अनुसूचित जाति वर्ग के बुद्धिजीवियों ने इसे बताया पिछड़े और अनुसूचित वर्गों के बीच खाई
पैदा करने वाली आरएसएस और भाजपा की साज़िश
वनांचल एक्सप्रेस ब्यूरो
लखनऊः बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में प्रवेश की सीटों पर सवर्णोंका ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) कोटा लागू होने पर अन्य पिछड़ा वर्ग के
छात्रों और शिक्षकों ने विश्वविद्यालय में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 27 फीसदी
कोटा को लागू करने के लिए अभियान छेड़ दिया है। वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के
बुद्धिजीवियों ने इसे पिछड़े और अनुसूचित वर्गों के बीच खाई पैदा करने के लिए
भाजपा और आरएसएस की साज़िश बताया है।
बता दें कि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) भारतीय संसद
द्वारा स्थापित विशेष केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। यहां संचालित विभिन्न
पाठ्यक्रमों में प्रवेश की 50 फीसदी सीटों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति
वर्ग के छात्रों को प्रवेश देने का प्रावधान है। शेष 50 फीसदी सीटें अनारक्षित
होती हैं जिस पर सभी वर्गों के छात्र प्रवेश ले सकते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन
ने हाल ही में शिक्षा-सत्र-2020-21 में प्रवेश के लिए सूचना पुस्तिका जारी किया है
जिसमें उसने अनारक्षित सीटों का 10 प्रतिशत सवर्णों के आरक्षण के रूप में चर्चित
ईडब्ल्यूएस कोटा लागू कर दिया है जिससे इन सीटों पर ओबीसी, एससी, एसटी और
अल्पसंख्यक समुदाय के मेधावी छात्रों का प्रवेश अनारक्षित कोटे में नहीं हो पाएगा।
विश्वविद्यालय प्रशासन के इस कार्रवाई की सूचना सार्वजनिक होते ही अन्य पिछड़ा
वर्ग के छात्रों और बुद्धिजीवियों में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 27 फीसदी
आरक्षण को लागू करने की मांग मुखर हो गई। उन्होंने सोशल मीडिया पर विश्वविद्यालय
प्रशासन के खिलाफ आवाज मुखर कर दिया है।
बिहार के छपरा स्थित जय प्रकाश विश्वविद्यालय में हिन्दी के असिस्टेंट
प्रोफेसर डॉ. दिनेश पाल लिखतें हैं, " उत्तर प्रदेश में लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्विद्यालय एक
केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसके वर्तमान कुलपति हैं-प्रो संजय सिंह। 1996 में
स्थापित इस विश्विविद्यालय की 50 प्रतिशत सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित होती थीं
और 50 प्रतिशत सीटें अनारक्षित वर्ग के लिए। ओबीसी के लिए कोई अलग से प्रावधान
नहीं है। इस बार जो नामांकन नोटिफिकेशन जारी हुआ है , उसमें 50 प्रतिशत अनारक्षित सीटों में से 10
प्रतिशत सीटें ईडब्ल्यूएस को दे दी गई हैं। किसी-किसी विषय में तो एससी-एसटी के 50
प्रतिशत में भी सेंधमारी की गई है। ओबीसी का तो सीट बंटवारे में जिक्र भी नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि
(1) क्या 50 प्रतिशत अनारक्षित सीट को विश्वविद्यालय सिर्फ सामान्य वर्ग के
लिए आरक्षित मानता है?
(2) 50 प्रतिशत अनारक्षित सीटों में से 10 प्रतिशत सीटें ईडब्ल्यूएस के लिए
आरक्षित किस आधार पर किया गया है? (तथाकथित सवर्ण जातियों के
गरीब परिवार जिनके परिवार का वार्षिक आय 8 लाख से ज्यादा न हो...इत्यादि) (3) जब
50 प्रतिशत सीट में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है तो फिर ईडब्ल्यूएस को
क्यों?
(4) जब 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा टूट चुकी है तो फिर
ओबीसी को आरक्षण क्यों नहीं?
सामाजिक न्याय के पक्षधर भाइयों और ओबीसी के भाइयों! अब भी आप नहीं जगे तो फिर
धीर-धीरे ओबीसी के लिए उच्च शिक्षा और सरकारी सेवा के सारे दरवाजे बंद कर दिए
जाएंगे। अभी पिछले ही सप्ताह मेडिकल कॉलेज में आवंटित सीटों की सूची सबने देखी थी।
यदि ऐसे ही चुप रहे तो एक दिन अपने पारम्परिक व जातीय पेशा के लिए आपको विवस होना
पड़ेगा, जैसे कि हमारे पूर्वज हजारों साल से झेलते
रहे हैं। *शिक्षित बनो! संगठित बनो! संघर्ष करो!*"
वहीं, नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू
विश्वविद्यालय (जेएनयू) के शोधार्थी विश्वंभर नाथ प्रजापति लिखते हैं,
"यह बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ है। यहां पर
गरीब सवर्णों को रिजर्वेशन मिल गया लेकिन ओबीसी के लिए नहीं है। क्या ओबीसी को
पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं है? क्या इन सब मामलों में राज्य
और केंद्र सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है? इतना भयंकर
जातिवाद आखिर कर कौन रहा है ? सवर्णों के अलावा कोई कर सकता
है यह काम? इतना घटिया और घिनौना सोच कैसे लेते हैं यह लोग?"
वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संबद्ध डीएवी कॉलेज में शोधार्थी
विकास कुमार मौर्य उर्फ विकास आनंद लिखते हैं, "बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ
ने पीएचडी के लिये आवेदन माँगा है। नोटिस में बताया गया है कि एससी-एसटी छात्रों
के लिए सभी कोर्सेज में 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। शैतानी देखिये कि इसमें
एस.सी. और एस.टी. के लिए अलग-अलग कितना आरक्षण है, इसका कोई
जिक्र नहीं किया गया है। ओबीसी के लिए कोई प्रावधान नहीं है लेकिन ई.डब्लू.एस. के
लिए सभी विषयों में आरक्षण दिया गया है। कई विषय और विभाग ऐसे हैं जहाँ पर एस.टी.
की सीटें खत्म कर दी गई हैं। ऐसा कोई विभाग नहीं है कि जहाँ एस.टी. के लिए अनुमति
हो लेकिन ईडब्लूएस की सीट शून्य हो। अब अलग बात है कि ईडब्लूएस कोटे से कौन जाता
है? हम देख रहे हैं कि ईडब्लूएस कोटे में कैसे-कैसे चार
पहिया वाहनों से चलने वाले ब्राम्हण करोड़पतियों की संतानें ही नेट और जेआरएफ पास
हुई हैं, एडमिशन भी उन्ही का हुआ है।"
दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी दिनेश कबीर कहते हैं, "ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने के लिए जब
सड़कों पर आंदोलन चल रहा था, तब रिज़र्वेशन में 50 प्रतिशत के
कैप की दुहाई दी जाती थी और कहा जाता था कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण बढ़ाना
मेरिट के साथ न्याय नहीं है। जब सवर्ण आरक्षण गरीबी के नाम पर देने की बारी आयी,
तब सारी नैतिकता भुला दी गई। असल में मनुवादी सिस्टम देश के वंचितों के साथ न्याय करना ही नहीं चाहता है।
मज़बूरन उसे कुछ-कुछ करना पड़ता है। क्या सत्ता के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे मनुवादी
मानसिकता के लोगों को न्याय के लिए बाध्य किया जा सकता है? बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय
का मामला भी इस मानसिकता से जुदा नहीं है। पहले इस विश्वविद्यालय में विशेष
प्रावधान के तहत एससी-एसटी को 50 प्रतिशत आरक्षण था जिसके कारण केंद्रीय
विश्वविद्यालय होते हुए भी वहां ओबीसी आरक्षण नहीं था। अब जब सवर्ण आरक्षण के रूप
में चर्चित ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू हुआ तो इसे हर जगह लागू किया जा रहा है। इसी
कड़ी में बीबीएयू में भी किया गया है। जब 50 प्रतिसथ आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 60
प्रतिशत किया जा रहा है, तब 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को भी
लागू किया जाना चाहिए। यही इस मनुवादी सिस्टम में वंचितों के प्रतिनिधित्व को
सुनिश्चित करने का माध्यम है। यह कोई प्रिविलेज नहीं है। इस बात को पिछड़ा आयोग ले
जाने की बात चल रही है। बहुजनों को इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ने की जरूरत है। इन
लोगों की हकमारी की आदत ओबीसी तक ही नहीं रुकेगी।"
बीबीएयू में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू किए जाने के मामले पर काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार, जो अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं, कहते
हैं, "यह विश्वविद्यालय संसद द्वारा पारित विशेष
अधिनियम के तहत बनाया गया है जिसमें अनुसूचित वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किए गए
हैं। भाजपा और संघ वाले इस मुद्दे पर हमेशा ओबीसी को आगे करके मुद्दा बनाते रहे
हैं। ताकि अन्य पिछड़े वर्गों और अनुसूचित वर्गों के बीच खायी पैदा की जा सके,
ठीक वैसे ही जैसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर वह करते आये
हैं। जिन विश्वविद्यालयों में ओबीसी आरक्षण लागू है, वहां तो
लागू नहीं कर रहे हैं। जो अनुसूचित वर्गों के उत्थान के लिए विशेष रूप से बनाया
गया है, उसको भी वे निशाना बना रहे हैं। यहां ओबीसी आरक्षण
था ही नहीं तो खत्म करने जैसी बात ही नहीं। ईडब्ल्यूएस का आरक्षण भी यहां लगाया
जाना पूरी तरह असंवैधानिक है।"
बीबीएयू में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं किये जाने और ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू किये
जाने के बाबत वनांचल एक्सप्रेस ने अपना दल (सोनेलाल) के नेता और उत्तर प्रदेश
विधान परिषद सदस्य आशीष सिंह पटेल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभाषपा) के
नेता अरविंद राजभर से उनकी पार्टी का रुख जानने के लिए संपर्क किया था लेकिन
उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम को भी
सवाल व्हाट्सअप किया गया था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
हालांकि देश के चिकित्सकीय शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश की परीक्षा (एनईईटी)
में ओबीसी रिजर्वेशन लागू नहीं किये जाने के मामले को राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ले
जाने वाले ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेस इंप्लाइज वेल्फेयर एसोसिएशन
के महासचिव जी करुणानिधि ने इस मामले में उचित कदम उठाने की बात कही है।
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