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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016
शनिवार, 23 जनवरी 2016
ROHIT VEMULA: विरोध के स्वर को मिला देशव्यापी समर्थन, प्रदर्शन जारी
बंडारू दत्तात्रेय, पी. अप्पा राव, स्मृति इरानी को उनके पदों से बर्खास्त
करने की मांग हुई तेज।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली/इलाहाबाद। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित
वेमुला की खुदकुशी को लेकर केंद्र की मोदी सरकार के दो मंत्रियों और विश्वविद्यालय
प्रशासन के खिलाफ आज भी देश के विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन हुआ। लोगों ने
विश्वविद्यालय के कुलपति, केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय, केंद्रीय
मानव संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति इरानी को उनके पदों से बर्खास्त करने की मांग
की। साथ ही रोहित की खुदकुशी के मामले में आरोपी लोगों को तत्काल गिरफ्तार किया
जाए। उधर केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने रोहित के परिजनों को आठ लाख
रुपये का मुआवजा देने और पूरे मामले की न्यायिक जांच कराने का निर्देश दिया है। हैदराबाद,
दिल्ली, लखनऊ, दिल्ली, पूणे, मुंबई, इलाहाबाद, वाराणसी, आदि शहरों में शनिवार को
भी जबरदस्त प्रदर्शन हुए।
हैदराबाद में रोहित वेमुला के साथ निकाले गए छात्रों समेत करीब सैकड़ों लोगों
ने विश्वविद्यालय परिसर में विरोध प्रदर्शन किया। कई छात्र अभी भी अनशन पर बैठे
हुए हैं। दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किये गए। शुक्रवार को जेएनयू में भी प्रदर्शन
हुए थे। वहीं इलाहाबाद में आज छात्र युवा, बुद्धिजीवी, पत्रकार, मजदूर, किसान सब एक
साथ सड़क पर निकले। इस दौरान एक प्रतिरोध मार्च निकाला गया जो पीडी टंडन पार्क से
सुभाष बोस चौराहे पर जाकर एक सभा में तब्दील हो गया। इनमें जिया उल हक़, रवि किरण जैन, लेखक दूध नाथ सिंह, प्रलेस अध्यक्ष प्रो. संतोष भदौरिया, प्रो. अली अहमद
फातमी, डा. उर्मिला जैन, प्रो. अनिता
गोपेश, के.के. पांडे, जसम के राष्ट्रीय
महासचिव प्रो. प्रणय कृष्ण, सुरेन्द्र राही, खुर्शीद नकवी, डा. अशफाक हुसैन, डा. फखरुल करीम, इलाहाबाद विवि छात्र संघ अध्यक्ष
ऋचा सिंह, असरार गाँधी, रणविजय सिंह
सत्यकेतु, डा. अनिल पुष्कर, डा. शमेनाज़,
डा. अंशुमान , रोजी रोटी बचाओ संघर्ष मोर्चा
से अनु सिंह गीता, बृजेश ,आरती,
सीमा आज़ाद ,रश्मि मालवीय, अविनाश मिश्र, शहनाज़, उत्पला,
ऋतेश, छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष शालू यादव,
केके त्रिपाठी, मीना राय, नीलम शंकर , अमृता सिंह आदि मौजूद रहे।
गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में रोहित सहित पांच दलित छात्रों को एबीवीपी के
कार्यकर्ताओं से झड़प के बाद निलंबित कर दिया गया था। यह सब दिल्ली विश्वविद्यालय
में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग पर एबीवीपी के हमले के बाद शुरू
हुआ था। दलित छात्रों ने एबीवीपी के इस कदम की निंदा करते हुए इसके विरोध में
कैम्पस में प्रदर्शन किया था। इसके बाद इन छात्रों को हॉस्टल से दिसंबर में निकाल
दिया गया। गत रविवार को इनमें से एक रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली थी। इसे लेकर
देश के विभिन्न हिस्सों में छात्र संगठनों समेत अन्य लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू
कर दिया।
गुरुवार, 21 जनवरी 2016
ROHIT VEMULA: शोधार्थियों का निलंबन वापस, बंडारू और वीसी की गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन जारी
रोहित वेमुला की खुदकुशी के विरोध में विश्वविद्यालय के 15 में से 13 दलित फैकल्टी ने सभी प्रशासनिक पदों से दिया इस्तीफा
