौ से ज्यादा छात्र एवं समर्थक वहां डटे रहे। पुलिस उन्हें लाठी का धौंस दिखाकर तितर-बितर कर दी। इतना ही नहीं छात्र-छात्राओं की आवाज को दबाने के लिए आधुनिक बंदूकों से लैस अर्द्धसैनिक बलों को बुलाया गया था। इसके बावजूद आइसा, एसएफआई, अखिल भारतीय जाति विरोधी मोर्चा, केवाईएस समेत अन्य छात्र संगठनों के छात्र डटे रहे।
नोटः सुसाइड नोट पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें
रोहित वेमुला का सुसाइड नोट
उधर, नई दिल्ली स्थित शास्त्री भवन के सामने विभिन्न संगठनों के करी 1200 लोगों ने धरना प्रदर्शन किया और केंद्रीय मंत्री बंगारू दत्तात्रेय और स्मृति इरानी समेत मोदी सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। दिल्ली पुलिस उनकी आवाज को दबाने के लिए पानी का बौछार किया लेकिन टैंकर का पानी खत्म हो गया लेकिन उनके हौसले कम नहीं हुआ। आखिरकार पुलिस को प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करना पड़ा जिसमें एक छात्र गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया। वहीं चार बसों में भरकर छात्रों को थाने ले जाया गया। इसके बावजूद वहां करीब पांच सौ से ज्यादा छात्र एवं समर्थक वहां डटे रहे। पुलिस उन्हें लाठी का धौंस दिखाकर तितर-बितर कर दी। इतना ही नहीं छात्र-छात्राओं की आवाज को दबाने के लिए आधुनिक बंदूकों से लैस अर्द्धसैनिक बलों को बुलाया गया था। इसके बावजूद आइसा, एसएफआई, अखिल भारतीय जाति विरोधी मोर्चा, केवाईएस समेत अन्य छात्र संगठनों के छात्र डटे रहे।
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रोहित वेमुला का सुसाइड नोट
पत्रकारिताः पहले मिशन, फिर प्रोफेशन और अब बनी 'सेवा'
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हैरानी तो होती ही है। दस वर्ष मुझे भी हो गए लेकिन किसी चेहरे की ऐसी कोई धुंधली
तस्वीर भी नहीं आती जो कभी समाजसेवा में पत्रकारिता का इस्तेमाल किया हो। यहा तो
दलालो की एक लंबी जमात है जो मिले तो समाज से ही सेवा ले लेंगे। कई चेहरे ऐसे भी
है जो काफी प्रतिभावान ऊर्जावान लच्छेदार वक्तव्यों के धनी लेकिन पत्रकारिता को
कोसते नजर आते है और पत्रकारिता की आड़ में अपने उल्टे सीधे व्यवसाय को चला रहे
हैं। उनकी पहचान पत्रकारिता (बैनर) है और उसे हटा दे तो नमस्कार करने वाले भी नहीं
मिले। फिर भी घमंड इतना कि जैसे बहुत बड़े समाजसेवी वही हैं।
दूसरी कटेगरी उनकी जो पुलिस और अधिकारियो की सेवा में लगे रहते है। उनकी हर
प्रायोजित कार्यक्रम को बढ़ा चढ़ा कर कवरेज देना ही उनकी पत्रकारिता सेवा है। उनके
दिलो में यह भाव इतना प्रबल है कि कभी कभी पुलिस की गलतियों पर फसती गर्दन को देख
उन्हें शत प्रतिशत आश्वासन देते है कि ये खबर प्रसारित ही नही होगी। तीसरी कटेगरी
उनकी जो किसी खबर पर तो नही होते लेकिन इस बात का इंतज़ार जरूर करते है कि किसी
अधिकारी की प्रेस कांफ्रेंस कब है। सटीक जानकारी प्राप्त करते हुए समय से पूर्व
अपनी सेवा देने पहुच जाते है और अधिकारी को इतना बड़ा सब्जबाग दिखाते है जैसे खबर
तो उनके ही अनुसार छपेगी। कभी कभी लगता है ज्यादा जोश में बढ़ा चढ़ा कर लिखने के
चक्कर में छेड़खानी को बलात्कार न लिख दे।
चौथी कटेगरी है मीन मेख निकालने वाले लोगो की..ये लोग अपनी पॉजिटिव ऊर्जा को
निगेटिव कार्यो में लगाते हैं। दिन भर गलतिया ढूंढते है लेकिन गलती करने वाले को
जब अंजाम तक पहुचाने की बारी आती है तो सहृदय हो जाते है और समाज में गन्दगी
फ़ैलाने का उन्हें एक मौका और देते हैं अब इसे कौन सी सेवा कही जाय?
