जातिगत भेदभावों,
उत्पीड़नों के
इस विकसित गतिविज्ञान का एक अहम पहलू यह है कि मुल्क में जबसे हिन्दुत्व
वर्चस्ववादी विचारों/ जमातों का प्रभुत्व बढ़ा है,
हम ऐसी घटनाओं
में भी एक उछाल देखते हैं। यह कोई संयोग की बात नहीं है कि केन्द्र में तथा कई
सूबों में भाजपा के उभार के साथ हम यही पा रहे हैं कि किस तरह वे ‘सुनियोजित तरीकों से दलितों के मामलों में सकारात्मक
कार्रवाइयों /एफर्मेटिव एक्शन और उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के
अस्तित्वमान प्रावधानों को कमजोर करने में मुब्तिला हैं…
written by सुभाष गाताडे
तेरह साल का एक वक्फ़ा गुजर गया जब थोरात कमेटी रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। याद
रहे,
सितम्बर 2006 में उसका गठन किया गया था, इस बात की पड़ताल करने के लिए कि एम्स अर्थात आल इंडिया
इन्स्टिटयूट आफ मेडिकल साईंसेज़ में अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों के साथ
कथित जातिगत भेदभाव के आरोपों की पड़ताल की जाए। उन दिनों के अग्रणी अख़बारों में
यह मामला सुर्खियों में था (देखें, द टेलीग्राफ 5 जुलाई 2006)।