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली/हैदराबाद। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी रोहित
वेमुला की खुदकुशी को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे विरोध-प्रदर्शन और
राजनीतिक प्रतिक्रिया से सकते में आई विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने चार
दलित शोधार्थियों का निलंबन वापस ले लिया है। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की
कार्यकारी परिषद ने गुरुवार को रोहित वेमुला के साथ निलंबित अन्य चार छात्रों का
निलंबन रद्द कर दिया। परिषद ने यह फैसला विश्वविद्यालय में हो रहे विरोध प्रदर्शनों
की बीच किया। विश्वविद्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि विश्वविद्यालय
में बने असाधारण हालात को देखने और मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करने के बाद
शोधार्थियों पर लगाए गए दंड को तत्काल प्रभाव से समाप्त कने का फैसला लिया गया है।
गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में रोहित सहित पांच दलित छात्रों को एबीवीपी के
कार्यकर्ताओं से झड़प के बाद निलंबित कर दिया गया था। यह सब दिल्ली विश्वविद्यालय
में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग पर एबीवीपी
के हमले के बाद शुरू हुआ था। दलित छात्रों ने एबीवीपी
के इस कदम की निंदा करते हुए इसके विरोध में कैम्पस में
प्रदर्शन किया था। इसके बाद इन छात्रों को हॉस्टल से दिसंबर में निकाल दिया गया।
गत रविवार को इनमें से एक रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली थी। इसे लेकर देश के
विभिन्न हिस्सों में छात्र संगठनों समेत अन्य लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर
दिया।
विश्वविद्यालय के एक दर्जन से ज्यादा दलित फैकल्टी ने आज केंद्रीय मानव
संसाधन एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी के बयान को लेकर सभी प्रशासनिक पदों से
इस्तीफा दे दिया। इनमें मुख्य चिकित्साधिकारी कैप्टन रविंद्र कुमर, परीक्षा
नियंत्रक प्रो. वी. कृष्णा, मुख्य वार्डन डॉ. जी. नागाराजू और एक दर्जन अन्य
फैकल्टी सदस्य शामिल हैं। इससे विश्वविद्यालय और दबाव में आ गया और उसने जल्द ही
कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाई। इसमें खुदकुशी करने वाले शोधार्थी रोहित वेमुला के
चार साथियों का निलंबन वापस लेने का निर्णय लिया गया।
वोटबैंक की राजनीति से उपजे रोहित वेमुला की खुदकुशी के हालात
दक्षिण के तरीकबन सभी प्रदेशों में सवर्णों को विस्थापित कर पिछड़ा तबका शासक
वर्ग बन गया है। इस या उस पार्टी के साथ सत्ता में रहता है। ऐसे में सत्ता का
ख्वाब देखने वाली किसी भी दक्षिणपंथी पार्टी के लिए पिछड़ा तबका उसका स्वाभाविक
आधार होगा। बीजेपी की भी इसी हिस्से पर नजर है लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है...
महेंद्र मिश्रा
बहुत दिनों से यह खिचड़ी पक रही थी। पूरा परिवार इसको पकाने में जुटा था। तिल
को ताड़ एक खास मकसद से बनाया गया । दो छात्रों के बीच की एक मामूली लड़ाई अनायास
ही नहीं दिल्ली पहुंच गई। देखते ही देखते दो-दो केंद्रीय मंत्री शामिल हो गए।
एचआरडी मंत्रालय से तीन महीने के भीतर चार-चार रिमाइंडर भेज दिए गए। स्थानीय
बीजेपी विधायक इसकी अगुवाई करने लगा। परिसर कब सड़क और बाहर की राजनीति से जुड़
गया पता ही नहीं चला। दरअसल इस बीरबली खिचड़ी पर बड़ा दांव लगा था। उत्तर भारत में
संघ-बीजेपी की पकड़ मजबूत हो गयी है। लेकिन दक्षिण भारत अभी भी उसकी पहुंच से दूर
है। हालांकि कर्नाटक में बीजेपी का आधार जरूर है। लेकिन आंध्रा,
तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में पैर रखने के लिए उसे जमीन की तलाश है।
ऐसे में दक्षिण की इस भूख को पूरा करने में यह खिचड़ी बेहद मददगार साबित होती।
सूबे के बंटवारे के बाद तेलंगाना में टीआरएस और आंध्रा में टीडीपी का शासन है।
तेलंगाना से हटकर टीडीपी का केंद्रीकरण अब आंध्र प्रदेश में हो गया है। ऐसे में
उसका पुराना आधार और सूबे के गठन के संक्रमण से पैदा हालात बीजेपी के लिए नये मौके
मुहैया कराते हैं। जिसमें वह अपने लिए एक नई जमीन तैयार कर सकती है। आम तौर पर
बीजेपी का अपना विश्वसनीय आधार सवर्ण तबका होता है। लेकिन दक्षिण में पिछड़ों के
सशक्तीकरण ने इस तबके को राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक बना दिया है। या फिर इसकी
इतनी संख्या नहीं है कि उस पर पारी खेली जा सके। दक्षिण के तरीकबन सभी प्रदेशों
में सवर्णों को विस्थापित कर पिछड़ा तबका शासक वर्ग बन गया है। इस या उस पार्टी के
साथ सत्ता में रहता है। ऐसे में सत्ता का ख्वाब देखने वाली किसी भी दक्षिणपंथी
पार्टी के लिए पिछड़ा तबका उसका स्वाभाविक आधार होगा। बीजेपी की भी इसी हिस्से पर
नजर है लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है।
हैदराबाद समेत कुछ शहरों में मुस्लिम तबके
के खिलाफ सांप्रदायिक गोलबंदी से भले ही कुछ माहौल बन जाए लेकिन ठोस आधार बन पाना
मुश्किल है। गांवों और सुदूर इलाकों के लिहाज से यह हथियार कारगर नहीं है। यह
प्रकरण उसी की तलाश है। दरअसल वंचित जातियों के सशक्तीकरण के बावजूद दक्षिण में
अभी भी पिछड़ों और दलितों के बीच एक गहरा अंतरविरोध है। बीजेपी इसका ही इस्तेमाल
कर पिछड़ों में अपनी पैठ बनाना चाहती है। अनायास ही नहीं उसने किसी और की जगह
बंडारू दत्तात्रेय का चेहरा आगे किया। जो एक पिछड़ी जाति से आते हैं। और घटना के
बाद पार्टी उसे बढ़-चढ़ कर प्रचारित करने में लगी है। नहीं तो एचआरडी मंत्री
स्मृति ईरानी को अपने पहले ही संवाददाता सम्मेलन में दत्तात्रेय की जाति बताने की
क्या जरूरत पड़ गई? इतना ही नहीं उन्होंने शुरुआत भी सुशील कुमार की जाति बताने
के साथ ही किया ।
इस देश में जातीय उत्पीड़न की घटनाएं अक्सर होती हैं। लेकिन यह पहली ऐसी घटना
है जिसमें सीधे तौर पर सत्ता और उसकी सवारी करने वाले लोग शामिल हैं। रोहित ने
आत्महत्या नहीं की बल्कि सत्ता के इन बहेलियों ने उसे घेर कर मारा है। इस वाकये ने
उच्चशिक्षण संस्थानों, सत्ता प्रतिष्ठानों और पूरी व्यवस्था के ब्राह्मणवादी चेहरे
को नंगा कर दिया है। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि यह उत्पीड़न गांव की दलित
बस्तियों तक सीमित नहीं है। उच्च शैक्षणिक संस्थाएं भी इन्हीं का विस्तार हैं। संघ
अपने इन सामंती किलों को और मजबूत करने में जुट गया है। हैदराबाद विश्वविद्यालय से
लेकर बीएचयू और इलाहाबाद से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू से लेकर अलीगढ़
और जामिया में आये दिन सरकार की दखलंदाजी इसी के प्रमाण हैं।
घटना के बाद विपक्षी
दलों पर राजनीति करने का आरोप लगाया जा रहा है। लेकिन अभी तक बीजेपी-संघ-परिषद ने
जो किया उसे किस श्रेणी में रखा जाएगा? और अगर इस देश में कानून नाम की कोई चिड़िया है और वह काम
भी करती है तो रोहित की आत्महत्या के मामले में अब तक सक्रिय क्यों नहीं हुई?
खुदकुशी के लिए मजबूर करने वाले जेल क्यों नहीं भेजे गए?
इस मामले में केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय के खिलाफ
थाने में एफआईआर दर्ज है। और कानून व्यवस्था का मामला भी राज्य का होता है। ऐसे
में सूबे की पुलिस की क्या यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह बंडारू समेत सभी
आरोपियों की गिरफ्तारी की पहल करे?