कटेगरी और भी है लेकिन विषय "पत्रकारिता सेवा" का
था तो अब ऐसे पत्रकार गुमनामी के अंधेरे में चले गए जो वास्तव में समाज को कुछ
देना चाहते है।जितना बड़ा बैनर उतने बड़े दलाल का चेहरा सामने आता है।
अच्छी बाते
करना आसान है लेकिन अच्छे कार्य महान बनाते है जो वास्तव में पत्रकारिता से समाज
की सेवा करते है ऐसे कई चेहरे है जो सार्वजनिक नही होना चाहते और न ही किसी मंच से
सम्मानित होने की लालसा रखते है। छपास के रोगी पत्रकारो के वजह से पत्रकारिता का
स्तर लगातार गिर रहा है। सस्ती लोकप्रियता के लिए इस क्षेत्र में युवा पीढ़ी काफी
आकर्षित है पत्रकारिता के ग्लैमर को देख कर आया युवा अब किस प्रकार की सेवा देगा
इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
( महेंद्र प्रजापति उत्तर प्रदेश में मुगलसराय
के निवासी हैं और पिछले दस सालों से विभिन्न टीवी चैनलों और अखबारों के लिए
रिपोर्टिंग कर रहें हैं।)
'हिन्दी उपन्यास की नयी ज़मीन' का लोकार्पण
वनांचल न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। प्रगति मैदान पर चल रहे विश्व पुस्तक मेले में शुक्रवार को हिंदी
साहित्य की पत्रिका 'बनास जन' के विशेषांक 'हिन्दी उपन्यास की नयी जमीन' का लोकार्पण हुआ। इस विशेषांक का लोकार्पण वरिष्ठ
उपन्यासकार पंकज बिष्ट, कथाकार हरियश राय, लखनऊ से आए कवि अजय सिंह, उद्भावना के संपादक अजय कुमार तथा अनभै साँचा के संपादक
द्वारिका प्रसाद चारुमित्र ने किया।
अरु प्रकाशन के मंच पर आयोजित कार्यक्रम में
पंकज बिष्ट ने कहा कि विगत सालों में युवाओं द्वारा लिखे गए उपन्यासों के
मूल्यांकन पर केंद्रित इस अंक का स्वागत किया जाना चाहिए। हरियश राय ने कहा कि
हिंदी आलोचना के जिम्मेदार पक्ष का उदाहरण यह अंक है। द्वारिका प्रसाद चारुमित्र
ने लघु पत्रिकाओं द्वारा लगातार साहित्य औरत संस्कृति के विषयों पर गंभीर सामग्री
पाठकों तक पहुंचाई जा रही है जिसे और व्यापक करने के लिए साझा प्रयास करने होंगे।
जन संस्कृति मंच से सम्बद्ध कवि और लेखक अजय सिंह तथा उद्भावना के संपादक अजय
कुमार ने भी इस अवसर पर शुभकामनाएँ दीं।
बनास जन के भंवरलाल मीणा ने अंक में
सम्मिलित उपन्यासों के बारे में बताया कि इस विशेषांक में आठ आलोचकों द्वारा
पंद्रह नये उपन्यासों का मूल्यांकन किया गया है। जिनमें युवा पीढ़ी के अनेक
उपन्यासों के साथ काशीनाथ सिंह, रामधारी सिंह दिवाकर, ज्ञान चतुर्वेदी, शीला रोहेकर, हरि भटनागर और रजनी
गुप्त के उपन्यास भी सम्मिलित हैं। आयोजन में अरु प्रकाशन के निदेशक आशीष गुप्ता,
कथाकार राजीव कुमार, सहित बड़ी संख्या में लेखक और पाठक उपस्थित थे। अंत में बनास
जन के संपादक पल्लव ने सभी का आभार माना।
(प्रेस विज्ञप्ति)
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