बीजेपी और उसके समर्थक याकूब मेमन मामले से जोड़कर इसे सांप्रदायिक रंग देना
चाहते हैं। लेकिन उन्हें इस बात को जरूर समझना चाहिए कि इस देश में किसी भी नागरिक
को किसी भी मसले पर अपनी राय रखने की पूरी छूट है। इस देश में एक बड़ी संख्या है
जो फांसी की सजा की विरोधी है। हर किसी फांसी के मौके पर उसका प्रतिरोध सामने आता
है। यह केवल याकूब की बात नहीं है बल्कि धनंजय चटर्जी के मसले पर भी पूरे देश में
इसी तरह से बहस खड़ी हुई थी। और याकूब के मामले पर सरकार का खुद पक्ष बहुत कमजोर
था ऐसे में देश और समाज में उस पर दो राय बननी स्वाभाविक थी।
अगर ऐसा नहीं होता तो
तीन बजे रात में सुप्रीम कोर्ट की पीठ को नहीं बैठना पड़ता। ऐसे में उस पर बहस को
सीधे कैसे देशद्रोह करार दिया जा सकता है। क्या ऐसे लोग जो फांसी के विरोधी हैं सब
को देशद्रोही मान लिया जाए? या फिर उन्होंने जीने का अधिकार खो दिया है। और कहीं भी कभी
भी उनकी हत्या की जा सकती है? हम किसी आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में रह रहे हैं या फिर
मध्ययुग के बर्बर सामंती दौर में पहुंच गए हैं। यह कार्रवाई बिल्कुल ही छात्रों के
बीच विवाद के मसले पर हुई थी। उसको वहीं तक सीमित रखा जाए। बाकी उसे सांप्रदायिक
रंग देने की साजिश सवर्णों के एक हिस्से द्वारा की जा रही है जो घोर दलित और
मुस्लिम विरोधी होने के साथ बीजेपी समर्थक हैं।
(लेखक टीवी पत्रकार हैं)
ROHIT VEMULA: SC/ST फैकल्टी ने किया आंदोलन का समर्थन, 10 ने दिया इस्तीफा
प्रेस विज्ञप्ति में की स्मृति ईरानी के हालिया बयान की निंदा।
प्रदर्शनकारियों के समर्थन में उतरे फैकल्टी के सदस्य।
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली/हैदराबाद। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छब्बीस वर्षीय शोधार्थी
रोहित वेमुला चक्रवर्ती की खुदकुशी के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के समर्थन में
विश्वविद्यालय के एससी/एसटी वर्ग के शिक्षक भी कूद पड़े हैं। विभिन्न पदों पर
कार्यरत करीब एक दर्जन प्रोफेसरों ने विश्वविद्यालय के सभी प्रशासनिक पदों से
इस्तीफा दे दिया है। साथ ही उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर केंद्रीय मानव संसाधन
एवं विकास मंत्री स्मृति ईरानी पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया है। उन्होंने
विज्ञप्ति में ईरानी के उस वक्तव्य की कड़े शब्दों में निंदा की है जिसमें कहा गया
है कि विश्वविद्यालय की दलित फैकल्टी उस जांच कमेटी का हिस्सा थी, जिसके आधार पर
रोहित वेमुला और उसके अऩ्य चार साथियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
पत्रकारों से बाचतीत में विश्वविद्यालय के विद्यार्थी कल्याण के डीन और
एससी/एसटी टीचर्स एवं ऑफिसर्स फोरम के सदस्य प्रकाश बाबू ने कहा,
''मंत्री राष्ट्र को गुमराह
कर रही हैं। हम उस प्रशासन के अंतर्गत कार्य नहीं करेंगे जिसके कार्यकारी परिषद
में विश्वविद्यालय की स्थापना से दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं है।"
डॉ. रविन्द्र कुमार और एस. सुधाकर बाबू के हस्ताक्षर वाली प्रेस विज्ञप्ति में
कहा गया है कि हम दलित फैकल्टी पूरी तरह से केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री
स्मृति ईरानी के उस बयान की निंदा करते हैं। हम उनके उस बयान पर आपत्ति हैं जो
उन्होंने नई दिल्ली में गत 20 जनवरी को दोपहर करीब तीन बजे पत्रकार वार्ता के
दौरान दिया था। प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्रीय
मंत्री ने मामले में तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया और कहा कि विश्वविद्यालय के
सबसे वरिष्ठ प्रोफेसर छात्रों के निलंबन का निर्णय लेने वाली कार्यकारी परिषद की
उप-समिति के मुखिया थे। उस समिति के मुखिया उच्च वर्ग के प्रोफेसर विपिन
श्रीवास्तव थे और कार्यकारी परिषद की उप-समिति में दलित वर्ग का कोई सदस्य नहीं
था। यह एक संयोग है कि छात्र कल्याण के डीन दलित वर्ग से हैं और समिति के एक्स
ऑफिसियों सदस्य के रूप में उन्हें शामिल किया गया।
दलित प्रोफेसर्स एसोसिएशन ने कहा है कि 50 से 60 फैकल्टी सदस्य प्रशानिक पदों से इस्तीफा देंगे। रिलीज में कहा गया है कि इस मामले को गलत तरफ मोड़कर ईरानी खुद को और बंडारू दत्तात्रेय को रोहित वेमुला की मौत की जिम्मेदारी लेने से बचाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा था कि रोहित वेमुला के सुसाइड नोट में किसी अधिकारी या सांसद का नाम नहीं था। फैकल्टी ने रिलीज में कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि माननीय मंत्री जी ये कहते हुए देश को गुमराह कर रही हैं कि होस्टल वॉर्डन के पास छात्रों को निकालने का अधिकार है। प्रेस रिलीज में कहा गया कि, 'माननीय मंत्री जी के मनगढ़ंत बयानों के जवाब में हम दलित फैकल्टी और अधिकारी अपने पदों से इस्तीफा देंगे।' प्रेस रिलीज में कहा गया है कि दलित फैकल्टी प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ है। उसमें लिखा है, 'हम रोहित वेमुला की मौत के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ हैं और अपने छात्रों के निलंबन और उनके खिलाफ पुलिस में दर्ज सभी मामलों को वापस लेने की मांग करते हैं।'
दलित प्रोफेसर्स एसोसिएशन ने कहा है कि 50 से 60 फैकल्टी सदस्य प्रशानिक पदों से इस्तीफा देंगे। रिलीज में कहा गया है कि इस मामले को गलत तरफ मोड़कर ईरानी खुद को और बंडारू दत्तात्रेय को रोहित वेमुला की मौत की जिम्मेदारी लेने से बचाने की कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा था कि रोहित वेमुला के सुसाइड नोट में किसी अधिकारी या सांसद का नाम नहीं था। फैकल्टी ने रिलीज में कहा कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि माननीय मंत्री जी ये कहते हुए देश को गुमराह कर रही हैं कि होस्टल वॉर्डन के पास छात्रों को निकालने का अधिकार है। प्रेस रिलीज में कहा गया कि, 'माननीय मंत्री जी के मनगढ़ंत बयानों के जवाब में हम दलित फैकल्टी और अधिकारी अपने पदों से इस्तीफा देंगे।' प्रेस रिलीज में कहा गया है कि दलित फैकल्टी प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ है। उसमें लिखा है, 'हम रोहित वेमुला की मौत के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ हैं और अपने छात्रों के निलंबन और उनके खिलाफ पुलिस में दर्ज सभी मामलों को वापस लेने की मांग करते हैं।'
पिछले साल अगस्त में रोहित सहित पांच दलित छात्रों को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से झड़प के बाद निलंबित कर दिया गया था। यह सब दिल्ली विश्वविद्यालय में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग पर एबीवीपी के हमले के बाद शुरू हुआ। दलित छात्रों ने एबीवीपी के इस कदम की निंदा करते हुए इसके विरोध में कैम्पस में प्रदर्शन किया था। इसके बाद इन छात्रों को हॉस्टल से दिसंबर में निकाल दिया गया था। गत रविवार को रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली।
बुधवार, 20 जनवरी 2016
ROHIT VEMULA: तीसरे दिन भी प्रदर्शन जारी, हैदराबाद पहुंचे येचुरी
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में हो रहा प्रदर्शन। फोटो साभारः फेसबुक |
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जाएंगे हैदराबाद
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की
खुदकुशी को लेकर उठा सियासी बवंडर थमने का नाम नहीं ले रहा है। हैदराबाद में तीसरे
दिन भी प्रदर्शन जारी रहा। सीपीआईएम के नेता सीताराम येचुरी और वाईएसआर कांग्रेस
के नेता वाई एस जगनमोहन रेड्डी आज प्रदर्शनकारियों के मिलने हैदराबाद पहुंचे। वहीं
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हैदराबाद जाने की तैयारी में हैं।
हालांकि वह कब जाएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है।
बता दें कि एबीवीपी (एचसीयू) के अध्यक्ष नंदानम सुशील कुमार की कथित पिटाई को लेकर
केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने पिछले साल मानव संसाधन विकास
मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा था। इसके बाद उन्होंने हैदराबाद केंद्रीय
विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर रोहित वेमुला और उसके साथियों के खिलाफ
कार्रवाई करने की बात कही थी। इसके बाद रोहित और उसके चार साथियों को हास्टल से
निकाल दिया गया था और वे विश्वविद्यालय के बाहर टेंट लगाकर अपना विरोध जता रहे थे।
रविवार को रोहित वेमुला ने खुदकुशी कर ली थी।
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विरोध, बदला और विद्रोह के लिए रहें तैयारः संजय पासवान
वनांचल न्यूज नेटवर्क
नई दिल्लीः हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की
खुदकुशी का मामला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मुश्किल में डाल सकता है। पूर्व
मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य संजय पासवान ने खुद की पार्टी को
कटघरे में खड़ा कर दिया है। संजय पासवान ने ट्वीट किया,
“सत्ता की राजनीति के
भागीदारों को रोहित वेमुला प्रकरण को गंभीरता से लेना चाहिए या फिर विरोध,
बदला, विद्रोह और प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार रहना चाहिए।”
उन्होंने स्पष्ट रूप से पार्टी का नाम नहीं लिया है लेकिन उनके ट्वीट से साफ
जाहिर है कि वे केंद्र की भाजपा को लेकर सहज नहीं है। पासवान ने लोकसभा चुनाव-2014
में पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चे की कमान संभाली
थी।
रोहिथ वेमुलाः अपने शब्दों के साथ हमें अकेला छोड़ दिया
(सांप्रदायिक और ब्राह्मणवादी ताकतों के खिलाफ आंदोलनरत
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहिथ वेमुला की आत्महत्या पर यह
लेख ‘द हिंदू’ में प्रकाशित है। इसे
अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया है रेयाज उल हक ने। उन्हीं के ब्लॉग ‘हाशिया’ से यह लेख लिया गया है। - संपादक)
मीना कंदसामी
एक दलित छात्र की खुदकुशी बच निकलने की एक अकेले इंसान की हिकमत नहीं होती,
यह उस समाज को शर्मिंदा करने की कार्रवाई होती है,
जो उसके साथ खड़े न रह सका. रोहिथ वेमुला की मौत उनके
द्वारा जातिवादी, सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ चलाए जा रहे एक संघर्ष के एक
ऐसे उदासी भरे अंजाम के रूप में सामने आई है, जिसका पहले से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था. उन पांच दलित
अध्येताओं में से एक रोहिथ अपने आखिरी पल तक मजबूती से डटे रहे,
जिन्हें दक्षिणपंथी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्धी
परिषद द्वारा लगाए गए आरोपों पर हैदराबाद विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था.
यहां तक कि मौत की तरफ धकेले जाते हुए भी रोहिथ अपने सबसे जुझारू छात्रों की
असुरक्षाओं को हमें दिखाते गए, और हमारी शैक्षिक व्यवस्था की असली दशा को भी उजागर किया:
दलित छात्रों को निकालने के दशकों पुराने इतिहास वाला एक वाइस चांसलर,
दक्षिणपंथी हिंदू ताकतों की तरफ से बदला लेने के लिए
केंद्रीय मंत्रियों की भागीदारी, पूरी प्रशासनिक मशीनरी का शासक राजनीतिक दलों की कठपुतली बन
जाना और सामाजिक बेपरवाही के त्रासद नतीजे.
इन पांच दलित छात्रों को निकाले जाने से बढ़ कर इसकी कोई कारगर मिसाल नहीं मिल
सकती कि जाति व्यवस्था कैसे काम करती है. हालांकि उनके निकाले जाने की वजह से दलित
बहुजन छात्र समुदाय के बीच में एकजुटता की भावना मजबूत हुई थी,
लेकिन उनको निकाले जाने की कार्रवाई ने खौफनाक बातों की याद
दिला दी थी. ठीक मनुस्मृति द्वारा अवर्णों (यानी दलितों) को जातीय दायरों से बाहर
रहने के फरमान की तरह ही, इस सजा में ही वे सारे प्रतीक शामिल थे जिनमें जातीय सफाई
की अवधारणा छुपी हुई है.
शिक्षा अब अनुशासित करनेवाला एक उद्यम बन गई है,
जो दलित छात्रों के खिलाफ काम कर रही है: वे लगातार
रस्टिकेट कर दिए जाने, हमेशा के लिए निकाल दिए जाने, बदनाम हो जाने या पढ़ाई रुक जाने के खौफ में रहते हैं. एक
ऐसे समाज में जहां छात्रों ने उच्च शिक्षण संस्थानों में पहुंचने के अपने अधिकार
को आरक्षण की नीतियों की सक्षम बनाने वाली, सुरक्षा देने वाली धारणा के तहत यकीनी बनाने के लिए व्यापक संघर्ष
किया है,
किसी ने भी इस बात पर रोशनी डालने का साहस नहीं किया है कि
इनमें से कितने छात्रों को इसकी इजाजत मिलती है कि वे डिग्री हासिल करके इन
संस्थानों से लौटें, और कितनों को पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ती है और इस
तरह वे अवसाद के स्थायी शिकार बन जाते हैं और कितने आखिरकार मौत के अंजाम तक
पहुंचते हैं. रोहिथ वेमुला जैसे दलित छात्र एक डॉक्टरल डिग्री के लिए विश्वविद्यालयों में
दाखिल हो पाते हैं, यही उनकी समझदारी, जिद और जातीय भेदभाव के खिलाफ उनके अथक संघर्ष की निशानी
होती है,
वह भेदभाव जो पहले दिन से ही उनको तबाह कर देने की कोशिश
करता है.
जातीय वर्चस्व से भरी हुई पाठ्य पुस्तकें, अलगाव को और भी मजबूत कर देने वाला कॉलेज कैंपसों का माहौल,
अपने प्रभुत्वशाली जातीय रुतबे पर गर्व करनेवाले सहपाठी,
उनको एक बदतर भविष्य की तरफ धकेलने वाले शिक्षक जो इस तरह
उनके नाकाम रहने की अपनी भविष्यवाणी को सच साबित करते हैं –
ये सब दलित छात्रों के लिए पार करने के लिहाज से नामुमकिन
चुनौतियां हैं. बौद्धिक श्रेष्ठता के विचार में रंगी हुई जाति पर जब अकादमिक
दुनिया के दायरों में पर अमल किया जाता है, तो वह जिंदगियों को खा जाने और जानें लेने वाला एक ज़हर बन
जाती है. क्लासरूम जाति के खिलाफ प्रतिरोध और उसके खात्मे की जगहें बनने की बजाए
उन लोगों की बेकाबू जातीय ताकत की दावेदारी बन जाते हैं जो द्विज होने और ज्ञान के
संचरण के पवित्र धागों में यकीन करते हैं और जो अपनी पैदाइश से ही यथास्थिति को
कायम रखने को मजबूर हैं.
बहिष्कार के डर से अपनी पहचान छुपाए रखनेवाले उत्पीड़ित पृष्ठभूमियों के उन
थोड़े से छात्रों की असली पहचान उजागर होने पर सजा दी जाती है –
मिथकीय कर्ण की तरह उन्हें जानलेवा नाकामी का अभिशाप दिया
जाता है. अपने बूते उभरनेवाले दलित छात्रों को, जिनकी पहचान सबके सामने पहले से ही जाहिर होती है और जो
किंवदंतियों के एकलव्य बन जाते हैं, जिंदा छोड़ दिया जाता है लेकिन उन्हें अपनी कला को अमल में
लाने में नाकाम बना दिया जाता है. ऐसा अकेले छात्रों के साथ ही नहीं होता,
क्योंकि जातीय सत्ता के इन गलियारों में दलित-बहुजन फैकल्टी
भी अलग-थलग कर दिए जाने का सामना करते हैं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी
(आईआईटी),
मद्रास में अपनी मां के संघर्ष को मैंने जितने आदर से देखा
है,
उतनी ही बेचारगी के साथ मैंने इस औरत को टूटते और बिखरते
हुए भी देखा है, जिसे मैं प्यार करती हूं. अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अन्य पिछड़ा
वर्गों के फैकल्टी मेंबरों का हमारे आईआईटी/भारतीय प्रबंधन संस्थानों और
विश्वविद्यालयों में नाम भर का प्रतिनिधित्व इस जातीय भेदभाव को और बढ़ा देता है,
क्योंकि इससे मिलती जुलती पृष्ठभूमियों से आने वाले छात्रों
को एक ऐसा सहायता देने वाला समूह तक नहीं मिलता, जो उनकी मुश्किलों के बारे में सुन सके या उन्हें सलाह दे
सके.
ब्राह्मणवादी प्रोफेसरों के एक इंटरव्यू पैनल के सामने,
जिनकी अदावत एक फायरिंग दस्तों की याद दिलाती है,
एक छात्र कैसे अपने बूते पर टिका रह सकता या सकती है?
ये प्रोफेसर, जिन्होंने एक तरफ हो सकता है कि न्यूक्लियर फिजिक्स में
महारत हासिल कर ली हो, लेकिन दूसरे तरफ अपने प्यारे जातीय पूर्वाग्रहों को
पालते-पोसते रहते हैं. और ये अकादमिक दुनिया में जातीय आतंकवाद की समस्या के सिर्फ
एक पहलू का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. जब इसका मेल एबीवीपी जैसे दक्षिणपंथी
राजनीतिक छात्र गिरोहों से होता है तो यह एक खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है.
हमारे विश्वविद्यालय आधुनिक कत्लगाह बन गए हैं. सभी दूसरे जंग के मैदानों की
तरह,
उच्च शिक्षा के संस्थान भी जातीय भेदभाव के साथ साथ दूसरी
चीजों में भी महारत हासिल कर रहे हैं. वे छात्राओं और महिला फैकल्टी के यौन
उत्पीड़न के लिए बदनाम हो चुके हैं, कहानियां जो दबा दी जाती हैं, कहानियां जिन्हें उन शिकायतकर्ताओं का चरित्र हनन करने के
लिए तोड़-मरोड़ दिया जाता है जो विरोध करती हैं, आवाज उठाती हैं और जो अपने साथ धमकी से,
मजबूरी से या जबरदस्ती सेक्स करने की किसी भी कोशिश को
कारगर नहीं होने देतीं. ठीक जिस तरह से रोहिथ की खुदकुशी ने चुप्पियों को तोड़ते
हुए जाति की हत्यारी पहचान उजागर की है, एक दिन हम उन औरतों की कहानियां भी सुनेंगे,
जिन्हें इन एकाकी टापुओं से मौत के समंदर में ले जाया गया.
हमने हैदराबाद विश्वविद्यालय के मामले में जो देखा है वह जातीय श्रेष्ठता और
राजनीतिक सहभागिता का खतरनाक मेलजोल है. छात्रों को धमकाने और दबाने में राज्य
मशीनरी और खासकर पुलिस बल की भूमिका कैंपसों में दमन के एक पुराने और आजमाए हुए
तरीके के रूप में स्थापित हुई है. आईआईटी मद्रास में आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल
की मान्यता खत्म करने के बाद के दिनों में वर्दी वाले मर्द और औरतें कैंपस में हर
जगह दिन रात मौजूद रहते थे और इसके दरवाजों की पहरेदारी करते थे. (यह फैसला काफी
विरोध के बाद वापस लिया गया था.) अब इसी तरह हैदराबाद कैंपस में हथियारबंद पुलिस
की ऐसी ही भारी तैनाती और धारा 144 के तहत कर्फ्यू लगा दिया गया है.
एक वादा जिस पर अमल करना है
रोहिथ, तुमने कार्ल सेगान की तरह एक विज्ञान लेखक बनने का अपना एक सपना अपने पीछे
छोड़ा है और हमें सिर्फ अपने शब्दों के साथ अकेला कर गए हो. अब हमारे हर शब्द में
तुम्हारी मौत का वजन है, हर आंसू में तुम्हारा अधूरा सपना है. हम धमाके को तैयार
सितारों का वह समूह बन जाएंगे, जिसके बारे में तुमने बात की है,
वह समूह जिसकी जबान पर जाति की इस उत्पीड़नकारी व्यवस्था की
दास्तान होगी. इस मुल्क के हर विश्वविद्यालय में, हर कॉलेज में, हर स्कूल में, हमारे हर नारे में तुम्हारे संघर्ष का जज्बा भरा होगा.
डॉ.
आंबेडकर ने जाति को एक ऐसा शैतान बताया है, जो आप जिधर भी रुख करें आपका रास्ता काटेगा और भारतीय
शैक्षिक संस्थानों के अग्रहारों के भीतर हमारी शारीरिक मौजूदगी में ही जाति के
उन्मूलन के संदेश निहित होने चाहिए. अकादमिक दुनिया पर अपनी दावेदारी ठोकनेवाले एक
दलित,
एक शूद्र, एक आदिवासी, एक बहुजन, एक महिला से अपना सामना होने पर हरेक घिनौनी जातीय ताकत को
घबराने दो, उन्हें इसका अहसास होने दो कि हम यहां पर एक ऐसी व्यवस्था का खात्मा करने आए
हैं,
जो हमें खत्म करने की पुरजोर कोशिश करती रही है,
कि हम यहां पर उन लोगों के लिए बुरे सपनों की वजह बनने आए
हैं,
जिन्होंने हमसे हमारे सपनों को छीनने की हिम्मत की है.
उन्हें इसका अहसास हो जाने दो कि वैदिक दौर, पवित्र ग्रंथों को सुन लेने वाले शूद्र के कानों में पिघला
हुआ सीसा डालने का दौर, वंचित किए गए ज्ञान को अपनी जबान पर लाने का साहस करने
वालों की जबान काट लेने का दौर बीत चुका है. उन्हें यह समझ लेने दो कि हमने
शिक्षित बनने, संघर्ष करने और संगठित होने के लिए इन गढ़ों-मठों पर धावा बोला है;
हम यहां मरने के लिए नहीं आए हैं. हम सीखने के लिए आए हैं,
लेकिन जाति के शैतानों और उनके कारिंदों को यह बात समझ लेने
दो कि हम यहां पर उन्हें एक ऐसा सबक सिखाने भी आए हैं,
जिसे वे कभी भुला नहीं पाएंगे.
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